मूल्यवान भेंट (कहानी)

एक परिश्रमी व्यापारी था। उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नही थी। वह बहुत ही परिश्रम करता था, मेहनत करते करते वह उस स्थान का अमीर आदमी बन गया।उसे दुर्लभ वस्तुओ को रखने का बहुत शौख था । वह ऐसी दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह करता ,जो किसी के पास नही होती थी। एक बार उसे एक ऐसी दुर्लभ वस्तु मिली जो और किसी के पास न थी। उस व्यक्ति ने सोचा चलो इस अमूल्य वस्तु को हम ईशा मसीह को अर्पण करेंगे। वे इसे देख कर अत्यधिक प्रसन्न होंगे। उसे बहुत ही गर्व हो रहा था कि वह ऐसी दुर्लभ वस्तु ले ज रहा है, जो आज तक किसी के पास नही हुई। वह पूरी तैयारी के साथ ईसा मशीह के पास गया। उसने ईशा मसीह से कहा-'प्रभु मैं आप को अर्पण करने के लिये कुछ लाया हूँ।' ईशा मसीह ने पहले ही उस वस्तु को अपने अंतर मन से देख लिया था। उन्होंने उस व्यापारी की तरफ मुड़ कर भी नही देखा और न ही कोई उत्तर दिया । यह सब देख कर व्यापारी को बहुत ही बुरा लगा। वह बड़े ही सच्चे मन से ईशा मसीह के लिए एक उपहार लाया परन्तु उन्होंने मुड़ कर देखा भी नही। उस व्यापारी से नही रहा गया उसने ईशा मसीह से कहा-"प्रभु आपने एक बार मुड़ कर मेरी तरफ देखा भी नही । कृपा करके आप एक बार देख तो लेते।" ईशा मसीह ने प्रत्युत्तर में कहा-" प्रिय, आप के द्वारा लाया गया सामान चोरी का है ,यह सही धन का इसलिए नही है ,क्यों की इसे समाज कल्याण में नही लगाया जा रहा है। आप ने इसे समाज कल्याण के धन में से चोरी करने का प्रयत्न किया है।" ईशा मशीह द्वारा दिए गए इतने ही कथन उस व्यापारी के लिए बहुत थे। वह सारी बातों को गहराई से समझ चुका था क्यों की वह स्वयं जमीन से उठ कर उस मुकाम तक पहुँचा था।
         दोस्तों ,ईश्वर  ने हमे सही गलत को पहचानने की शक्ति दी है, हमें अपने शक्ति को निर्माण कार्य में लगाना चाहिए। मानवता की पहचान सत्य को साथ देने में है, जो वास्तविक गरीब है ,उनके जीवन का उत्थान करने में है।

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