मनुष्यता ही सर्वोपरि धर्म है। (स्वामी विवेकानंद के संस्मरण पर आधारित )
मनुष्यता ही सर्वोपरि धर्म है।
(स्वामी विवेकानंद के संस्मरण पर आधारित )
एक बार एक सज्जन पुरुष ने स्वामी विवेकानंद से पूछा कि- स्वामी जी, हमें सिखाया जाता है कि, ईश्वर व अल्लाह एक है। यदि वह एक है, तो इस दुनिया को उसी ने बनाया होगा। यदि उसी ने बनाया है, तो फिर उसने इतने अलग-अलग प्रकार के मनुष्य क्यों बनाए? यदि सभी एक समान होते तो, कभी लड़ाई झगड़ा नहीं होता।
स्वामी जी ने कहा- महाशय जरा सोचिए! यह संसार कैसा होता? अगर उसमें एक ही प्रकार के फल -फूल, एक ही तरह के खाद्य पदार्थ होते? ईश्वर ने इसलिए तो अनेक प्रकार के खाद्य, फल - फूल आदि बनाए। अनेक प्रकार के जीव जंतु और मानव बनाए, ताकि हम एक साथ रहते हुए एकता के महत्व को पहचान सकें।
सज्जन ने पुनः सवाल किया- "स्वामी जी ऐसा क्यों है कि, एक धर्म में कहा गया है, कि यह खाओ और दूसरे में कहा गया है कि यह मत खाओ। हद तो तब होती है, जब कुछ समुदाय के लोग कहते हैं कि मना करने पर जो इसे खाए, उसे अपना शत्रु समझो।"
स्वामी जी ने मुस्कुराते हुए कहा- मित्र! किसी भी देश या प्रदेश का भोजन वहां की जलवायु पर निर्भर करती है। समुद्र के तट पर रहने वाला मानव, वहां खेती-किसानी नहीं कर सकता। वहां अनाज, सब्जी-फल आदि नहीं उगाये जा सकते हैं, इसलिए वह समुद्र से मछलियां ही पकड़ कर खाएगा। ठीक इसके विपरीत, उपजाऊ जमीन में निवास करने वाले मानव अन्न फल, शाक-सब्जी उगा सकते हैं, उन्हें अपने खेतों में जानवर उपयोगी लगते हैं। वह अपनी धरती, नदी, गाय आदि को अपनी माता माना है, क्योंकि इन सब से उनका पालन पोषण होता है।
अब जहां मरुस्थल है, वहां अनाज कैसे पैदा होगा ? अब जब अनाज नहीं होगा तो मांसाहार ही खाएंगे। तिब्बत में शाकाहार पर कोई कैसे जीवित रह सकता है? ठीक इसी प्रकार अरब देशों की स्थिति है, जहां कृषि योग्य भूमि नहीं हैं, वहां मांसाहार स्वाभाविक है।
स्वामीजी ने आगे कहा कि- हिंदू कहते हैं कि मंदिर में जाने से पूर्व स्नान करना चाहिए। मुसलमान कहते हैं कि- नमाज पढ़ने से वजू करना चाहिए। क्या यह सब बातें ईश्वर या अल्लाह ने कहा है? नहीं! यह सब मानव ने जलवायु एवं संसाधनो के अनुसार नियम बनाया है। जहां पानी की उपलब्धता नहीं है, वहां रोज स्नान करना संभव नहीं है। ठीक इसी प्रकार जहां का मौसम वर्ष पर्यंत सर्द होता है, वहां भी स्नान करना संभव नहीं हैं।
भारत में कई नदियां बहती हैं। झरने तालाब कुँए आदि मौजूद हैं, इसलिए यहां प्रतिदिन स्नान करना संभव है। यह सब प्रकृति ने मानव को समझाने के लिए किया है।
जब मानव की मृत्यु होती है। तब शव का अंतिम संस्कार किया जाता है। अरब व खाड़ी देशों में वृक्ष नहीं होते हैं, वहां केवल रेतीली जमीन है, इसलिए वहां पर शवों को दफनाने का प्रचलन हुआ। भारत जैसे देश में वृक्ष एवं लकड़ियों की बहुतायत है, अतः भारत में अग्नि संस्कार का प्रचलन हुआ। जिस देश में जो संसाधन मौजूद थे, वहां उसी प्रकार प्रचलन का विकास हुआ।
स्वामी जी ने गंभीर मुद्रा में कहा- फल की दुकान पर जाकर देखो! तुम पाओगे कि -वहां नारियल, केला, आम, अंगूर तथा संतरे आदि फल बिकतें हैं। परंतु उस दुकान को फल की दुकान ही कहा जाता है। जबकि वहां अलग-अलग प्रकार के फल रखे होते हैं।
स्वामी विवेकानंद जी ने उस सज्जन को समझाते हुए कहा कि, "अंश से समग्र की ओर चलो, तुम पाओगे की, सब उसी ईश्वर के रुप में हैं।"
"ईश्वर की माया को समझना आसान नहीं है। सभी धर्मों और मतों का गंतव्य स्थान एक ही है। जिस प्रकार सभी नदियां विभिन्न मार्गो से होकर समुद्र में जा मिलती है, उसी भांति विभिन्न मत मतांतर उसी परमात्मा की ओर ही हमें ले जाते हैं। मानव जाति एवं मानव धर्म एक है, और मानवता सर्वोपरि धर्म है।"
"ईश्वर की माया को समझना आसान नहीं है। सभी धर्मों और मतों का गंतव्य स्थान एक ही है। जिस प्रकार सभी नदियां विभिन्न मार्गो से होकर समुद्र में जा मिलती है, उसी भांति विभिन्न मत मतांतर उसी परमात्मा की ओर ही हमें ले जाते हैं। मानव जाति एवं मानव धर्म एक है, और मानवता सर्वोपरि धर्म है।"
-संकलन
ज्योति भूषण पांडेय
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें