जीवन नियम
राह किनारे एक अंधा याचक बैठा हुआ था। एक राहगीर ने दयावश उसे एक पचास का नोट दे दिया। इससे पूर्व कभी किसी ने अंधे को इतनी बड़ी मुद्रा दान में न दी थी सो उसे लगा कि किसी ने उसे कागज दे कर ठिठोली की है । वह उस नोट को फेकने ही जा रहा था कि वहीँ से गुजरते सज्जन ने उसे कागज का मूल्य समझाया और सहेज कर रखने को कहा। सत्य पता चलने पर याचक बड़ा प्रसन्न हुआ और मन ही मन उस दयालु व्यक्ति को धन्यवाद देने लगा। मनुष्य भी बिना बोध हुए उस याचक की तरह व्यवहार करता है और परमात्मा के दिए अनगिनत उपहारों का मूल्य नही समझ पाता । यदि हमें जो मिला है हम उसका समुचित उपयोग कर पाये तो हमे पता चलेगा की उसकी कोई कीमत नहीं, मनुष्य जीवन ही बहुमूल्य है।
"कर्म तत्व प्रधान,
ब्रम्ह तत्व विधान ,
धर्म तत्व सहाय,
वाक तत्व अटूट ।"
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