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धन्य धान्य पुष्प भरी वसुंधरा ये हमारी (गीत)

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 धन्य धान्य पुष्प भरी वसुंधरा ये हमारी। धन्य धान्य पुष्प भरी वसुंधरा ये हमारी इसमें है ये देश हमारा सब देशों में न्यारा, इसे सपनों से सजाया हमने स्मृतियों से है घेरा  ऐसा देश जहां पे ढूंढे पायेगा न कोई सब देशों की रानी है ये हमारी जन्म भूमि....... ये प्यारी जन्म भूमि, ये हमारी जन्म भूमि...... ऐसी प्यारी नदियां कहाँ , कहाँ ऐसे धूम्र पहाड़ कहाँ खेत हरियाली ऐसी धरती चूमे आकाश, यहां हर भरे खेतों पे डोले पुरवैया हौले हौले। ऐसा देश जहां पे ढूंढे पायेगा न कोई सब देशों की रानी है ये हमारी जन्म भूमि....... ये प्यारी जन्म भूमि, ये हमारी जन्म भूमि...... माँ भाई का प्यार है ऐसा , कहाँ मिलेगा जग में ऐसा  माँ तुम्हारे चरणों को मैं सीने से लगा लूँ, इस देश मे मैन जन्म लिया माँ अंतिम सांस यहां लूँ। ऐसा देश जहां पे ढूंढे पायेगा न कोई सब देशों की रानी है ये हमारी जन्म भूमि....... ये प्यारी जन्म भूमि, ये हमारी जन्म भूमि......      यह गीत धन्य धन्य पुष्पे भरा बंगाली गीत का हिंदी रूपांतरित गीत है जो कि गाने में बहुत ही उत्तम प्रकृति का है।           ...

विवाह गीत (कविता)

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विवाह गीत (कविता) दो सपन आज मिलकर हुए एक हैं, एक ही आज दोनों रतन हो गए। दो जगह जी रहीं एक ही ज़िन्दगी, एक ही हार दोनों सुमन हो गए। चाँद से चांदनी का मिलन है यहां, दो मधुर कल्पनाओं का एकीकरण। मोद का आज दिन हर्ष की रात है, क्योंकि दोनों के पूरे परन हो गए। बालपन की नदी के युगल तीर पै, जो सजाए उमंग की तस्वीर थे। दो किरण की तरह दो हिरण की तरह,  एक ही ठौर चारों नयन हो गए। आज गौरीश को है भवानी मिली, या मिली इंद्र को फिर से उनकी शची। स्वर्ग से देखकर दिव्य पाणिग्रहण, है मगन हर्ष में देवगन हो गए कोई देवाटवी का  प्रखर कल्प तरु, कोई सुर वाटिका की सुधर वल्लरी। आज अनजान पथ के अनोखे पथी, एक ही सूत्र में हो स्वजन हो गए। मुस्कुराती रहे भाग्य की वाटिका, जब तलक हो जहां बीच मंदाकिनी। युग्म बंधन तुम्हारे चिरंतन रहे, जैसे दिनकर उषा के मिलन हो गए। जितेंद्र नाथ पांडेय हिंदी एवं भोजपुरी कवि पूर्व जिलाध्यक्ष शिक्षक संघ, नेहरू इंटरमीडिएट कॉलेज, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

"हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा", "काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ"

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अटल विहारी वाजपेयी जी ने राजनीति में रहते हुए भी अपने जीवन के मानवीय पक्षों को अपने से कभी भी दूर नही किया। वे बहुत ही प्रभावशाली व्यक्तित्व के प्रगति प्रवर्तक राजनेता ही नही है अपितु एक नेक इंसान और एक महान कवि भी रहे ,अपने प्रसिद्ध रचना "हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा", "काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ", जैसीे कविताओं से सभी के ह्रदय को जीतने वाले एक महान रत्न के जीवन के कुछ कविताओं को पढतें हैं।   गीत नया गाता हूँ टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर , पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर, झरे सब पीले पात, कोयल की कूक रात, प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं। गीत नया गाता हूँ। टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी? अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी। हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ। गीत नया गाता हूँ। -अटल बिहारी वाजपेयी आओ फिर से दिया जलाएं  भरी दुपहरी में अँधियारा, सूरज परछाई से हरा, अंतरतम का नेह निचोड़े, बुझी हुई बाती सुलगाएँ। आओ फिर से दिया जलाएं। ...

विवेकानंद तुम जीते जग हारा (कविता)

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विवेकानंद तुम जीते जग हारा,  तेरे कारण धन्य हो गया, भारत वर्ष हमारा।  विवेकानंद तुम जीते जग हारा। पूज्य हुआ संपूर्ण विश्व में,  हिंदू दर्शन सारा,  संतो के सिरमौर तुम्हें ही  जब सब ने स्वीकारा। विवेकानंद तू जीते जग हारा।  शहर शिकागो प्रणत हो गया,  सबने कसा किनारा,  तुमने सबके बीच बहा दी।  सम्मोहन की धारा।  विवेकानंद तुम जीते जग हारा।  हे! युग पुरुष, विश्व विजय तू,  हे! भारती दुलारा,  हे नरेंद्र, हे भारत नंदन,  वंदन नमन तुम्हारा।  विवेकानंद तुम जीते जग हारा।                              - जितेंद्रनाथ पांडेय  पूर्वी जिलाध्यक्ष शिक्षक संघ, नेहरू इंटरमीडिएट कॉलेज, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

हिंदी तुझे प्रणाम

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हिंदी तुझे प्रणाम, हिंदी तुझे प्रणाम.... जन जन की भाषा, मन की भाषा, करते हैं तुझे सलाम . हिंदी तुझे प्रणाम ...... *तुझसे ही सीखा है हमने , गिर कर उठना उठ कर चलना -2   तुझसे ही सीखा है हमने , अपनी संस्कृतियों में पलना-2 अपने मूल्यों की है रक्षक , भारत की पहचान .... हिंदी तुझे प्रणाम ......हिंदी तुझे प्रणाम..... *वीर शिवा जी की गाथा में  हर जन जन मन की कथा में -2 तेरे ही तो तान ............. हिंदी तुझे प्रणाम ....हिंदी तुझे प्रणाम ....... * भारत की गौरव गान है तू  हम सब का अभिमान है तू -2  हर भाषा की वरदान ...... हिंदी तुझे प्रणाम ....हिंदी तुझे प्रणाम *मिला सहारा सम्बल तुझसे  और मिला अवलम्बन तुझसे -2 सब गायें तेरा गान ....... हिंदी तुझे प्रणाम .....हिंदी तुझे प्रणाम...... * हिंदी तुझमे बहती रसधार   भारत की तू जीवन आधार -2   तुझको ही पाया है सबने , गए जो चारों धाम     हिंदी तुझे प्रणाम .... हिंदी तुझे प्रणाम........             ...

लड़की हूँ....

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पी रही हूँ सारे अश्कों को भुला रही हूँ सारे ज़ख्मो को दम घुटते रीति रिवाजो को अधरों पर सी रही हूँ...... लड़की हूँ ....बस जी रही हूँ........। उलझकर रस्म रिवाजो में  खोखली संस्कारी इरादों में घुटती संस्कृतियों को पी रही हूँ लड़की हूँ......बस जी रही हूँ.........। जब देखा अतीत के पन्नों को बचपन के प्यारे सपनोँ को  कुछ ने दी उदासी , तो कुछ से  खुशियां चुन रही हूँ  लड़की हूँ......बस जी रही हूँ........। मिली भर्त्सना प्रताड़ना ही जिससे ऐसी ब्यथा कहू किससे ?? इस निर्मम समाज की गाथा  अल्फाज़ों  में सी रही हूँ..... लड़की हूँ ..... बस जी रही हूँ.........। देवी रूप दे बना दिया महान  क्षम्य नही कोई त्रुटि मान लिया जहान त्रुटियाँ जो हुई मुझसे  गरल रूप में पी रही हूँ...... लड़की हूँ ....बस जी रही हूँ..........। शिल्पी पाण्डेय लखनऊ ( यू. पी.)

गुरू (कविता), शिक्षक दिवस पर विशेष

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निस्वार्थ भाव से जल कर जो    देता है सबको दिव्य प्रकाश  उनकी चरणों में वंदनवार  करते हैं ये धरती आकाश मन के कोरे कागज़  अंकित कर दे जो अमिट छाप ऊर्जा का भर अद्भुत सागर  करे दूर अज्ञान का अभिशाप बचपन के बगिया का माली  करता जीवन की रखवाली  रस सींच सींच कर पौधों को  कर देता सबका प्रिय आलि ऐसे शिक्षक की वंदना  करता ये तन मन प्राण है भू पर गुरू के रूप में  जो मिला हमे भगवान है ।               भारत के सभी शिक्षकों को मेरा शत शत नमन ।।। शिल्पी पाण्डेय लखनऊ  यू. पी. 

माँ ( जन्नत है माँ के क़दमों में )

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"मैंने अब तक जितनी भी महिलाओं को देखा, उनमे मेरी माँ सुन्दर थी। मैं जो कुछ भी हूँ,अपनी माँ की बदौलत हूँ। अपने जीवन में मिली सारी सफलता का श्रेय, मैं उस नैतिक, बौद्धिक और शारीरिक शिक्षा को देता हूँ, जो मुझे उनसे मिली।" -जॉर्ज वाशिंगटन      इस पुरुष प्रधान व्यवस्था में जो समाज के हर स्तर पर सोच और व्यवहार पर हावी है,जीवन दायिनी, जीवन रक्षक, पालक, पोषक, संवेदनशील, करुणामयी, मिल बाँट कर चलने वाली, स्त्री शक्ति की गहरी घनी ऊर्जा की जान बूझकर निरंतर उपेक्षा की गयी, अनादर किया गया, उस पर चोट की गयी, अपमानित और तिरस्कार किया गया, उत्पीड़ित किया गया है, और उसकी हत्या की गयी है।      अब समय आ गया है, जब प्रेम और करुणा जैसे उन भावों की क़ीमत समझी जाये। जो मिलबांट कर दूसरे का ध्यान रखते हुए, शांतिपूर्ण ढंग से जीने के लिए प्रेरित करतें है। जस्ट वंस की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार है- एक गीत जान डाल सकती है पल में एक फूल जगाये स्वप्न उनींदे आँचल में। होवे शुरू एक पेड़ से विशाल वन्य प्रदेश ला सकता है एक पंछी वसंत का संदेश। दोस्ती का...

दामिनी

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दामिनी तेरा दमन हुआ, हम सब को यही अब गम है। दमके अब तू नक्षत्र सा नभ में, हम सब की आखें नम है। क्या कसूर था तेरा, क्या लिया था तूने किसी का, बस यही की तू एक लड़की थी, या फिर, ये की तूने स्वतंत्र होकर जीना सीखा। बस यही की तू किसी क़ी धाती थी,या फिर, तू बेटी का धर्म निभाती थी। तेरे नयनों के अश्रु चुभते है सीने में, मै भी एक बेटी हूँ सोच कर लगता है , अब क्या रखा है जीने में ? हम जिंदा है , इसलिये नही कि हमें जीना है, तेरे जज़बातों के दहकते अल्फाजो को हमें पीना है । दामिनी तू निर्भया है, वीरांगना है, यह सब देख सब की आहें कम है। दमके तू नक्षत्र सा नभ में, हम सब की आखें नम है।                                      - शिल्पी पाण्डेय

उम्र

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उम्र के दराजो ने , आज अपना हाथ छोड़ दिया। जब खुद ने, खुद का हाथ छोड़ दिया तो, और क्या हाथ थामेंगे ! अपने उम्र के अनुभव भी , आज काम न आ सके। नये पीढ़ी के लोगों ने, अनुभवों में , मिश्रित अभिव्यक्ति ला दी है। वो कहते है, जहाँ लक्ष्मी है। वहाँ सब कुछ है आज। पर वे भी जान जायेंगे उस समय, लक्ष्मी की महत्ता को। पुरानी यादों के सिवा, कुछ नही मिलेगा। बस जो है उससे आनंद लो, कि कल का पश्चाताप न हो ।                         - विकास पाण्डेय  मनःस्थिति -              दोस्तों, वृद्धावस्था एक प्रकार से बाल्यावस्था की तरह ही होता है, दोस्तों, ये वही समय है जब हम अपनी उऋिणता का प्रयास करते है । आधुनिकता के दौर ने हम सभी को स्वार्थी बना दिया है, समय के साथ अनुभव भी बदलते रहतें है, आने वाली पीढियों ने अनुभवों में भी बदलाव लाया है । यह अनुभव एक मिश्रित अभिव्यक्ति के रूप में आ जाती है, परन्तु पुराना अनुभव ही नये की आधारशिला बनती है , इसलिए ये आवश्यक नही की नवीन अनुभव ...

मन चंचल है

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मन चंचल है, निश्चल है, पारिस्थितिक शाखित है। निर्द्वंद चिन्ताहीन, और शोधित कर्मो पर भी, निश्चचेतित है। मन स्वच्छ नीर है, प्रतिविम्बित है समाज मे, मन वह दर्पण है। मन भाव है, साथ लिए अभाव, ऐसा स्वभाव है। मन अश्व है, मन ही सर्वश्व हैं मन सर्व है, मन ही गर्व है मन ईश्वर है, स्वयं का परमेश्वर है बाल स्वरुप, सर्व धन रूप है मन क्षम्य है, फिर भी अदम्य है मन ज्ञात है, फिर भी अज्ञात है।                  -विकास पाण्डेय मनः स्थिति -        दोस्तों, मन के कई भाव होतें है, जो विभिन्न परिस्थितिओं में परिस्थिति के अनुसार उत्त्पन्न होतें है । एक सुन्दर से बगीचे में बैठ कर, प्रकृति भाव को देखने का प्रयास कर रहा था । निश्चल मन के बालक , खेलते हुए ऐसे प्रतीत हो रहे थे ,मानो चंचलता के सारे गुण ईश्वर ने नन्हे बालको को दियें हो स्वच्छ नीर ह्रदय वाले वे स्वयं ,जगत को भी चमका रहे थे , सभी को आनंदित कर रहे थे । मन अनंत है, उसकी पूर्ति अभाव में  रहती है। पल में यहाँ है त...

नीर ह्रदय

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क्षोभित हो जाता हूँ , परिस्थितियों से । सोचता हूँ , ब्रह्म हो जाऊं। पीड़ा हर के लिए, दीनता हीनता , नष्ट हो जाये। परिष्कृत ह्रदय, बन जाये। दीर्धकालीन, ह्रदय , करुणा, और दया का, सामना न करे। ईश्वर तम में, निर्वात में भी, सहज है । सांत्वना है, तुम हो। सोचता हूँ, तुम हो, देखते हो सब, करोगे न्याय, जब होगा अन्याय ।                                              - विकास पाण्डेय मनः भाव -      प्रिय मित्रों आपने राह चलते दीन हीन भिक्षुकों को देखा ही होगा । मानवतावादी एवम् मनुष्य होने के नाते ह्रदय सहम जाता है ,ऐसी परिस्थितियाँ किसने उत्पन्न की ? कहाँ से आएं है ? ये लोग यहां क्यों बैठे है ? दोस्तों, हम सभी ईश्वर के ही रूप है ,ये प्रकृति हमारी जननी है , हम सभी इसी के रूप है । हम सभी ये सब देखते है ,परंतु समय की कमी, आवश्यक कार्य होने के कारण उनकी सहायता करने में असमर्थ रहते है । हम सभी मनुष्य है ,और मानवता हमारा धर्म है। इसलिए अपना कर्तव्य समझ...

लिखता हूँ पर , अभिव्यक्ति नही पाता हूँ ।

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लिखता हूँ पर , अभिव्यक्ति नही पाता हूँ । सोचता हूँ पर , शक्ति नहीं पाता हूँ। सत्य शोधित कर्म पर, वह सृष्ठि नही पाता हूँ। मंथन करता हूँ पर, वो भक्ति नही पाता हूँ। क्रम बद्ध कृतियों के, संयम तट पर, लहरें आती है, कुछ लेकर कुछ, दे जाती है। कर्ता तो वह है, और हम कर्म है। लिखता हूँ पर, अभिव्यक्ति नही पाता हूँ। लहरों की उथल पुथल, समय का बदलाव है। धारा की तरंगें , मन का उन्माद है। खोजता हूँ पर, इच्छित नही हो पाता हूँ । लिखता हूँ पर , सृजित नही हो पाता हूँ ।                              - विकास पाण्डेय

विचार ही , प्रेरणा देते है ।

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मेरे विचार ही , प्रेरणा देते है, स्वयं को । सत पथ, बनाये रखते है, विचलित होते है, जब पथ से। नई ऊर्जा, नया विश्वास देते है। जब भ्रमित होतें है, अपने पथ से। तुम ही सार्थक हो, जीवन का। जो निर्थक होने से वंचित करता है, सकारात्मक हो जाते है, जब कभी, मनोन्माद में होते है। हे ! विचार , धन वैभव हो तुम। प्रेरणा का अनंत, श्रोत हो तुम। बनाये रखना, साथ सदैव, अपने धन वैभव का।                           - विकास पाण्डेय मनः स्थिति -               दोस्तों विचार हमारे मन की उपज होती है हम जैसा सोचते है वैसा ही हमारे मन में तेज आता है। कई लोग ईश्वर के अस्तित्व को नही मानते है ,परन्तु जब आप दुःख और विषाद वाली परिस्थितियों में होंगे एक प्रेरणामयी श्रोत आप का मार्ग दर्शन करेगी ।       दोस्तों ऐसी कोई दैवीय शक्ति ज़रुर है जो हमे दुःख. भ्रमो एवं विषादो से दूर रखती है। हमारे मन की द...

विचार

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आत्मविश्वास, नया प्रकीर्णन है । नव उत्साह, एक नव उमंग है । नव प्रभात, चमकीली सी किरण शीतल मंद हवा, मधुर सी शरण, विचार वैभव है। उत्साह नया, पल में जाग्रत, अपलक है । गंभीर अनुभव, संवेदन हमारा है । कृतियाँ नई सी, चिर अनंत है ।                     - विकास पाण्डेय

मन है एक आकृति बनाऊँ

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मन है एक , आकृति बनाऊँ, एक सुन्दर सी कृति बनाऊँ। जी लूं जीवन का सार मैं, एक छोटा सा घर द्वार मैं। मानवता का द्वार सजाऊँ, मन है एक , आकृति बनाऊँ। संघर्षों की क्रमबद्ध कृतियाँ, मानव जीवन की संस्कृतियाँ। सबका आदर मान दिलाऊँ , मन है एक , आकृति बनाऊँ। जीवन का गीत सारबद्ध, हो जीवन एक करबद्ध। एक सुंदर सी कृति बनाऊँ, मन है एक , आकृति बनाऊँ। प्रेम भाव हो सब के मन में, सब कर्मठ हों जीवन में। ऐसी मर्यादा का मान दिलाऊँ , मन है एक , आकृति बनाऊँ।                            - शिल्पी पाण्डेय

जिंदगी हो अमन चैन की

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जिंदगी हो अमन चैन की, ईश ऐसा ही वर दीजिये। कर सकें कुछ किसी के लिए, भावना ऐसी भर दीजिये। छोड़ वेदों पुराणों को हम, आज दर दर भटकने लगे, पा सकें कुछ कहीं रौशनी, बुद्धि ऐसी प्रखर दीजिये। कर सकें कुछ किसी के लिए, भावना ऐसा भर दीजिये। देवताओं की प्यारी धरा, यह समुंदर ,नदी, शैल ,वन, दें सकें इन पे क़ुर्बानियाँ, वह कालेज निडर दीजिये। कर सकें कुछ किसी के लिए, भावना ऐसी भर दीजिये। जिंदगी हो अमन चैन की, ईश ऐसा ही वर दीजिये।

प्रथम प्रयास

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पैर डगमगाते है , प्रथम प्रयास में। शिथिल हो जाते है, मन के उन्माद में। शितित हो जातें है, द्वितीय विकास में। कम्पित हो जाते है, अंतिम अहसास में। कृतियाँ नव गागर है, एक नव संचार में। पैर कम डगमगाते है, मन के आभास में। पैर डगमगाते है, केवल प्रथम प्रयास में।                        - विकास पाण्डेय

खोया हीरा

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मैंने आज एक हीरा देखा , खोज रहा था जो खुद को, नदी में बहता ,कूड़ो के साथ, मैंने एक जागीरा देखा । खिल खिलाता संभालता, अपने बोरों को, हीरों की खोज में जलता हुआ, मैंने एक कबीरा देखा । दुर्गम रास्तों को पाकर, खुश था वो जान कर । आज सोना मिलेगा, जीवन में एक खिलौना मिलेगा । मन भर खेलूँगा, एक जीवन पिरोलूँगा । जीवन फिर भर जायेगा, सुखद क्षण फिर आयेगा । चिंतित था जान कर, मुझे पहचान कर, सार्थक न हुआ आना, कृतियाँ मत बताना ! कल न आ पाउँगा, कल व्यस्त हो जाऊंगा, फिर वापस काम पर जाऊंगा । ढूढुंगा फिर से हीरा, आयेगा फिर वही सवेरा।                       - विकास पाण्डेय

खोज

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खोज है मुझे उनका, जिनका जीवन सत्य हो । कठिनाइयों से भरा जीवन, ज्ञान का प्रभुत्व हो । खोज सच्चा हो, मन एक बच्चा हो । कृत्रिमता न हो जिनमे, ऐसा उनका सत्व हो । जीवन दान दिया हो , ऐसा प्रभुत्व हो । संघर्षशील जीवन, वास्तविक कर्मठता हो । सजीवता हो जिनमे, ऐसी सरलता हो । कर दे प्रबुद्ध, ऐसा ,मन शुद्ध हो।                                    -विकास पाण्डेय