बुढ़िया की बानी ( कहानी)



बहुत ही रमणीय जंगल में एक सुन्दर सा स्थान था। उस स्थान पर एक साधू रहते थे। वे बड़े मर्यादित ढंग से जीवन जीते थे, प्रातः-संध्या में वे अपने पास के छोटे से खेत में, अत्यधिक परिश्रम करते, मेहनत कर के सब्जियां उगते थे, परन्तु वहाँ प्रतिदिन पशु-पक्षी आते और उनके खेत को तहस नहस कर जाते ,साधू पूर्ण रूप से उनके आतंक से परेशान हो गये थे। इन्ही सब कारणों से उन्हें पशु पक्षियों से घृणा होने लगी थी।
        एक दिन की बात है। साधू एक घर की ओर से गुजर रहे थे, तभी उन्होंने देखा की एक वृद्ध महिला पशु पक्षियों को भगाने के लिए मचान पर बैठी थी ,लेकिन पशु पक्षियों के आने पर भी, उस वृद्ध महिला ने उन पशु पक्षियों को नही भगाया। साधू से न रहा गया। साधू उस वृद्ध महिला के पास चले गये और उनसे प्रश्न किया-“माता , पशु पक्षी आप का इतन व्यय कर रहें है, आप इन्हें भगा क्यों नही रही?” वृद्ध महिला ने उत्तर देते हुए बोला -“ साधू देवता ,भगवान ने इन पशु पक्षियों को भी बनाया है, कही न कही ये हम पर निर्भर है और हम भी इन पर ही निर्भर है। ये भी प्रकृति के साथ मिलकर हम से ही संपर्क स्थापित करते है। इन के भी पेट है इन्हें भी अपना पालन पोषण करना है प्रकृति की इन वस्तुओं पर इनका भी हक़ है, यदि हम ही इनका ध्यान नही रखेंगे तो और कौन रखेगा ? इन पर दया करना हमारा धर्मे है। साधू को बातें समझ में आ रही उसे ये लग रहा था, “ मैं वास्तव में दोषी हूँ, वे भी जीव है, उनका भी प्रकृति पर समान अधिकार है, जितना हमारा है।“ उस दिन से साधू का जीवो के प्रति नकारात्मक विचार बदल गया।
      दोस्तों, जीवों पर दया करो ,जीवों से प्रेम नही। हम मनुष्य इस धरा पर मानवता के आदर्श है। प्रकृति ने जीवों को भी बनाया है। हम और जीव कही न कही किसी न किसी रूप से एक दूसरे पर निर्भर है, इसलिए दोस्तों ,हमे सभी जीवों के प्रति सद्भावना रखना है।

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