अंतर्र की ललकार (कहानी)

एक गांव में एक राक्षस रहता था। वह बहुत अलसी था। अपना भी काम करने में उसे बहुत आलस आता था। वह जब भी गांव जाता ,सभी अपने घर में घुस कर छुप जाते ,कोई भी नही दिखता। एक दिन उसके दिमाग में एक विचार आया क्यों न पास के गांव में चल कर, किसी को पकड़ कर लाया जाये, जो हमारा सारा काम करे। 
          अगले दिन वह गांव की ओर निकला सौभग्य वश उसे एक व्यक्ति मिल गया राक्षस उसे पकड़ कर अपने निवास स्थान पर लाया। निवास स्थान पर लाने के बाद राक्षस ने उसे डरना शुरू कर दिया। उसने उसे एक शर्त पर उसकी जान बख्शने को कहा । शर्त यह थी की वह व्यक्ति राक्षस का सारा कार्य करेगा और वहां से भागने का प्रयास नही करेगा। व्यक्ति ने अपनी जान बचाने के डर से शर्त मान ली। अब वह राक्षस का सारा कार्य करने लगा। वह व्यक्ति चौबीस घंटे उनकी सेवा में लगा रहता, उसकी सेवा करता । राक्षस मन ही मन बहुत खुश था, अब वह बड़े आराम से रह रहा था। करीब एक महीने गुजर जाने के बाद राक्षस रोज की तरह शिकार के लिए गया। व्यक्ति राक्षस के काम से पूरी तरह से त्रस्त हो चुका था। उसने वहाँ से भागने की सोची और वहाँ से भाग गया। कुछ दूर चलने के बाद वह था गया और आराम करने लगा। उधर राक्षस आया तो उसने देखा व्यक्ति तो वहां से भाग चुका था। वह बड़ी ही तेजी से गांव की ओर भागा। आधी दूरी चलने के बाद उसने देखा की वह पेड़ के नीचे विश्राम कर रहा है। राक्षस पुनः उसे पकड़ कर अपने निवास स्थान पर लाया। और उसे चेतावनी दे कर छोड़ दिया क्यों कि उससे राक्षस को अपना काम भी करवाना था।
         व्यक्ति का मन दुखित था, वह काम कर कर के थक चुका था। वह कुछ देर एकांत में बैठ कर मनन करने लगा । अचानक से उसके मन से एक अन्तः की ललकार आई , ऐसे दब के कब तक रहोगे ? समाज जितना तुम्हे दबायेगा, तुम उतने ही दबते जाओगे, कब तक स्वयं को दबाओगे? गीदड़ की तरह क्यों भागते हो? हिम्मत है तो सामना करो राक्षस का बताओ की उसके द्वारा किया गया कार्य गलत है। साहस से मुकाबला करो उसका। वह उठा और राक्षस के सामने जा कर उँचे स्वर में बोला - " दानव तुम्हे मुझे खाना है ,तो खालो, मैं नही मना करूँगा अपने पेट की क्षुधा शांत कर लो। मैं अपने शरीर का दान करता हूँ तुम्हे। यह सब सुनकर राक्षस मन ही मन डर गया वह सोचने लगा इसे खा जाऊंगा तो मेरा काम कौन करेगा ? उसने सोचा चलो इसे छोड़ कर किसी दूसरे को इसी के द्वारा लाऊंगा। वह व्यक्ति को स्वतंत्र कर देता है , अब वे एक दूसरे के मित्र बन जाते है, और वह व्यक्ति उसका कार्य ख़ुशी ख़ुशी करने लगता है।
         दोस्तों, जीवन में सदैव सम और प्रसन्नचित्त रहे। दब्बू कभी न बनें , पल पल का आनंद ले। गलत का सामना करने का साहस रखें। साहसी बने, निडर बने, आलस्य का त्याग करें और किसी भी कार्य को तन्मयता के साथ करे। एक दिन अवश्य आप सफलता की राह पर होंगे।



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