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जनवरी, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ऑल राउंडर बनाने के बजाय विशेषज्ञ बनें।

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एक नव युवक डॉक्टर था। उसे कार्य करते हुए दो वर्ष हो चले थे। एक स्थान पर त्याग पत्र देने के बाद वह नए नौकरी की तलाश में था। एक अच्छे क्लीनिक में उसने आवेदन किया। आवेदन के अगले दिन वह वहाँ साक्षात्कार के लिए गया। वहां अध्यक्ष ही साक्षात्कार के लिए बैठा था। नव युवक डॉक्टर से अध्यक्ष ने पूछा आप किस क्षेत्र में विशेषज्ञ है? नव युवक ने उत्तर दिया-"श्री मान मैं आल राउंडर हूँ, मुझे सभी प्रकार की चिकित्सायें आती है। मैं किसी भी प्रकार के उपचार को करने में सक्षम हूँ। मैं अपने बैच का गोल्ड मैडलिस्ट हूँ।" अध्यक्ष ने प्रत्युत्तर में कहा मैं आप का सम्मान करता हूँ ,परंतु यदि आप विशेषज्ञ होते तो बेहतर होता। मुझे विशेषज्ञ की आवश्यता है। विशेषज्ञ के आभाव में हम आपातकालीन परिस्थितियों का नियत्रण में नहीं कर पाएंगे। बेहतर है आप ऑल राउंडर की जगह एक विशेषज्ञ बने। आप की पहचान आप की विशेषज्ञता से होगी। आप के आल राउंडर होने से आप के विशिष्ट पहचान बनने में खतरा है।        दोस्तों आल राऊँडर होना आप की विशेषता है, लेकिन विशिष्ठता आप को आप की विशेषज्ञता ही दिलाएगी।       आज के आधुनिक युग में विशेषज्ञों

अपनी शक्तियों को पहचाने : याद रखें आप इस विश्व में सबसे विचित्र है।

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दोस्तों आप अपने कटु अनुभव से ये सीखेंगे - चाहे स्थितियां कैसी भी हो हम जैसे भी है वैसा  ही व्यवहार करना बेहतर है। जेम्स गार्डन के अनुसार - "असली रूप में रहने की इच्छा से सम्बंधित समस्या उतनी ही पुरानी है, जितना की इतिहास और उतनी ही शाश्वत है जितना की मानव का जीवन।"       एक बस चालक की पुत्री ने ये सबक बहुत मुश्किलों के बाद सीखा। वह एक सिंगर बनाना चाहती थी लेकिन उसका चेहरा उसके लिए दुर्भाग्य का कारण था। उसका मुख बड़ा था और दाँत बा हर की ओर निकले थे। जब उसने एक प्रतिष्ठान में लोगों के सामने गाया , तो उसने ऊपरी होठों से अपने बाहर की ओर निकले दाँत को छुपाने की कोशिश की। उसने स्वयं को ग्लैमरस दिखाने की कोशिश की। परिणाम? उसने खुद को मूर्ख साबित किया। उसने असफल होना ही था। उस प्रतिष्ठान में एक व्यक्ति शांति से बैठ कर उस लड़की का गाना सुन रहा था, और उसे लगा की उसमे प्रतिभा है। उसने साफ शब्दों में उसने बता दिया ," मैं आप का गाना सुन रहा था और मैं जानता हूँ कि आप क्या छुपाने की कोशिश कर रही थी। आप को अपने दाँतों पर शर्म आ रही थी।" वह लड़की शरमा गयी। लेकिन उस आदमी ने उससे कह

चिंता को दें मात, कैसे ?

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दोस्तों , जीवन में परेशानियाँ, दुविधाएँ और कठिनाइयाँ आना स्वाभाविक है, हम अपनी परोस्थितियों को अपने अनूकूल कर सकने में सक्षम नही हो पाते। आइये हम सभी कुछ बिंदु बिन्दुवत करते है जिससे आप परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर सकते है और आप चिंता को भी सरलता से जीत सकते है। 1. चिंता का केवल एक ही उपाय है। वह है चिंतन। चिंता कभी न करें, सदैव चिंतन ही करें।   2. आने वाले कल के बोझ को अगर बीते हुए कल के बोझ के साथ आज के दिन उठाया जाये तो शक्तिशाली से शक्तिशाली व्यक्ति भी लड़खड़ा जायेगा, इसलिए दोस्तों वर्तमान में एक एक दिन जियें यानि की 'एक डे टाइट कम्पार्टमेंट में जीवन जियें'। भविष्य की चिंता में कभी न घुलें।   3. अगर आप के सामने कोई समस्या या बड़ी समस्या आये तो आप स्वयं से पूछे - 'यदि मैं अपनी समस्या नहीं सुलझा पाता, तो मेरे साथ बुरे से बुरा क्या हो सकता है?' और आवश्कता पड़ने पर उस बुरे से बुरे परिणामों के लिए मानसिक रूप से स्वयं को तैयार कर लें।   4. फिर शांत दिमाग से अपने सोचे, बुरे से बुरे परिणामों को सुधारने की कोशिश करें - जिन्हें स्वीकार करने के लिए आप

कुछ करने वाले ही भाग्यशाली होते है (कहानी)

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एक बैंक में एक नवयुवक बैंकर कार्य करता था। वह लगातार दस वर्षों से निरंतर बैंक की सेवा में था। ग्यारह वर्षों बाद उसके मस्तिष्क में विचार आया कि 'मैं लगातार दस वषों से बैंक की सेवा में हूँ। मुझे अब अपने अध्यक्ष से बात करके अपनी पदोन्नति करवा लेनी चाहिये। पिछले दस वर्षों से मेरी एक बार भी पदोन्नति नही हुई।' अगले दिन उसने यह बात अपने अध्यक्ष के सम्मुख रखने की सोची। अगले दिन वह पूरी स्फूर्ति के साथ काम किया और शाम के समय वह हिम्मत करके अपने अध्यक्ष के सम्मुख गया और कहा 'महोदय, मैं यहां लगभग दस वर्षों से लगातार कार्य कर रहा हूँ ,इन दस वर्षों में मैंने ईमानदारी से कार्य किया है ,मैं सदैव समय पर आया हूँ ,मेरा किसी भी प्रकार का किसी से मत भेद नही हुआ। आप से निवेदन है, कृपया मेरी पदोन्नति कर दे। अध्यक्ष ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए बोला-'आप ने वही कार्य किया है, जो आप का कर्त्तव्य  इस बैंक के प्रति है। आप ने कुछ विशिष्ठ कार्यों की विवेचना नही  की। आप मुझे वह कार्य बताये, जो किसी ने न किये हो और हमारी शाखा के लिए गर्व की बात हो ? क्या आप ने कभी बैंक के ग्राहको

बापू के कम कपडे में रहने की जिद (संस्मरण)

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सन् 1916 की बात है। नवाबों की नगरी लखनऊ में कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था। बापू भी उस अधिवेशन में आये थे। वहां उन्हें राज कुमार शुक्ल मिले और उन्होंने बिहार के चंपारण में रहने वाले किसानो का कष्ट उन्हें बताया। यह सब कष्ट सुन कर उनसे रहा न गया। वे और कस्तूरबा, चंपारण के तिहरवा गांव पहुंच गए। जब कस्तूरबा वहां पहुंची तो उन्होंने देखा वहां जितनी भी औरतें थी , वे सभी गंदे कपड़े पहने हुई थी। उन्होंने गाँव की सभी औरतों को इकठ्ठा किया और समझाने लगी कि गंदे कपड़े पहनने से बहुत सी बीमारियां होती है इसलिए सभी को स्वच्छ रहना चाहिए और अपने आस पास के वातावरण को भी साफ रखना चाहिए। इस बात पर एक गरीब औरत,  जिसके कपड़े बहुत ही गंदे थे और जो एक किसान की पत्नी थी उठी और उन्हें अपनी छोटी सी झोपडी में ले कर गयी और बताने लगी - आप स्वयं ही देख लीजिये मेरे घर में कुछ भी नही है, केवल मेरे देह पर यही एक साड़ी है। आप स्वयं ही बताइये मै स्नान के समय क्या धारण कर के साड़ी साफ करूँ और क्या अपने वस्त्र साफ रखूँ? आप बापू जी से कह कर एक साड़ी दिलवा दें तो फिर मैं रोज़ अपने वस्त्र साफ रखूँ।       कस्तूरबा

जो स्वावलंबी है , भगवान उसी की रक्षा करते है (कहानी)

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एक बार अकबर के दरबार में एक विचित्र समस्या प्रस्तुत हुई। तीन सैनिकों के बीच झगड़ा हो गया। एक का कहना था कि सबसे बड़ा भगवान है, दूसरे का कहना था कि जिसके सहायक और लोग हो, भगवान उसी की रक्षा करते है,और तीसरे का कहना था जो अपनी रक्षा आप करता है, भगवान उसी की रक्षा करते है। अकबर ने बीरबल से यह समस्या सुलझाने को कहा तो बीरबल ने उचित अवसर पर उत्तर देने का वायदा किया।       कुछ समय बाद दक्षिण में लड़ाई छिड़ गयी। बीरबल ने तीनों सैनिकों को युद्ध पर भेजा। जिसको यह विश्वास था कि कोई परिश्रम आवश्यक नही है और भगवान स्वयं ही रक्षा कर लेंगे उसे नि:शस्त्र, दूसरा जो सहयोग पर विश्वास रखता था उसके साथ एक सशस्त्र सैनिक और तीसरा जो अपने परिश्रम से परमात्मा की सहायता पर विश्वास रखता था, उसे सशस्त्र सहित भेजा । पहला मृत्यु को प्राप्त हुआ, दूसरा बंदी बना लिया गया और तीसरा अंत तक लड़ा और विजयी हो कर वापस लौटा ।       विजय की ख़ुशी में एक ख़ुशी इस उत्तर को भी जोड़ी गयी। अकबर ने निर्णय सुनाया कि जो अपनी रक्षा करता है, वही अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा करने में समर्थ होता है।

सहनशीलता (कहानी)

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एक गांव में एक प्रसिद्ध व्यक्ति रहते थे। उनका नाम एकनाथ था। वे अत्यंत ही सहनशील और धैर्यवान स्वभाव के थे। उनकी प्रसिद्धि बहुत दूर-दूर तक थी। गांव के ही दो व्यक्तियों ने शर्त लगाई की जो एकनाथ को क्रोधित करवा देगा , वह शर्त में विजयी होगा। एक व्यक्ति इसके पक्ष में था की एकनाथ को कोई भी क्रोधित नही करवा सकता और दूसरा व्यक्ति इसके विपक्ष में।         दूसरा व्यक्ति एकनाथ के घर गया और उन्हें परेशान कर उन्हें क्रोध दिलाने की सारी रणनीति अपनाने लगा। उस दिन एकनाथ मंदिर से पूजा कर के वापस आ रहे थे। अब जैसे ही वे घर में आकर बैठे ही थे, दूसरा व्यक्ति अचानक से आकर उनकी गोद में बैठ गया। एकनाथ सहम गए और उस व्यक्ति का ध्यान रखने लगे कि उसे किसी प्रकार की चोट न लगे। कुछ देर में दूसरा व्यक्ति उनकी पत्नी की पीठ पर जा कर बैठ गया। एकनाथ ने अपनी पत्नी से कहा- 'आप इनका ध्यान रखियेगा, कही इन्हें किसी प्रकार की चोट न आ जाये।' उनकी पत्नी ने कहा- 'आप तनिक भी चिंता न करें ,इन्हें किसी भी प्रकार की चोट नही आएगी।' कुछ ही देर में उस व्यक्ति ने घर में रखा सारा सामान तहस नहस कर दिया, परन्त

बिना सेवा के विद्या नही ( कहानी)

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एक महान महात्मा थे। वे जंगल में निवास करते थे। वे बहुत ही ज्ञानी थे। उनके पास ज्ञान का भंडार था। उनमे ऐसी असीम शक्ति थी , जिससे वे किसी वस्तु और धातु को सोना में बदल देते थे और इस शक्ति को गरीब लाचारों की सेवा में प्रयोग करते थे।        एक बार की बात थी। एक बहुत ही गरीब लाचर व्यक्ति महात्मा के पास आया। वह आर्थिक रूप से बहुत ही कमजोर था। महात्मा को अपनी दयनीय दशा बताई। उसे अपनी पुत्री का विवाह करना था ,  महात्मा ने एक घड़ा उठाया और अपनी विद्या से उसे सोने में परिवर्तित कर दिया। वह गरीब व्यक्ति बहुत खुश हुआ और महात्मा को प्रणाम कर के अपने घर की ओर चल दिया। रास्ते में, उस राज्य के राजा भ्रमण पर जा रहे थे। उन्होंने एक गरीब को सोने का घड़ा ले जाते देखा। उसे देखकर वह गरीब पर शंकित हो गए   और अपने सैनिको को उस सोने के घड़े के बारे में पता लगाने को बोला। सैनिको ने गरीब के घर पर जा कर उससे पूछताछ की। उस गरीब ने सब सच-सच बता दिया। यह सब बात राजा को पता चली तो उसने उस महात्मा को बुलाया और उसे उस विद्या को बताने को कहा, परन्तु महात्मा ने उस विद्या को बताने से मना कर दिया, राजा

माँ ! मै सन्यासी बनूँगा। (कहानी)

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आज से 1200 वर्ष पूर्व मालाबार गांव में एक प्रसिद्ध संत थे। यह घटना उनके बाल्यावस्था की है। जब वह बचपन में हमेशा अपनी माता जी से कहते, 'माँ मुझे सन्यासी बनने की इच्छा है, आप मुझे संन्यासी बनाने की आज्ञा दे दीजिये '। पर माँ का तो अपने पुत्र के प्रति मोह हमेशा रहता है, भला वो कहां आज्ञा देने वाली। उनसे उनकी भावनाएं जुडी हुई थी। वे जब भी उनसे सन्यासी बनने की आज्ञा की प्रार्थना करते उनकी माँ उनसे भावनात्मक हो हो जाती, और उनका दिल पिघल जाता। परंतु उनके मन में सदैव संन्यासी बनने का सुर रहता था। एक दिन की बात है, वे नदी के तट पर स्नान कर रहे थे। कुछ ही समय में एक मगरमच्छ ने उनका पैर अपने मुँह में पकड़ लिया परन्तु उस बालक के मन में अब भी सन्यासी बनने का सुर था। ऐसी विकट परिस्थिति में उन्होंने इसे आज्ञा पाने का माध्यम बनाया। माँ को इस बात का पता चला, वे दौड़ते दौड़ते तट के किनारे गयी। उन्हें ऐसी स्थिति में देख, वे स्वयं उसे बचाने के लिए नदी में उतरने लगी परन्तु बालक ने माँ से कहा -'माँ आप नदी में न आएं नही तो ये मगर मुझे और खा लेगा,। माँ सहम कर पीछे हट गयी। बालक ने म

ममता (कहानी+कविता)

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एक वृद्धा का एक पुत्र था । किसी कारण से उसके पुत्र ने उसे बहुत मारा। वह बुरी तरह घायल हो गयी, उसे कई गंभीर चोटें आयी। पड़ोस के कुछ व्यक्ति आये और उसे लेकर अस्पताल भर्ती करवाए। अस्पताल में एक व्यक्ति उस वृद्धा को बड़े ध्यान से देख रहा था। यह सब क्या हो रहा था? उसके समझ में नही आ रहा था, उसके कारण का अंदाजा भी नही लगा पा रहा था। उससे रहा न गया वह पास में गया और लोगों से इसं सब का कारण पूछा, तो पाया कि उसी के पुत्र ने उसे बेरहमी से मारा था। वह ऐसी घटना सुन कर बहुत ही व्यथित हो गया। भावुक हो कर उसके मुख से निकला, ‘ईश्वर करे ऐसा पुत्र जन्म ही न ले इस संसार में, यदि ऐसा पुत्र जन्मा ही नही होता, तो आज ऐसे दिन देखने को नही मिलते’। उस वृद्धा ने धीरे धीरे शब्दों में कहा, ‘कृपया ऐसा मत कहें, वह अभी नादान है, उसे कुछ भी नही पता, जब वह बड़ा हो जायेगा तो सब समझ जायेगा। वह व्यक्ति इतना सुन कर आश्चर्य चकित रह गया। इतनी पीड़ा के बाद भी उस माँ का दिल सागर ही रहा। उस व्यक्ति ने ईश्वर से यही प्रार्थना की, ‘कि ऐसी माँ सबा को मिले’।      दोस्तों , कहा भी गया है- “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीय