मनानुकूल परिवर्तन (बोधकथा)

एक आश्रम में गुरु और शिष्य रहा करते थे। उनका
आश्रम वन में था, जो कि गाँव से थोडा दूर था। गाँव के एक सेठ आये और शिष्य को गाय दे कर चले गए। शिष्य ने यह सूचना अपने गुरु जी को दी। गुरु जी ने उत्तर में कहा - 'अच्छा है ,दूध मिलेगा, हम सभी को।'
शिष्य ने गाय की सेवा की, उसके बदले में गुरु और शिष्य को दूध मिलता और दोनों दूध का सेवन करते। कुछ महीनों बाद जिस व्यक्ति ने अपना गाय दिया था, वह वापस उस गाय को लेने पहुँच गया। वह शिष्य पुनः गुरु जी के पास गया और गुरु जी को बात बताई। गुरु जी ने उत्तर में कहा अच्छा है, गोबर साफ करने से मुक्ति तो मिलेगी।
     दोस्तों, समय की वास्तविकता को स्वीकार करना सीखें। समय की प्रतिकूलता को अपने अनुरूप अनुकूलता ने परिवर्तित करना सीखें। सुख और दुःख हमारे जीवन की ही समझ है। समयानुरूप अपने मनः स्थिति को भी अनुकूल करें। आप स्वयं इस कर्मसंसार में मोह से वंचित रहेंगे।

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