फूलो को चुन

दिन के उजाले में रात को न भूल ,
सुख के आशियाने में दुःख को न भूल ।

जीवन एक बगिया है जिसमे काँटे है और फूल,
काँटे को छोड़ कर फूलो को चुन ।

जो देखा एक सपना कुछ कर गुजरने का ,
हौसलों के पर से असमान में उड़ने का ,
तो लग जा तू दौड़ में उन सपनों को बुन ,
काँटो को छोड़ कर फूलो को चुन ।

जो हृदय में गर है तेरा स्वाभिमान ,
जग जा तू नींद से भूल जा अभिमान।
दिल है दिमाग भी इन दोनों को सुन ,
काँटो को छोड़ कर फूलो को चुन ।

क्यों सहता तू अनाचार अत्याचार ,
तू मनु की संतान है कुछ तो कर विचार ,
भर जीवन में नव रंग छोड़ दो नयी कोई धुन ,
काँटो को छोड़ कर फूलो को चुन।

                                   - शिल्पी पाण्डेय ' रंजन '




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