गुस्से की शर्तिया दवा ( कहानी)

एक गांव में एक औरत निवास करती थी। उसे क्रोध बहुत आता था। उसके अपने क्रोध के कारण वह गाँव भर में अलोकप्रिय हो गयी। बात बात पे गुस्सा आ जाता था और भला बुरा कह बैठती थी। क्रोध आने के बाद ,उसे अपने किये पर पश्चाताप भी होता था ,पर वह क्या करे ? कुछ सूझता ही नही था।
       एक दिन की बात थी। उस गाँव में एक साधू आए। उस औरत ने सोचा क्यों न इस क्रोध का निवारण इन्ही से पूछा जाये। उसने निर्णय किया की वह अब साधू के पास जा कर सब सच बात देगी ताकि उसके क्रोध का निवारण मिल सके। वह साधू के पास गयी और अपना पूरा दुखड़ा कह दिया। साधू ने उसकी पूरी बात सुनी और सुनने के बाद उसे एक दवा से भरी शीशी दी और कहा जब भी गुस्सा आये तुरंत इसे मुह में लगा लेना और मुँह मत खोलना , क्रोध पूर्ण रूप से शांत हो जायेगा।
औरत ने साधू द्वारा कहे गए कथनों का क्रमशः वैसा ही पालन किया जैसा उन्होंने कहा था।
       अब जब भी उसे गुस्सा आये तो वो दवा से भरी शीशी अपने मुँह में रख ले। इस तरह कुछ ही दिनों में उसका क्रोध आना समाप्त हो गया।
कुछ दिनों बाद वही साधू पुनः उस गाँव में आये। अब उस औरत के मन में एक प्रश्न और था आखिर उस दवा में क्या था की इतनी जल्द मेरा क्रोध समाप्त हो गया। साधू गांव में आये महिला उनके पास गयी और उन से यही प्रश्न किया। साधू ने उसे यह बताय की उसने तो बस उस शीशी में पानी भर के उसे दे दिया था बस ,ताकि गुस्सा आने पर भी उसे मुँह में लगाने के बाद कुछ बोले न। गुस्सा बोलने से और बढ़ता है।
दोस्तों, गुस्सा हमारे शरीर को खोखला कर देता है। किसी भी समस्या के समाधन के लिए दो क्रियाये ही बहुत है 1. एक मधुर मुस्कान  2. शांत बने रहना।
        दोस्तों प्रयास यही करना चाहिए की सदैव सम और और प्रसन्न बने रहे। किसी भी परिस्थिति को देख कर उत्तेजित न हो और न ही ऐसी कोई प्रतिक्रिया दें जो की भावनात्मक हो।

टिप्पणियाँ