नही चाहिये आम बस जान छोड़ दो ! (कहानी)
चिलचिलाती धूप, बगीचे की तरफ भागता हुआ एक बारह साल का लड़का और उसके पीछे दौड़ती एक महिला, जो की घर की मालकिन है , जोर जोर से चीखती हुई, पकड़ो-पकड़ो चोरी करके भाग रहा है।
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चौकीदार भी हार मानने वाला नही था, बस्ती में जितनी भी आठ दस खोलियां थी, सब में जा कर उसने खोजा। आखिर वह मिल ही गया। चौकीदार उस लड़के पर इस कदर लपका जैसे कोई वह बहुत बड़ा डाका डाल कर आया हो। उसने घसीटते हुए अपनी मालिकिन के सामने पटक दिया। मालिकिन के कहने पर उसने लड़के की खूब पिटाई की, तभी वहाँ एक छोटी लड़की दौड़ती हुई आयी, जो रोते रोते कह रही थी,’मत मरो मत मरो।‘ लेकिन उसकी किसी ने नही सुनी और उस लड़के को मार मार कर बेहाल कर दिया। फिर उस लड़की ने झोले में से दो आम निकले और कहने लगी, ‘ये आम ले लो लेकिन इसे मत मारो, मेरे भाई ने ये आम अपनी इस भूखी छोटी सी बहन के लिए चुराए थे। अब मुझे नही चहिये ये आम, लेकिन मेरे भाई को छोड़ दो।‘ यह सुन कर चौकिदार की आखों में आंसू आ गये और उसे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। मैने बिना जाने एक मासूम की इतनी बेरहमी से पिटाई कर दी, सिर्फ दो आम के लिए।‘ फिर भी वो मेमसाहब टस से मस नही हुई और कहा बात सिर्फ दो आम की नही है, इसने अपने कीचड़ भरे पैरों से मेरे संगमरमर के फर्श पर निशान भी बना दियें है।‘
मेमसाहब की ये बात सुन कर चौकीदार ही नही वह लड़का और उसकी बहन भी हैरान हो गये, पर क्या करें कुछ लोगों की फितरत ही ऐसी होती है कि वो अपनी आदतों से बाज ही नही आ सकते। सादगी के लिबास में बेशर्मी का जमा पहने रहतें हैं।
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पूजा आहूजा कालरा (आगरा)
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