महानता के गुण (कहानी)

एक बार की बात थी एक भीषण भयानक वन में महावीर स्वामी एकांत में ध्यान मुद्रा बैठे थे ,वे अक्सर किसी वृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यान करते थे। परंतु उस दिन जिस दिन वह वृक्ष के नीचे बैठे थे , उस वृक्ष पर यक्ष का निवास था। यक्ष साधारणतया दिन में वृक्ष पर निवास नही करते ,वे केवल रात्रि के लिए ही वृक्ष पर आते है और उनमे इच्छित रूप बदलने की भी शक्ति होती है, वह एक मायावी यक्ष था।यक्ष शाम के समय घूमने के बाद ,वापस अपने निवास वृक्ष पर आ रहा था ,तो उसने देखा की एक मनुष्य ध्यान मुद्रा में वृक्ष के नीचे बैठा हुआ है। उन्हें देख कर यक्ष आग बबूला हो गया । यक्ष कभी भी अपने समान यक्ष को भी अपने पास आश्रय नही देते है। उसने अपना मायावी रूप धारण करना शुरू कर दिया, पहले हाथी ,घोड़ा ,भालू और फिर शेर धारण किया और खूब परेशान करने की कोशिश किया, परंतु उनकी ऊपर किसी भी प्रकार से असर नही हुआ। वे इतने ध्यान मग्न थे ,की उन पर किसी भी माया का प्रभाव नही पड़ रहा था। वह बहुत देर से प्रयासरत था, वह हार चुका था। अन्त में उसने सर्प का रूप धारण किया और उनके गले में लिपट कर उन्हें डस लिया, परंतु फिर भी वह ध्यान से विचलित नही हुए और न ही उन्हें कोई असर हुआ । यक्ष थक हार कर उनके सामने बैठ गया। जब महावीर स्वामी ध्यान मुद्रा से उठे तो यक्ष पर पुष्प वर्षा होने लगी ,यह सब देख कर यक्ष अचम्भित रह गया। उसने सोचा मैंने इन्हें इतना परेशान किया ,उसके बाद भी इनका हमारे प्रति अगाढ़ प्रेम है। यक्ष ने महावीर स्वामी जी से क्षमा मांगी और अपने स्थान पर प्रस्थान के लिए आज्ञा मांगी और अपने वृक्ष पर चल दिया।
        दोस्तों , विनम्रता महानता की पहचान करता है, जिसके पास जितना अधिक ज्ञान होता ,वह उतना ज्यादा विनम्र होता है। जिस वृक्ष में जितने ज्यादा फल होते है ,वह वृक्ष उतना ही झुका हुआ होता है, और उसे उतनी ही ज्यादा चोटें भी लगती है। दोस्तों परेशानियों से जी न चुराए, संघर्ष करे, संघर्ष आप को कुंदन बनाता है । आप जितने ही ज्यादा तपते है ,उतने ही ज्यादा निखरते है। सदैव संघर्षरत रहे और विनम्र रहे।

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