आशा की आस

जाता हूँ मन्दिर बिन उम्मीदों के साथ,
कुछ नई उम्मीद पा सकूं।
इस जीवन की नईया का,
पार पा सकूं।
जा सकूं उस रस्ते पे,
जो तेरा हो।
जहाँ नई उम्मीदों का,
बसेरा हो।
इस पथ भव सागर में,
तेरा ही सहारा हो।
जो भी पाऊ,
वो सब तेरा हो
तेरी अनुकम्पा का ,
कैसे बखान करूँ।
जीऊ तेरे वायु पे,
जो मेरा सहारा हो,
किससे किसकी,
करूं उपमा ?
किससे इस दया का,
बखान करूं?
जो भी करूं उसमे,
तेरा ही गुणगान करूं।
एक प्रार्थना है आपसे,
उस प्रकृति के साथ से,
निराशा की आस पे,
आशा की आस देना।
दूर हो जो सबसे,
उसे अपना साथ देना।
                      -विकास पाण्डेय




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