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अष्टावक्र ने कैसे तोड़ा आचार्य बंदी का अभिमान | अष्टावक्र की कहानी

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 अष्टावक्र ने कैसे तोड़ा आचार्य बंदी का  अभिमान | अष्टावक्र की कहानी  अष्टावक्र दोस्तों आपने कई ऋषि मुनियों की कहानियाँ सुनी होगी लेकिन आज मैं आपको  एक ऐसे विद्वान ऋषि की कहानी बताऊंगा जिसका लोहा हर किसी ने माना। जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ महा विद्वान्  ऋषि अष्टावक्र की जिन्होंने अल्प अवस्था में ही एक दम्भी आचार्य का अभिमान चूर-चूर कर दिया था। *( दोस्तों उस महान विद्वान का नाम अष्टवक्र इसलिये पड़ा, क्यूँ कि जन्म के समय उनका शरीर 8 जगहों से मुड़ा हुआ था और ऐसा इसलिए हुआ था जब वह गर्भ में थे तो अपने पिता को गलत मंत्र उच्चारण के लिए गर्भ से ही कई बार टोका था, जिससे क्रोधित होकर उनके ही पिता ने उन्हें श्राप दे दिया था  परन्तु बाद में  वह ठीक हो गये थे  , उनको श्राप से मुक्ति कैसे मिली  यह किसी अन्य लेख में  विस्तार से बात होगी )* दीन-हीन अवस्था में दो भिक्षुक, जिसमें एक अष्टावक्र (शारीरिक रूप  विकलांग थे उन्हें लाठी का सहारा लेकर द्वारपाल  चलना पड़ता था) एवं उनके एक साथी आश्रम के द्वार पर पहुंचतें है और द्वारपाल से पूछ्तें हैं:- द्वारपाल हम आचार्य बंदी को ढूंढ रहें है? मैं उन्हें शास्त्रार्थ

गिरवी की आँख

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गिरवी की आँख   ​ गौनू झा की कुशाग्र बुद्धि के कारण राजदरबार में उसका सम्मान बढ़ता जा रहा था। राजा सभी कामों में उससे सलाह लेता था। उसका वेतन भी अन्य दरबारियों से अधिक हो गया था, इसके कारण अन्य दरबारी गौनू झा से जलने लगे और हमेशा नीचा दिखाने का अवसर खोजते रहते थे। भूखन दास भी  गौनू झा  के गाँव का ही रहने वाला था और दरबार में पुराना कर्मचारी था। उसकी एक आँख बचपन में खेलते हुए फूट गई थी। एक दिन अन्य दरबारियों के साथ भूखन दास कहीं बैठा था तो एक दरबारी ने चर्चा करते हुए कहा, “भूखन दास! आप दरबार में गौनू से बहुत पुराने हो, परन्तु आप के ही गाँव से आया गौनू का सम्मान और वेतन आपसे ज्यादा है?'' भूखन ने आह भरते हुए कहा, "सब किस्मत का खेल है भैया।" एक कर्मचारी ने भड़काते हुए कहा, "बुद्धि में तो आप भी कम नहीं हो, मगर धूर्तता में गौनू आगे है।" दूसरा कर्मचारी बोला, "अगर आप थोड़ी सी भी बुद्धि लगाओ, तो गौनू को नीचा दिखा सकते हो।" भूखन दास की ईर्ष्या और भी बढ़ गई। “हाँ, कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा" कहकर वह चल दिया। दो दिन बाद दरबार लगा था, मौका देखकर भूखन दास बो