मित्र

जब कभी मुश्किलो में था ,उसी ने राह दिखलाया ।
कोई उलझन जो आई ,उसने ही सुलझाया।

वह अमूल्य श्वेत मोती, शिल्प की दिव्य ज्योति।
दोस्त के रूप में ,मैंने जिसको पाया।

वह ध्यान रखता मेरा ,हर छोटी बड़ी ख़ुशी का।
वह भूल जाता सारा गम, खाया जो कभी धोखा।

देता साथ मेरा ,वो हर भले बुरे समय।
कभी पान कर लू विष, तो बन जाये अमृतमय।

कभी डॉटता ,तो लगता है कोई अपना।
कभी जो देता कोई प्रेरणा ,तो लगता मधुर सपना।

करू मैं शुक्रिय उस ईश का,दिया जो ऐसा मीत।
पढूँ तो लगता कविता, गाऊं तो जैसे गीत।

                                                - शिल्पी पाण्डेय 'रंजन'



             


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