चार चौकीदार (कहानी)
एक बार की बात थी । एक राजा घूमते हुए जंगल में पहुँचा ।
संयोगवश वहीँ पर एक और दूसरे राज्य का राजा भी पहुँच गया। दूसरे राजा की
प्रसिद्धि दूर - दूर तक थी। दोनों में बातें शुरू हो गयी। पहला राजा दूसरे
राजा से कहता है- "मुझे अपने राज्य में विहार के लिए जाना होता है ,तो मुझे
कम से कम पचास सैनिकों के साथ निकलना पड़ता है, क्यों की मुझे जान का खतरा
है, मेरी प्रजा मुझसे नाराज है, वह अशान्त रहती है।" कुछ देर बाद दूसरा
राजा कहता है -"मैं जब भी अपने राज्य भ्रमण के लिए निकलता हूँ ,तो मैं चार
चौकीदार को साथ रखता हूँ।" पहला राजा आश्चर्य में पड़ गया। आखिर ये
चौकीदारों के साथ कैसे निकलता है और इसे सैनिकों की आवश्यकता क्यों नही
पड़ती !
उसने सोचा क्यों न वेश बदल कर उसके राज्य का भ्रमण किया जाये। उसने ऐसा ही किया, जब वह उसके राज्य वेश बदल कर गया तो उसने देखा की वहां की प्रजा सुख ,शांति से तथा राजा के प्रति प्रेम भाव लिये जीवन व्यतीत कर रही थी।
तीसरे दिन पहला राजा पुनः उसी स्थान पर गया, जहां वे दोनों मिले थे। वह बैठ कर चिंतन करने लगा कि उसके राज्य की स्थिति भी क्यों नही अच्छी हो सकती है। उसने गुप्तचरों के माध्यम से आग्रह पत्र भेजा की समय निकल कर वे पुनः उसी स्थान पर मिले। राजा ने आग्रह पत्र स्वीकार किया।
वे दोनों पुनः उसी स्थान पर मिले और अपने अपने राज्य की बाते करने लगे। पहले वाले राजा ने दूसरे से पूछा वे कौन से बलवान चौकीदार है ? जिन्हें आप साथ में लेकर निकलते है।
राजा मुस्कराया और विनम्रता से बोला -"मित्र ,मेरा पहला चौकीदार है 'सत्य'। मेरा दूसरा चौकीदार है 'न्याय'। मेरा तीसरा चौकीदार है 'प्रेम'और मेरा चौथा चौकीदार है 'त्याग'। ये सब ही अत्यंत बलवान है, ये सब मेरी निःस्वार्थ भाव से सहायता करते है। पहले राजा को सारी बातें समझ में आ रही थी । उसे अपनी गलतियों का आभास हो रहा था।
उसने सोचा क्यों न वेश बदल कर उसके राज्य का भ्रमण किया जाये। उसने ऐसा ही किया, जब वह उसके राज्य वेश बदल कर गया तो उसने देखा की वहां की प्रजा सुख ,शांति से तथा राजा के प्रति प्रेम भाव लिये जीवन व्यतीत कर रही थी।
तीसरे दिन पहला राजा पुनः उसी स्थान पर गया, जहां वे दोनों मिले थे। वह बैठ कर चिंतन करने लगा कि उसके राज्य की स्थिति भी क्यों नही अच्छी हो सकती है। उसने गुप्तचरों के माध्यम से आग्रह पत्र भेजा की समय निकल कर वे पुनः उसी स्थान पर मिले। राजा ने आग्रह पत्र स्वीकार किया।
वे दोनों पुनः उसी स्थान पर मिले और अपने अपने राज्य की बाते करने लगे। पहले वाले राजा ने दूसरे से पूछा वे कौन से बलवान चौकीदार है ? जिन्हें आप साथ में लेकर निकलते है।
राजा मुस्कराया और विनम्रता से बोला -"मित्र ,मेरा पहला चौकीदार है 'सत्य'। मेरा दूसरा चौकीदार है 'न्याय'। मेरा तीसरा चौकीदार है 'प्रेम'और मेरा चौथा चौकीदार है 'त्याग'। ये सब ही अत्यंत बलवान है, ये सब मेरी निःस्वार्थ भाव से सहायता करते है। पहले राजा को सारी बातें समझ में आ रही थी । उसे अपनी गलतियों का आभास हो रहा था।
दोस्तों , हमें हमेशा दूसरों की अच्छाइयों को ग्रहण करना चाहिए और चर्चा, हमेशा अच्छाइयों की होनी चाहिए । दूसरों की चुगली करने में , दोषारोपण करने में समय व्यर्थ न करें । उन्ही समय को स्वतः के विकास में लगाये ।
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