जीवन सुख दुःख

जीवन सुख दुःख का संगम है,
नही किसी को बहुत अधिक,
नही किसी को कम है।

सागर में उठती लहरे जैसी ,
सुख दुःख का व्यूह भी है वैसे।
न स्थिर है कुछ भी यहाँ ,
जीता जंग उसी ने ,
जिसने हँस कर दुःख सहा।
है पार लगाने वाला ,
तो फिर क्या गम है।

जीवन सुख दुःख का संगम है,
नही किसी को बहुत अधिक ,
नही किसी को कम है।

आओ मिलकर करे अथक प्रयास,
न हो जीवन में कभी निराश,
जो भी सीखा इस श्रृष्टि से,
करें समर्पित हम उसे ख़ुशी से।
चलता रहता यह चक्र ,
सारा नियति का नियम है।

जीवन सुख दुःख का संगम है,
नही किसी को बहुत अधिक,
नही किसी को कम है ।
       
                             -   शिल्पी पाण्डेय 'रंजन'

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