पहले अपने आप को पहचानें (कहानी)

एक बार की बात थी, एक विद्यालय मे दस बच्चो का समूह था। वे सभी एक स्थान पर बैठकर एक दूसरे से बात कर रहे थे। सभी ने एक जगह जाने की योजना बनाई। उन्होंने यह योजना बनाई कि -सभी अगले दिन सुबह दस बजे एक स्थान पर इकट्ठा होंगे । अगले दिन सुबह, वे सभी एक स्थान पर इकट्ठा हुए। बच्चो ने अपनी गिनती शुरु की, लेकिन वे जब भी गिनते तो कुल संख्या नौ ही आती। दूसरे बच्चे ने भी गिना लेकिन फिर भी कुल संख्या नौ आयी। इस प्रकार उन बच्चो मेँ कोई भी अपनी संख्या गिनता, तो संख्या नौ ही आती। इस प्रकार वे सभी अपने आप को गिन गिन कर परेशान हो जाते लेकिन कुल संख्या दस नहीँ आती। उसी रास्ते से एक व्यक्ति जा रहा था। उस व्यक्ति ने बच्चो को देखा और देख कर सारी बातेँ समझ गया। वह व्यक्ति उनके पास गया और बोला बच्चो आप को क्या परेशानी है? क्या मैँ आपकी सहायता कर सकता हूँ ? बच्चो ने अपनी पूरी बात बता दी। उस व्यक्ति ने कहा- आप सभी एक लाइन मे खडे हो जाएँ मैं आप सभी को एक एक करके गिन लूँगा। सभी बच्चो ने ऐसा ही किया। उस व्यक्ति ने सभी बच्चो को गिना। सभी बच्चो की संख्या  कुल मिलाकर दस आ रही थी। जब संख्या दस आ गई तो सभी बच्चो के खुशी का ठिकाना न रहा, परंतु बच्चो को यह नहीँ समझ मेँ आ रहा था कि -उनके द्वारा की गई गिनती सही क्यूँ नहीँ आ रही थी? इसका कारण नहीँ मिल रहा था। लेकिन उस व्यक्ति ने बताया की  जब वह गिनती करते तो खुद को नहीँ गिन पाते थे, इसी कारण उन सभी की कुल गिनती नौ ही आती थी।
        दोस्तों, हम सभी का जीवन भी इसी प्रकार का होता जा रहा है। हम अपनी महत्ता को भूलते जा रही है, हम खुद को नही पहचान पा रहे है। जरुरत है, पहले अपने आप को पहचान की। पहले स्वयं को समय देने की।

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