त्याग + सहायता ( कहानी)

एक सुमसान वन में एक बहुत छोटी सी कुटिया थी। उस कुटिया में एक साधू निवास करते थे। साधू अत्यंत दयावान थे। एक रात की बात थी, जब वह विश्राम के लिए जा रहे थे , तो उन्होंने एक दरवाजा खटखटाने की आवाज  सुनी, जो की उनकी स्वयं की थी। वे विश्राम छोड़ कर किवाड़ खोलने के लिए उठे। जब उन्होंने किवाड़ खोल तो देखा कि एक व्यक्ति पानी से भीगा हुआ खड़ा था। उस व्यक्ति ने साधू से कहा-"साधू महाराज, बहुत दूर से आया हूँ, पथ भ्रमित हो गया हूँ, आप से निवेदन है की कृपया  प्रातः काल तक शरण दे दें।" साधू ने उनका स्वागत किया वे दोनो बैठ कर विश्राम करने लगे। क्यों की उनके कुटिया में एक समय में एक व्यक्ति ही विश्राम कर सकते थे। साधू जी ने खूब ढेर सारी बातें करनी शुरू कर दी। कुछ समय बाद फिर से किवाड़ खटखटाने की आवाज़ आई। साधू ने किवाड़ खोली देखा कि एक और व्यक्ति महाराज के वेष में पानी में भीगा हुआ खड़ा था।  राजा ने उन्हें प्रणाम किया और और विनम्र निवेदन किया की उन्हें प्रातः काल तक अपनी कुटिया में शरण दें दे। साधू ने उनका भी स्वागत किया। वे तीनों अब खड़े खड़े प्रातः काल का इंतज़ार करने लगे। उन लोगों ने ढेर सारी बातें की । बात करते करते कब प्रातः हुई उन्हें पता भी नही चला। राजा को साधू का स्वभाव बहुत अच्छा लगा। अपने राज्य में जा कर राजा ने साधू का उदाहरण प्रस्तुत किया और उन्हें महल में निवास और अपना मंत्री होने का निमंत्रण दिया। परंतु साधू ने महल में रहना स्वीकार नही किया।
       दोस्तों, वास्तविकता जीवन की यही है की "सत्य को प्राप्त करने के लिए त्याग करना पड़ता है।" अपना दिल बड़ा रखे ,दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहे।


  

टिप्पणियाँ