प्रतिशोध की भावना, वास्तव में महंगा सौदा है।

जब हम अपने शत्रु से नफ़रत करते है, तो हम उन्हें अपने ऊपर हावी होने की शक्ति प्रदान कर रहे होते है। अगर स्वार्थी लोग आप का उपयोग या लाभ उठाने का प्रयास करते है, तो उनका नाम अपनी सूची से काट दें, लेकिन प्रतिशोध की भावना कभी न पालें। जब कभी भी आप बदला लेने का प्रयास करते है, तो आप दूसरे व्यक्ति को जितना हानि पहुँचाते है, उससे भी कही अधिक हानि आप स्वयं को पहुँचातें है। 
      दोस्तों, ईसा मसीह के कहे गए वाक्यों में भी यह उल्लेखित है कि, "अपने शत्रु से प्रेम करो, अपने शत्रु को सात गुना सत्तर बार क्षमा करो, सदैव क्षमाशील बनो।" इस धरा पर कोई भी कृत्रिम शल्य चिकित्सा किसी चेहरे को इतना सुन्दर नही बना सकती, जितना कि प्रेम, कोमलता और क्षमा की भावनाओं से भरा ह्रदय बना सकता है। "प्रतिशोध, भोजन का आनंद लेने की हमारी योग्यता को भी समाप्त कर देती है"-ऐसा वर्णन हमें बाइबिल में भी मिलता है। अगर हम अपने शत्रु या दुश्मनों से प्रेम नहीँ कर सकते, तो हम कम से कम स्वयं से तो प्रेम करें। हमें स्वयं से इतना प्रेम करना चाहिये कि हम अपने शत्रुओं को इस बात की अनुमति न दें कि वे हमारे सुख, स्वास्थ्य और हमारी सुंदरता को अपने नियंत्रण में ले लें। शेक्सपियर ने कहा था-" अपने दुश्मन के लिए नफ़रत की भट्टी इतनी तीव्र मत करें कि आप स्वयं भी उसमें जल जायें।"  हो सकता है कि हम इतने बड़े संत न हों कि अपने दुश्मनों से प्रेम करें, परंतु अपनी स्वयं की सेहत और सुख के लिए हम कम से कम माफ़ करके उन्हें भूल तो सकते हैं। यही सबसे उचित तरीका है। कंफ्यूशियस ने भी अपने शब्दों में कहा था कि-"आप को चोट पहुँचाई जाये या लूट लिया जाये, तो इसमें कोई नुकसान नहीं होता जब तक की आप इसे लगातार याद रखने की कोशिश न करें।" 
     एक विदेशी पुरानी कहावत भी है-" जो व्यक्ति कभी गुस्सा नहीं हो सकता वह मूर्ख है, परंतु जो व्यक्ति कभी गुस्सा नही होता, वह समझदार होता है। दोस्तों, अगर संभव हो तो किसी के प्रति शत्रुता न पाली जाये, इसी में समझदारी है और दूसरी पहलू ये कि-" हम सभी को कोई भी विचलित या अपमानित नही कर सकता जब तक कि हम सामने वाले को ऐसा करने की इजाज़त न दे दें। दोस्तों ये दो वाक्य अपने मस्तिष्क में बिन्दुवत कर ले- " छड़ियां और पत्थर हमारी हड्डियाँ तोड़ सकती है परंतु शब्द हमें कभी भी चोट नहीं पहुँचा सकती।"
    दोस्तों, अगर आप सुख शांति का मानसिक वातावरण विकसित करना चाहते है, तो - अपने शत्रुओं से बदला लेने का प्रयास कभी भी न करें, क्यों कि ऐसा करते समय हम उन्हेँ जितना नूकसान पहुँचातें है, उससे कहीं ज्यादा नूकसान स्वयं को पहुंचातें है, इसलिए जिसको हम पसंद नहीं करते, उनके बारे में सोचने में एक मिनट भी बर्बाद न करें।
   

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