बिना सेवा के विद्या नही ( कहानी)



एक महान महात्मा थे। वे जंगल में निवास करते थे। वे बहुत ही ज्ञानी थे। उनके पास ज्ञान का भंडार था। उनमे ऐसी असीम शक्ति थी, जिससे वे किसी वस्तु और धातु को सोना में बदल देते थे और इस शक्ति को गरीब लाचारों की सेवा में प्रयोग करते थे।

       एक बार की बात थी। एक बहुत ही गरीब लाचर व्यक्ति महात्मा के पास आया। वह आर्थिक रूप से बहुत ही कमजोर था। महात्मा को अपनी दयनीय दशा बताई। उसे अपनी पुत्री का विवाह करना थामहात्मा ने एक घड़ा उठाया और अपनी विद्या से उसे सोने में परिवर्तित कर दिया। वह गरीब व्यक्ति बहुत खुश हुआ और महात्मा को प्रणाम कर के अपने घर की ओर चल दिया। रास्ते में, उस राज्य के राजा भ्रमण पर जा रहे थे। उन्होंने एक गरीब को सोने का घड़ा ले जाते देखा। उसे देखकर वह गरीब पर शंकित हो गए  और अपने सैनिको को उस सोने के घड़े के बारे में पता लगाने को बोला। सैनिको ने गरीब के घर पर जा कर उससे पूछताछ की। उस गरीब ने सब सच-सच बता दिया। यह सब बात राजा को पता चली तो उसने उस महात्मा को बुलाया और उसे उस विद्या को बताने को कहा, परन्तु महात्मा ने उस विद्या को बताने से मना कर दिया, राजा ने महात्मा को डराया, धमकाया परन्तु फिर भी मना कर दिया । क्रोधित हो कर राजा ने उसे कारागार में डलवा दिया।
     राजा को उस विद्या को प्राप्त करना था। राजा का मन नही माना, उसे यह तरीका अच्छा नही लगा। इस माध्यम से वह उस विद्या को भी नही प्राप्त कर सकता था। उसके दरबार में एक मंत्री था, उस मंत्री ने उस महात्मा के बारे में पता लगाया तो उस एक बात पता चली। अगले दिन दरबार में उस मंत्री ने राजा से कहा ,’ हे! नरेश आप इन महात्मा को करागाए से मुक्त करिए, आप इनसे केवल सेवा के बल पर ही वह ज्ञान अर्जित कर सकते है। मंत्री के कथनानुसार राजा ने महात्मा को कारागार से मुक्त कर दिया। मंत्री और राजा ने मिल कर एक योजना बनाई और उसे एक मूर्त रूप देने में लग गये।

    अगले दिन सुबह राजा एक गरीब के वेश में महात्मा के पास पहुंचा। राजा कुछ दिन वहीं रह कर महत्मा की इतनी सेवा की कि महात्मा उससे अत्यंत प्रसन्न हो गये। महत्मा ये सारी बातें पहले से ही जान गये थे। महात्मा उससे कहेमै आप से बहुत प्रसन्न हूँ, बताइए आप को क्या चाहिए?’ राजा ने उन महात्मा से वही विद्या मांग ली। महात्मा ने वह विद्या उसे दे दिया। अब राजा बहुत ख़ुश हुआ और मन ही मन महात्मा के नादानियों पर हंस रहा था। 
    अगले दिन दरबार में उस महात्मा को बुलाया और अपनी योजना को बता कर हंसने लगा। जब महात्मा ने ये सुना तो वे मुस्कुराये और बोले, ‘वह तो मेरा कर्त्तव्य था, और मैं जनता था, उस गरीब के वेष में तुम ही हो, तुमने मेरी सेवा की, तो मैंने वह विद्या दे दी। इतना सुन कर राजा ने शर्मिंदगी महसूस की और उस महात्मा से क्षमा मांगी और उन्हें ससम्मान विदा किया।
    
        दोस्तों ,इस संस्मरण से एक बात ये पता चली कि- ‘बिना सेवा के विद्या नही मिल सकती’। यह सेवा किसी भी रूप में हो सकती है। यह सेवा स्वयं के लिए मेहनत के रूप में भी हो सकती है। दोस्तों, जब आप त्याग करके सेवा करते है, उससे आप को विद्या मिलती है, जो आप के जीवन को और प्रबुद्ध करती है।

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