साहस की पहचान
"जो उचित है वह करने
से कतराना साहस की कमी दर्शाता है।"
साहस की पहली और सबसे महत्वपूर्ण पहचान यह है कि डर का अनुभव
होने के बावजूद व्यक्ति वह करता है, जो उचित है। डर और साहस वास्तव में दो भाई हैं।
साहस का अर्थ डर का न होना नहीं , बल्कि डर पर जीत हासिल करना है। बहादुर वह नहीं
होता जो डर से डर जाये, बल्कि वह होता है जो उस डर पर जीत दर्ज करता है। कोई भी
ऐसा प्राणी नही है जो खतरे से सामना होने पर न डरता हो। सच्चा साहस इसमें है कि डर
लगने पर भी खतरे का सामना किया जाये। आतंकित होते हुए भी आगे बढ़कर जो करना चाहिये वह
कर डालना ही साहस है। जिसे डर नहीं लगता वह मूर्ख है, और जो डर को खुद पर हावी हो
जाने देता है वह निस्संदेह कायर है। साहस का अर्थ वह करना, जो करने से आप को डर
लगता है। अगर आप डरे नहीं है, तो फिर साहस का सवाल ही नहीं पैदा होता। प्रर्तिक्रिया
करने के बजाये हमें कुछ कर डालने का साहस होना चाहिए।
बचपन से ही एक बालक ने मन
में उडान भरने का सपना पाल रखा था। इसी वजह से उसने एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग पढ़ी।
अपना कोर्स ख़त्म करने के बाद उसने वायु सेना में शोर्ट सर्विस कमीशन के लिए आवेदन
किया ताकि वह अपना सपना पूरा कर सके। लेकिन वह इंटरव्यू में कामयाब नहीं हो पाया।
सपना टूटने के बाद उसने हिमालय में ऋषिकेश तक पैदल यात्रा की, और जो कुछ हुआ उसे स्वीकार करने की कोशिश की। बाद में उसने मेटेनेंस इंजिनियर के तौर पर एच ए एल में
नौकरी की। वह कोई और नही सिर्फ डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम थे। हम में से कई लोग, जिन
चीज़ों की उम्मीद सजोतें हैं, असल वह नहीं मिल पाती (चाहे वह कोई रिश्ते हों या
नौकरी) तो जिंदगी से हार मन लेतें हैं। जिसे हम पूरी शिदद्त से चाहतें हों, जिसे
हमने लगातार चाहा हो, उसके ना मिलने पर भी जिंदगी में आगे बढ़ते जाना ही साहस है।
साहस की
दूसरी पहचान है, अपने दिल की सुनन। हमारी सृजन शीलता के पीछे होता है, हमारा जुनून
जो की हमें सामान्य से आगे बढ़ कर कुछ करने को प्रेरित करता है। जब आप अपने दिल और
अंतरदृष्टी के मुताबिक चलते है, तो आप महसूस करते है कि आपको पहले से ही पता है कि
आप वाकई में क्या बनना चाहतें है। बाकी सब बातें इसके बाद आती है। जोखिम उठा कर काम
करने का फैसला कर के कभी कभी आप को कुछ देर के लिए ऐसा महसूस हो सकता है कि आप के
पाँव तले जमीन निकल गयी हो, लेकिन जोखिम न उठाने पर आप के सामने खुद आपका वजूद खोने
का खतरा हो सकता है।
दोस्तों, २००६ में भारत के राट्रपति के रूप में डॉ कलाम ने संसद में पास हुए लाभ के पद से
सम्बंधित बिल पर हताक्षर करने से पहले वे १८ दिन तक उसे लिए बैठे रहे। हमारे राज
नेताओं द्वारा मिलजुल कर अपनी सुविधा से निजी हित के लिए काम करने से उन्हें चैन
नही पड़ रहा था। उनके सामने विकल्प ये था कि एक बार बिल पर रोक लगा दी जाये और बाद
में वे हस्ताक्षर कर दें, या लम्बे समय के लिए टाल दें, या फिर अपने पद से इस्तीफा
दे कर राजनितिक अस्थिरता पैदा कर दें, जो की वे करना नहीं चाहते थे। काफ़ी सोच
विचार करने के बाद उन्होंने बिल पर हस्ताक्षर कर दिया ताकि परंपरा का निर्वाह हो
सके। उन्हें एहसास था कि लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल अगर यह कानून बनाने पर अड़ा
हुआ है, जो की संविधान की मर्यादा के विरुद्ध है, या जो उनके अपने हित में है, तो
ऐसे में राष्ट्रपति के लिए अपने दायित्व का निर्वाह करना कठिन हो जाता है। इस बंधन
का ध्यान रखते हुए, उन्होंने उसी वक्त जानबूझ कर यह निर्णय लिया कि अब वे दूसरे
कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति बनना स्वीकार नहीं करेंगें, इसके बजाय डेवलप्ड इंडिया
विज़न २०२० के लिए लोगों, खास कर युवाओं के मन में उत्साह भरने में अपना समय बिताएंगे।
बाकि की सारी
जिंदगी जान बूझकर अनजान बने रहने के मीठे दर्द को झेलने के मुकाबले खुद को जानने
की गहरी टीस बर्दाश्त करने के लिए हिम्मत चाहिए।
साहस की तीसरी
पहचान यह है मुश्किलों का सामना होने पर भी डटें रहना। जब हम डर रहें होतें है या
खतरे से हमारा सामना होता है, तो हमें अपने आप को यह नहीं समझना चाहिए कहीं कोई
खतरा नहीं है, बल्कि अपना समय और उर्जा खतरे के बावजूद, आगे बढ़ते रहने के लिए खुद को
तैयार करने पर खर्च करनी चाहिए। मुसीबतों के आगे झुके बिना अगर हम बेखौफ होकर उनके
बीच से रास्ता बनाने का फैसला कर लें तो तमाम रूकावटें खुद-ब-खुद गायब हो जाती है।
जो सही है
उसका साथ देना साहस की चौथी पहचान है।
सबसे बड़े नायक वे होते है जो अपनी जान की परवाह ना करते हुए उसी बात का साथ
देते है जो उन्हें ठीक लगती है। ऐसे निस्वार्थ साहस अपने आप में किसी जीत से कम नहीं
है।
साहस की पांचवी पहचान है, दुनिया को युवाओं
वाले गुण चाहिए—यौवन यानि जीवन का काल खंड विशेष नहीं है, बल्कि वैसी मनः स्थिति,
कड़क इच्छाशक्ति, कल्पनाशीलता की खूबी, डर के मुकाबले साहस की प्रधानता, आराम की
जिंदगी से बढ़कर जोखिम उठाने की भूख। जितना साहस होता है, उसी के अनुपात में जिंदगी
सिकुड़ती या फैलती है।
गरिमा और आस्था
के साथ कष्ट झेलना ही साहस है। साहसी व्यक्ति ही गरिमा और सभ्यता के साथ जीवन की
दुर्घटनाओं को बर्दाश्त करते हुए हालात का पूरा फायदा उठता है। साहस दूसरी तमाम
अच्छाइयों से ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योकि बिना साहस के आप दूसरी अच्छाइयों पर
लगातार अमल नहीं कर सकते। आप किसी भी अच्छाई पर यदा कदा अमल कर सकतें है, लेकिन
साहस के बिना लगातार कुछ भी नहीं कर सकते।
दोस्तों, आप के
सवाल हो सकतें है, कहाँ है साहस ? उत्तर है – निःसंदेह आप के दिल में है, साहस आप
के चरित्र में है। एक राष्ट्र के तौर पर, हमारे लिए यह बहुत जरूरी हैं कि हम सही
किस्म के नेताओं को चुनें, और जो कुछ बुरा हो रहा है और चारों ओर हम जो अन्याय
होते देखतें हैं, उसके ख़िलाफ आवाज़ उठायें।
आप का नज़रिया तभी
साफ हो सकता है, जब आप अपने दिल में झांक कर देखेंगे। जो बाहर देखता है, उसे सपनें
मिलतें है, जो भीतर देखता है वह जाग जाता है।
बुरे से बुरे
समय में बेहतर जिंदगी का सपना देखना और बेहद निराशाजनक स्थितियों में भी अपने
अन्दर छुपी सम्भावानाओं के प्रति जागरूक हो जाना साहस है।
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