आशावादी बालक (कहानी)
एक बहुत ही छोटा लगभग सात साल का बालक था । वह बहुत बुद्धिमान था। उसका नाम आलोक था। उसके पिता सेठ धनीराम एक व्यापारी थे। आलोक जब पांच वर्ष का था, तभी उसकी माँ उसे छोड़ के चली गयी। बेचारा आलोक अब हमेशा उदास रहने लगा। उसके पिता को जब व्यापार से समय मिलता, तो उसके साथ समय बिताते थे। आलोक के पिता आलोक से बहुत प्यार करते थे, किन्तु मृत्यु के बाद से आलोक को नफ़रत की दृष्टि से देखने लगे थे। आलोक को पढ़ाई बहुत अच्छी लगती थी। वह हमेशा अच्छी-अच्छी पुस्तको का अध्यान करता था। आलोक बड़ा होकर अच्छा आदमी बनना चाहता था। देश के गरीबों, असहायों की मदत करना चाहता था। देश, धर्म और राष्ट्र के प्रति आदर्शवान था। अब आलोक १२ वर्ष का हो गया था।
बेचारा आलोक, उसके सपनों को कौन पूरा कर सकता था ? जब आलोक अपने पिता के पास जाता और अपनी कल्पनाओं को सुनाता, तो उसके पिता उसे डांट देते और घर के कार्यो में लगा देते थे। इस प्रकार आलोक मन ही मन रो लेता था। कार्यों को पूरा कर लेने के बाद आलोक भगवान की प्रतिमा के पास बैठ जाता था। उसके पास एक बजरंगबली की प्रतिमा थी, उसी के साथ वह बातें करता था।
एक बार की बात थी, आलोक के पिता को कुछ लोगों ने शादी कर लेने को कहा। सेठ धनीराम ने चंद्रमुखी नाम की स्त्री से शादी कर ली। चंद्रमुखी देखने में रूपवती स्त्री थी, किन्तु उसका चरित्र दुष्टपूर्ण था। नाम तो उसका चंद्रमुखी था, लेकिन ज्वालामुखी से काम न थी। वह केवल अपना हित सोचती थी। किसी और की अछाई तो उसे बिल्कुल पसंद नही थी। किसी के सुख को देखना नही चाहती थी।
बेचारा आलोक, उसके सपनों को कौन पूरा कर सकता था ? जब आलोक अपने पिता के पास जाता और अपनी कल्पनाओं को सुनाता, तो उसके पिता उसे डांट देते और घर के कार्यो में लगा देते थे। इस प्रकार आलोक मन ही मन रो लेता था। कार्यों को पूरा कर लेने के बाद आलोक भगवान की प्रतिमा के पास बैठ जाता था। उसके पास एक बजरंगबली की प्रतिमा थी, उसी के साथ वह बातें करता था।
एक बार की बात थी, आलोक के पिता को कुछ लोगों ने शादी कर लेने को कहा। सेठ धनीराम ने चंद्रमुखी नाम की स्त्री से शादी कर ली। चंद्रमुखी देखने में रूपवती स्त्री थी, किन्तु उसका चरित्र दुष्टपूर्ण था। नाम तो उसका चंद्रमुखी था, लेकिन ज्वालामुखी से काम न थी। वह केवल अपना हित सोचती थी। किसी और की अछाई तो उसे बिल्कुल पसंद नही थी। किसी के सुख को देखना नही चाहती थी।
इधर आलोक समझा कि, उसकी दूसरी माँ उसे, अपने पुत्र के समान प्यार देगी। आलोक चंद्रमुखी के पास बैठकर बातें करता था, परन्तु चंद्रमुखी उसे देखना तक नहीं चाहती थी। आलोक को लगा की उसे नया जन्म मिल गया है। वह चंद्रमुखी को पूरी तरह समझ नही पाया था। चन्द्रमुखी आलोक के साथ नौकरों जैसा ब्यवहार करने लगी। आलोक के साथ भी आखिर वही हुआ, जो दुनिया की हर सौतेली माँ, अपने सौतेले बच्चों के साथ करती है। बेचारा आलोक दिनभर काम करता और खाली समय में हनुमान जी की प्रतिमा के सामने बैठकर अपनी पुस्तकों का अध्ययन करता था। आलोक आशावादी बालक था, इसलिए उसने आस नही छोड़ा। उसकी प्रतिज्ञा थी कि, वो खूब पढ़ेगा और बड़ा आदमी बनेगा। भगवान पर विश्वास करता हुआ, आगे बढ़ता चला गया।
इधर चंद्रमुखी का अत्याचार और अधिक बढ़ता गया, एक दिन ऐसा भी आया, जब उसने अलोक को घर से बाहर निकाल दिया।आलोक के पिता इन बातों से अनभिज्ञ अपने ब्यापार में लगे रहे। आलोक घर से जाते समय हनुमान जी की प्रतिमा और माँ का दिया गले का ताबीज़ (जो उसकी माँ ने मरते वक्त पहचान के रूप में दिया था।) साथ में ले गया। आलोक दिनभर भटकता रहा। शाम को एक बगीचे में बैठकर रो रहा था, उसी वक्त बगीचे का माली दयाशंकर वहाँ आया, और उससे रोने का कारण पूछा। आलोक ने सारा हाल उसे बता दिया। माली काका ने कहा -"बेटा मैं तुम्हे पढाकर बड़ा आदमी बनाऊंगा, तुम मेरे साथ चलो ।" ऐसा बोलकर अपने साथ, उसे ले गया। माली काका की अपना कोई पुत्र नही था, इसलिए उन्होंने आलोक को अपना बेटा बना लिया, और उसकी पत्नी भी आलोक को पाकर बहुत खुश थी। अब आलोक अपनी पढाई करता और खाली समय में माली काका और उनकी पत्नी की सेवा करता। देखते - देखते आलोक 20 वर्ष का हो गया। वह मेहनत करके 5 साल बाद डॉक्टर बन गया। डॉक्टर आलोक ने माली बाबा के नाम से एक नर्सिंग होम खुलवाया और उसका नाम दयाशंकर नर्सिंग होम रखा।
एक बार की बात है। चंद्रमुखी की तबियत बहुत ख़राब हो उसका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया। बहुत डॉक्टरों से दिखाया गया किन्तु कोई सुधार नहीं हुआ। सेठ धनीराम को डर था कि, चंद्रमुखी भी उसे छोड़कर चली न जाये। सेठ दुखी था कि, उसके नसीब में परिवार का सुख नही है। बेटे के जाने की चिंता तो उसे अंदर ही अंदर खा ही रही थी, अब पत्नी के स्वास्थ्य की भी चिंता उसे सता रही थी । जिसका इलाज करा के वह थक गया था। कुछ लोगों ने उसे बताया की वो दयाशंकर नर्सिंग होम में चंद्रमुखी को दिखाए, तो वह ठीक हो जायेगी। सेठ धनीराम अपनी पत्नी को लेकर नर्सिग होम गया, वहा बहुत भीड़ थी। सेठ बहुत परेशान था। किसी तरह से डॉक्टर से मिला, तथा उसे चंद्रमुखी की परेशानियों को बताया। उसका इलाज शुरू हो गया, चंद्रमुखी धीरे-धीरे ठीक होने लगी।
एकबार धनीराम अकेले में बैठे आलोक के बारे में सोच रहा था और डॉक्टर साहब में उसे अलोक की छबि आती थी। आखिर आलोक उसका अपना खून था। यही सोच रहा था, तभी डॉक्टर आया और सेठ से बोला-"बाबा आप चिंता मत करो। आपकी पत्नी अब बिल्कुल सही है।" यह कह के चंद्रमुखी की जाँच करने लगा, तभी धनीराम ने आलोक के गले में ताबीज को देखा और मन ही मन सोचने लगा की यही मेरा आलोक है। इतने में डॉक्टर ने कहा की बाबा आप अब इनको घर ले जा सकते है। आलोक के मुँह से बाबा शब्द सुनकर सेठ रोने लगा और फिर अपने बेटे को गले से लगा कर रोने लगा। इतने में चंद्रमुखी भी, आलोक को गले से लगा कर रोने लगी। आलोक तो सबको पहचान ही रहा था, लेकिन उसका अतीत उसके वर्तमान को प्रभावित कर रहा था। किन्तु फिर भी पिता का स्पर्श पाकर उसे एक सुखद अनुभूति हुई, और वो भी रोने लगा। आलोक अपने माता पिता को माली बाबा के पास ले गया और उनका परिचय कराया। यह देख माली व उनकी पत्नी की आँखो में भी आंसू आ गए।
इधर आलोक ख़ुशी से झूम उठा की, उसका खोया परिवार उसे मिल गया। अब आलोक अपने दोनों परिवार के साथ आनंद के साथ रहने लगा।
- शिल्पी पाण्डेय
लखनऊ
- शिल्पी पाण्डेय
लखनऊ
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