अपने सपने


सपने भी अब अपने है ,
यू ही रस्ते कटने है ,
तेरे ही रहो पे रहने है,
यू ही सपने कहने है।
जो भी चाह आज है मैंने,
वो कल के सपने अपने है।
सोचा एक घर बनाऊंगा,
एक नया इतिहास रचाउंगा,
परछाईओ की छाव मे,
एक नई आकृति बनाऊंगा।
सुदूर गावं में अकेला हो,
फिर भी मैं एक मेला हूँ ।
खुशियों की मुस्कान पे ,
अपने सपनो पे खेला हूँ।



टिप्पणियाँ