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"हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा", "काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ"

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अटल विहारी वाजपेयी जी ने राजनीति में रहते हुए भी अपने जीवन के मानवीय पक्षों को अपने से कभी भी दूर नही किया। वे बहुत ही प्रभावशाली व्यक्तित्व के प्रगति प्रवर्तक राजनेता ही नही है अपितु एक नेक इंसान और एक महान कवि भी रहे ,अपने प्रसिद्ध रचना "हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा", "काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ", जैसीे कविताओं से सभी के ह्रदय को जीतने वाले एक महान रत्न के जीवन के कुछ कविताओं को पढतें हैं।   गीत नया गाता हूँ टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर , पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर, झरे सब पीले पात, कोयल की कूक रात, प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं। गीत नया गाता हूँ। टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी? अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी। हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ। गीत नया गाता हूँ। -अटल बिहारी वाजपेयी आओ फिर से दिया जलाएं  भरी दुपहरी में अँधियारा, सूरज परछाई से हरा, अंतरतम का नेह निचोड़े, बुझी हुई बाती सुलगाएँ। आओ फिर से दिया जलाएं।