मानवता ह्यास

क्या नही देखता कोई ?
उन दुर्बल शरीर को।
उन दीन मजबूर अमानवीय तस्वीर को,
ह्यास किया है मानव का,
अपनी मानवता का।
ऐ कुटील ह्रदय !
अब सम्हल जा,
नही दूर वो दिन जब ,
तू पायेगा वो पल,
तब सम्हल आयेगी,
वो कृत रहित अक्ल।
एक जीते हुए अनुभव को,
नाहक दिशा दिखाते हो,
अपने ह्रदय से पूछ,
ग्लानि नही होती ?
उन झुर्रियो से,
बहलाती आत्मीयता भी नही होती ?
                                   -विकास पाण्डेय




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