सहनशीलता (कहानी)

दूसरा व्यक्ति एकनाथ के घर गया और उन्हें परेशान कर उन्हें क्रोध दिलाने की सारी रणनीति अपनाने लगा। उस दिन एकनाथ मंदिर से पूजा कर के वापस आ रहे थे। अब जैसे ही वे घर में आकर बैठे ही थे, दूसरा व्यक्ति अचानक से आकर उनकी गोद में बैठ गया। एकनाथ सहम गए और उस व्यक्ति का ध्यान रखने लगे कि उसे किसी प्रकार की चोट न लगे। कुछ देर में दूसरा व्यक्ति उनकी पत्नी की पीठ पर जा कर बैठ गया। एकनाथ ने अपनी पत्नी से कहा- 'आप इनका ध्यान रखियेगा, कही इन्हें किसी प्रकार की चोट न आ जाये।' उनकी पत्नी ने कहा- 'आप तनिक भी चिंता न करें ,इन्हें किसी भी प्रकार की चोट नही आएगी।' कुछ ही देर में उस व्यक्ति ने घर में रखा सारा सामान तहस नहस कर दिया, परन्तु एकनाथ को उस व्यक्ति की चिंता थी कि कही उसे चोट न लग जाये। एकनाथ के मुख पे किसी भी प्रकार का क्रोध या दुःख नही था। वह दूसरा व्यक्ति बहुत देर से परेशान करते करते स्वयं ही थक गया। कुछ समय बाद उस व्यक्ति को यह बात समझ में आ गयी कि वास्तव में इनके अंदर बहुत सहनशीलता है, अंततः वह स्वयं हार कर एकनाथ से क्षमा मांगता है और अपने द्वारा लगाये गए पहले व्यक्ति से शर्तों को भी बताता है।
दोस्तों, सहनशीलता और धैर्य दोनों के माध्यम से हम समय को भी जीत सकते है। समय की प्रतिकूलता को भी धैर्य(धीरज) और सहनशीलता के माध्यम से हम अनुकूलता में परिवर्तित कर सकते है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें