जीवन

जीवन की दुश्वारियाँ ,                                    जीने की तैयारियाँ है 
जीवन की कठिनाइयाँ,
राह की परछाईया है
जितना भी करूँ कर्म लेकिन ,
सामने कुछ न आता है
अनुभव के जंग में, 
हमेशा जीत जाता है
सब कुछ हो कर भी ,
कुछ न समझता है
ईश्वर की अनुकंपा ,
सदा बना रहता है
अध्यात्म में जाऊ या भौतिकता में,
कुछ न समझ आता है
अध्यात्म से भौतिकता ,
नज़र नही आता है
कृति को कृतार्थ करना ,
आज हमने जाना है
अध्यात्म स्व को जानने का ,
बड़ा सा पैमाना है।




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