पितृ मन
सागर की गहराइयो से भी गहरा हूँ ,
लहरो की उफान से भी उँचा।
दिखता नहीँ ममता के ममत्व जैसा ,
जो सोच है मैं हूँ नही वैसा।
करता नही मर्म इतना ,
पर तेरे बिना जी नही लगता।
गले लगा कभी, साथ खड़ा हो ,
स्नेह आतुर हूँ मैं देख कितना।
दोस्त बन मेरा, निःशब्दता समझ ,
मेरे मन की व्यथा समझ।
नही बताता ह्रदय व्यथा ,
कभी माँ जैसा भी सम्मान दे।
कर दे कृतार्थ मुझे अपनी समझ से,
अपनी दुनिया में भी मुझे मान दे।
ममतामयी स्नेह मुझे नही आती ,
करता हूँ कृत्रिम पूर्णता तेरा।
तेरी ही उऋणता के लिए ,
फिर भी रहता हूँ अधूरा।
लगना चाहता हूँ गले , चाहता हूँ वो मान।
वो ह्रदय का कोना वो स्वप्न सलोना।
अखंड वैभव का वो परिवेश ,
जो सदा याद रहे और रखे।
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