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मार्गदर्शन (एक उड़ान की तैयारी )

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दोस्तों, जब कभी भी हम दुविधा में होते है, जीवन मे एक मार्ग दर्शन करने वाला होना आवश्यक हो जाता है , किसी के कहे गए वाक्य हमारे लिए सफलता की कुंजी बन जाते है।       आइये हम ऐसे ही महापुरुषों के द्वारा कहे गए वाक्यो को मस्तिष्क में रेखांकित करने की कोशिश करते है। डा. ऐ पी जे अब्दुल कलाम द्वारा दिए गए कथनों को  अपने मार्गदर्शन का स्रोत बनातें है। 1."मुझे अपने जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित करना है, उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मैं ज्ञान एकत्र करूँगा, यदि कोई बाधाऐं आती है तो उस बाधाओं को हराऊंगा और सफलता प्राप्त करूँगा।" 2. ह्रदय की सत्यता , चरित्र में निखार लाती है, चरित्र में निखार आशाओं में उम्मीदें देता है, आशाओं में उम्मीदें देश को क्रमबद्ध करता है, और क्रमबद्धता से देश में शांति होती है, दोस्तों प्रारम्भिक बिंदु था ,"ह्रदय की सत्यता ", मेरे हिसाब से ये बहुत ही आवश्यक बिंदु है। 3.एक युवा होने क नाते , मै लगन के साथ किसी भी कार्य को करूँगा और दूसरों की सफलता का आनंद लूंगा। 4. मैं हमेशा अपने घर, घर के आस पास और वातावरण का स्वच्छ रखूंगा , स्व

उम्र

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उम्र के दराजो ने , आज अपना हाथ छोड़ दिया। जब खुद ने, खुद का हाथ छोड़ दिया तो, और क्या हाथ थामेंगे ! अपने उम्र के अनुभव भी , आज काम न आ सके। नये पीढ़ी के लोगों ने, अनुभवों में , मिश्रित अभिव्यक्ति ला दी है। वो कहते है, जहाँ लक्ष्मी है। वहाँ सब कुछ है आज। पर वे भी जान जायेंगे उस समय, लक्ष्मी की महत्ता को। पुरानी यादों के सिवा, कुछ नही मिलेगा। बस जो है उससे आनंद लो, कि कल का पश्चाताप न हो ।                         - विकास पाण्डेय  मनःस्थिति -              दोस्तों, वृद्धावस्था एक प्रकार से बाल्यावस्था की तरह ही होता है, दोस्तों, ये वही समय है जब हम अपनी उऋिणता का प्रयास करते है । आधुनिकता के दौर ने हम सभी को स्वार्थी बना दिया है, समय के साथ अनुभव भी बदलते रहतें है, आने वाली पीढियों ने अनुभवों में भी बदलाव लाया है । यह अनुभव एक मिश्रित अभिव्यक्ति के रूप में आ जाती है, परन्तु पुराना अनुभव ही नये की आधारशिला बनती है , इसलिए ये आवश्यक नही की नवीन अनुभव ही सर्वोपरी है।  जीवन में धन की महत्ता है, परन्तु धन से अधिक महत्वपूर्ण है , उस प्राचीन धन का आदर करना, जो आज जीवित है क्यों

मन चंचल है

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मन चंचल है, निश्चल है, पारिस्थितिक शाखित है। निर्द्वंद चिन्ताहीन, और शोधित कर्मो पर भी, निश्चचेतित है। मन स्वच्छ नीर है, प्रतिविम्बित है समाज मे, मन वह दर्पण है। मन भाव है, साथ लिए अभाव, ऐसा स्वभाव है। मन अश्व है, मन ही सर्वश्व हैं मन सर्व है, मन ही गर्व है मन ईश्वर है, स्वयं का परमेश्वर है बाल स्वरुप, सर्व धन रूप है मन क्षम्य है, फिर भी अदम्य है मन ज्ञात है, फिर भी अज्ञात है।                  -विकास पाण्डेय मनः स्थिति -        दोस्तों, मन के कई भाव होतें है, जो विभिन्न परिस्थितिओं में परिस्थिति के अनुसार उत्त्पन्न होतें है । एक सुन्दर से बगीचे में बैठ कर, प्रकृति भाव को देखने का प्रयास कर रहा था । निश्चल मन के बालक , खेलते हुए ऐसे प्रतीत हो रहे थे ,मानो चंचलता के सारे गुण ईश्वर ने नन्हे बालको को दियें हो स्वच्छ नीर ह्रदय वाले वे स्वयं ,जगत को भी चमका रहे थे , सभी को आनंदित कर रहे थे । मन अनंत है, उसकी पूर्ति अभाव में  रहती है। पल में यहाँ है तो पल में सूदूर स्थित हो जाता है। परन्तु इसी के द्वारा किसी उम्मीदों से परे , लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है। कई कृत

नीर ह्रदय

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क्षोभित हो जाता हूँ , परिस्थितियों से । सोचता हूँ , ब्रह्म हो जाऊं। पीड़ा हर के लिए, दीनता हीनता , नष्ट हो जाये। परिष्कृत ह्रदय, बन जाये। दीर्धकालीन, ह्रदय , करुणा, और दया का, सामना न करे। ईश्वर तम में, निर्वात में भी, सहज है । सांत्वना है, तुम हो। सोचता हूँ, तुम हो, देखते हो सब, करोगे न्याय, जब होगा अन्याय ।                                              - विकास पाण्डेय मनः भाव -      प्रिय मित्रों आपने राह चलते दीन हीन भिक्षुकों को देखा ही होगा । मानवतावादी एवम् मनुष्य होने के नाते ह्रदय सहम जाता है ,ऐसी परिस्थितियाँ किसने उत्पन्न की ? कहाँ से आएं है ? ये लोग यहां क्यों बैठे है ? दोस्तों, हम सभी ईश्वर के ही रूप है ,ये प्रकृति हमारी जननी है , हम सभी इसी के रूप है । हम सभी ये सब देखते है ,परंतु समय की कमी, आवश्यक कार्य होने के कारण उनकी सहायता करने में असमर्थ रहते है । हम सभी मनुष्य है ,और मानवता हमारा धर्म है। इसलिए अपना कर्तव्य समझ कर निःस्वार्थ भाव से एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए ।        ईश्वर बनने के लिए नही ईश्वरत्व कार्य के लिए।             

लिखता हूँ पर , अभिव्यक्ति नही पाता हूँ ।

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लिखता हूँ पर , अभिव्यक्ति नही पाता हूँ । सोचता हूँ पर , शक्ति नहीं पाता हूँ। सत्य शोधित कर्म पर, वह सृष्ठि नही पाता हूँ। मंथन करता हूँ पर, वो भक्ति नही पाता हूँ। क्रम बद्ध कृतियों के, संयम तट पर, लहरें आती है, कुछ लेकर कुछ, दे जाती है। कर्ता तो वह है, और हम कर्म है। लिखता हूँ पर, अभिव्यक्ति नही पाता हूँ। लहरों की उथल पुथल, समय का बदलाव है। धारा की तरंगें , मन का उन्माद है। खोजता हूँ पर, इच्छित नही हो पाता हूँ । लिखता हूँ पर , सृजित नही हो पाता हूँ ।                              - विकास पाण्डेय

विचार ही , प्रेरणा देते है ।

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मेरे विचार ही , प्रेरणा देते है, स्वयं को । सत पथ, बनाये रखते है, विचलित होते है, जब पथ से। नई ऊर्जा, नया विश्वास देते है। जब भ्रमित होतें है, अपने पथ से। तुम ही सार्थक हो, जीवन का। जो निर्थक होने से वंचित करता है, सकारात्मक हो जाते है, जब कभी, मनोन्माद में होते है। हे ! विचार , धन वैभव हो तुम। प्रेरणा का अनंत, श्रोत हो तुम। बनाये रखना, साथ सदैव, अपने धन वैभव का।                           - विकास पाण्डेय मनः स्थिति -               दोस्तों विचार हमारे मन की उपज होती है हम जैसा सोचते है वैसा ही हमारे मन में तेज आता है। कई लोग ईश्वर के अस्तित्व को नही मानते है ,परन्तु जब आप दुःख और विषाद वाली परिस्थितियों में होंगे एक प्रेरणामयी श्रोत आप का मार्ग दर्शन करेगी ।       दोस्तों ऐसी कोई दैवीय शक्ति ज़रुर है जो हमे दुःख. भ्रमो एवं विषादो से दूर रखती है। हमारे मन की दो चेतन अवस्थाये होती है। 1. अंतः चेतन अवस्था 2. वाह्य चेतन अवस्था । हमारी अंतः चेतन अवस्था , हमारा वास्तविक मार्गदर्शन करती है ,और उसका मार्गदर्शन, वह दैवीय शक्ति करती है । जब कभी हम दुःख, विषादों

विचार

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आत्मविश्वास, नया प्रकीर्णन है । नव उत्साह, एक नव उमंग है । नव प्रभात, चमकीली सी किरण शीतल मंद हवा, मधुर सी शरण, विचार वैभव है। उत्साह नया, पल में जाग्रत, अपलक है । गंभीर अनुभव, संवेदन हमारा है । कृतियाँ नई सी, चिर अनंत है ।                     - विकास पाण्डेय

मन है एक आकृति बनाऊँ

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मन है एक , आकृति बनाऊँ, एक सुन्दर सी कृति बनाऊँ। जी लूं जीवन का सार मैं, एक छोटा सा घर द्वार मैं। मानवता का द्वार सजाऊँ, मन है एक , आकृति बनाऊँ। संघर्षों की क्रमबद्ध कृतियाँ, मानव जीवन की संस्कृतियाँ। सबका आदर मान दिलाऊँ , मन है एक , आकृति बनाऊँ। जीवन का गीत सारबद्ध, हो जीवन एक करबद्ध। एक सुंदर सी कृति बनाऊँ, मन है एक , आकृति बनाऊँ। प्रेम भाव हो सब के मन में, सब कर्मठ हों जीवन में। ऐसी मर्यादा का मान दिलाऊँ , मन है एक , आकृति बनाऊँ।                            - शिल्पी पाण्डेय

जिंदगी हो अमन चैन की

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जिंदगी हो अमन चैन की, ईश ऐसा ही वर दीजिये। कर सकें कुछ किसी के लिए, भावना ऐसी भर दीजिये। छोड़ वेदों पुराणों को हम, आज दर दर भटकने लगे, पा सकें कुछ कहीं रौशनी, बुद्धि ऐसी प्रखर दीजिये। कर सकें कुछ किसी के लिए, भावना ऐसा भर दीजिये। देवताओं की प्यारी धरा, यह समुंदर ,नदी, शैल ,वन, दें सकें इन पे क़ुर्बानियाँ, वह कालेज निडर दीजिये। कर सकें कुछ किसी के लिए, भावना ऐसी भर दीजिये। जिंदगी हो अमन चैन की, ईश ऐसा ही वर दीजिये।

प्रथम प्रयास

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पैर डगमगाते है , प्रथम प्रयास में। शिथिल हो जाते है, मन के उन्माद में। शितित हो जातें है, द्वितीय विकास में। कम्पित हो जाते है, अंतिम अहसास में। कृतियाँ नव गागर है, एक नव संचार में। पैर कम डगमगाते है, मन के आभास में। पैर डगमगाते है, केवल प्रथम प्रयास में।                        - विकास पाण्डेय

खोया हीरा

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मैंने आज एक हीरा देखा , खोज रहा था जो खुद को, नदी में बहता ,कूड़ो के साथ, मैंने एक जागीरा देखा । खिल खिलाता संभालता, अपने बोरों को, हीरों की खोज में जलता हुआ, मैंने एक कबीरा देखा । दुर्गम रास्तों को पाकर, खुश था वो जान कर । आज सोना मिलेगा, जीवन में एक खिलौना मिलेगा । मन भर खेलूँगा, एक जीवन पिरोलूँगा । जीवन फिर भर जायेगा, सुखद क्षण फिर आयेगा । चिंतित था जान कर, मुझे पहचान कर, सार्थक न हुआ आना, कृतियाँ मत बताना ! कल न आ पाउँगा, कल व्यस्त हो जाऊंगा, फिर वापस काम पर जाऊंगा । ढूढुंगा फिर से हीरा, आयेगा फिर वही सवेरा।                       - विकास पाण्डेय

खोज

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खोज है मुझे उनका, जिनका जीवन सत्य हो । कठिनाइयों से भरा जीवन, ज्ञान का प्रभुत्व हो । खोज सच्चा हो, मन एक बच्चा हो । कृत्रिमता न हो जिनमे, ऐसा उनका सत्व हो । जीवन दान दिया हो , ऐसा प्रभुत्व हो । संघर्षशील जीवन, वास्तविक कर्मठता हो । सजीवता हो जिनमे, ऐसी सरलता हो । कर दे प्रबुद्ध, ऐसा ,मन शुद्ध हो।                                    -विकास पाण्डेय

पर्यावरण

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फूलों ने मेरी आहत को , बचपन से पहचाना है। सब के जीवन का प्राण हूँ मैं, बगिया तक ने माना है। बैठे बैठे मेरे पंखों पर , फूल संदेशा कहते है। भेज भेज खुशबू की पाती , भ्रमर बुलाते रहते है। मेरी मीठी लोरी से ही , पुरवैया के गीत बने । बादल मेरा हाथ थाम, फसलों के प्यारे मीत बने। खुशबु भला कहाँ पाओगे, जब दम ही सब का घुट जायेगा। सासों में धुआं समाएगा, सासों में धुआं समाएगा। जहर घुलेगी बदली में जब, पपीहा कितना तरसेगा। जब धरती पर अमृत के बदले, विष का पानी बरसेगा। मैं हूँ पर्यावरण तुम्हारा, मिलकर मुझे सम्हालो तुम। दम घुट कर मरने से पहले, मिलकर मुझे बचालो तुम।

मुस्कान

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मैं   देख कर भावुक था   , आप   की मुस्कान पर   | निःस्चल निर्द्वंद  हंसी थी , मैं मोहित था जिस पर | इस दृढ़ समाज मे, चकित था मुस्कान पर | जन कुटिलता ने दी थी , वो अद्भुत मुस्कान पर ! मै बहुत चकित था , उस अभिनव मुस्कान पर | सम हृदयी स्वाभिमान था , उस बाहुल्य स्वरों पर | मेरा अपना भी स्वाभिमान था , व्यक्त न हो पाया पर | दर्शनीय मैं भी था , श्रवणीय न हो पाया पर |                     -     विकास पाण्डेय                      -     २/११/२०१४

धामपुर का धाम

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असीम स्नेह, प्रेम मिला, धामपुर के धाम में। अविस्मरणीय रहेगा , यहाँ जो मेला था। उन यू पी के वादियों में , मै कभी न अकेला था। लोगो की सहानुभूतियो से, मै घिरा था। सुई सी चुभन में, सुन्दर सा मन था। कृतियाँ नई सी, प्रभाव नया था। पाजी का आदर, अतीक का सुन्दर अतीत था। फूल जी का सेवा भाव, नरेन्द्र जी का उत्कृष्टता थी। सभी का सहभाव, मन में न कोई चिंतित व्यथा थी। धामपुर वास्तव में, एक अविस्मरनीय धाम था। सभी के साथ , आदर सम भाव था। सेवादारो की सेवा, निःस्वार्थ, सर्वत्र कृतार्थ था। मेरे विधुत उपकेन्द्र की सेवा, सफल थी आप की सेवा मे। धामपुर विधुत माय रहे, यही ईश्वर की कामना थी।                                                              - विकास पाण्डेय

हिंदी

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हिंदी ही भारत माँ के , माथे की बिंदी है। हुई बहुत सी भाषायें, पर आगे हिंदी है। मीरा महादेवी तुलसी सब,  हुए प्रखर हिंदी से। सूर केशव कबीर तुलसी सब,  चमक उठे हिंदी से। अब तक का इतिहास यही है , भारत माँ की शान हिंदी है। हिंदी ही भारत माँ के , माथे की बिंदी है। हुई बहुत सी भाषायें , पर आगे हिंदी है। शब्द शब्द हर अक्षर में , भरा है प्यार। हर सुख से संपन्न है , हिंदी का संसार। है मर्यादा हिन्द की , पहचान हिंदी है। हिंदी ही भारत माँ के , माथे की बिंदी है। गयी जहाँ अपनी भाषा , सब प्रणत हुए है लोग। नन्द विवेका ने भी इसको, कर दिया सुयोग। हम भारत के वीर सपूतो की, तकदीर हिंदी है। हिंदी ही भारत माँ के , माथे की बिंदी है। है वैज्ञानिक लिपि हमारी, और सरल समर्थ । हो जाये संज्ञान सभी को, समझ सके सब अर्थ। है संस्कृति धरोहर अपनी, प्राण हिंदी है। हिंदी ही भारत माँ के , माथे की बिंदी है।                            -शिल्पी पाण्डेय

उड़ान की काबिलियत (कहानी)

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बहुत समय पहले की बात है , एक राजा को उपहार में किसी ने बाजके दो बच्चे भेंट किये । वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे ,और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे। राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया। जब कुछ महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को देखने का मन बनाया , और उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था। राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी शानदार लग रहे थे । राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे आदमी से कहा, ” मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो ।“ आदमी ने ऐसा ही किया। इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे , पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था , वहीँ दूसरा , कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया जिससे वो उड़ा था। ये देख , राजा को कुछ अजीब लगा. “क्या बात है जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”, राजा ने सवाल किया। ” जी हुजूर , इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं।” राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे , और वो दुसरे बाज को भी उसी त

चिंता न करे, चिंतन करे।

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कल, तुम्हे जो करना हो कर लो, मैंने आज तो जीना सीख लिया है। काँटों की इस दुनिया में, फूलो को चुनना सीख लिया है। होनी को सत्य समझ कर, कटु सत्य स्वीकार किया है। कल, तुम्हे जो करना हो कर लो, मैंने आज तो जीना सीख लिया है। दुनिया के सम्मुख आज हम, आनंदित होना सीख लिया है। यह नश्वर वस्त्र देह , सब के सम्मुख सत्य किया है। कल, तुम्हे जो करना हो कर लो, मैंने आज तो जीना सीख लिया है। तथ्य परख निवारण कर, विश्लेषण को अंजाम दिया है। दुविधा की दुनिया छोड़ चले, आज में जीना जान लिया है।                                                        - विकास पाण्डेय

भगवान आप

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बचपन से ही , लाठी का सहारा हो गया। तभी से तू, हमारा हो गया। ऐसे विश्वास, न आता तेरे पे। ऐसी काया पा के , मेरे मन का सहारा हो गया। ऐसी अवस्था का सत्कार , मैंने ही माना है। किसी और ने ये कहा जाना है? जीवन जीने का ईश ही बहाना है। शक्ति देना ,स्वावलम्बी बन सकूँ, एक मुकाम बना सकूँ, तेरे आगे कोई न हो। पंख न दिए तो क्या हुआ? हौसला भी कुछ होता है। हौसलों से उडूँगा, देखता हूँ, साथ कैसे नही देता? गिरूंगा फिर उडूँगा, पर उडूँगा ज़रूर। इच्छा,आस्था और उम्मीदों से, जीतूँगा ज़रूर।                      -विकास पाण्डेय

प्रेम (कहानी)

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एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी।औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”औरत ने कहा – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।” संत बोले – “हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया। औरत के पति ने कहा – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।” “पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” – फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।” लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को

हमेशा हँसते रहिये (कहानी)

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अमेरिका की बात हैं. एक युवक को व्यापार में बहुत नुकसान उठाना पड़ा। उस पर बहुत कर्ज चढ़ गया, तमाम जमीन जायदाद गिरवी रखना पड़ी । दोस्तों ने भी मुंह फेर लिया, जाहिर हैं वह बहुत हताश था। कही से कोई राह नहीं सूझ रही थी। आशा की कोई किरण दिखाई न देती थी। एक दिन वह एक park में बैठा अपनी परिस्थितियो पर चिंता कर रहा था। तभी एक बुजुर्ग वहां पहुंचे. कपड़ो से और चेहरे से वे काफी अमीर लग रहे थे। बुजुर्ग ने चिंता का कारण पूछा तो उसने अपनी सारी कहानी बता दी। बुजुर्ग बोले -” चिंता मत करो. मेरा नाम John D. Rockefeller है। मैं तुम्हे नहीं जानता,पर तुम मुझे सच्चे और ईमानदार लग रहे हो। इसलिए मैं तुम्हे दस लाख डॉलर का कर्ज देने को तैयार हूँ.” फिर जेब से checkbook निकाल कर उन्होंने रकम दर्ज की और उस व्यक्ति को देते हुए बोले, “नौजवान, आज से ठीक एक साल बाद हम ठीक इसी जगह मिलेंगे। तब तुम मेरा कर्ज चुका देना.” इतना कहकर वो चले गए।                   युवक हैरान था. Rockefeller तब america के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे। युवक को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था की उसकी लगभग सारी मुश्किल हल हो गयी। उसके पैरो

तारा

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तार तू तार क्यों है? मन का एक सितारा क्योंहै? सोते जब सब, तू जागता क्यों है? दिन की परछाइयों से, भागता क्यों है? चाँद में दाग है, पर तू तो बेदाग है?                       -विकास पाण्डेय

डेवलेपमेंट!

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देश में डेवलेपमेंट हो रहा है, अमीरों का काम अर्जेंट हो रहा है, गरीब बेचारा साइलेंट हो रहा है, देश बेचने का एग्रीमेंट हो रहा है। चमचा अपनी जगह परमामेंट हो रहा है, ईमानदार बेचारा सस्पेंट हो रहा है, बच्चा बाप से इंटेलिजेंट हो रहा है, घर घर पार्लियामेंट हो रहा है। कार्यालय रेस्टोरेंट हो रहा है, रिश्वत का काम हैण्ड टू हैण्ड हो रहा है, नेता, सभा समाप्ति पर प्रजेंट हो रहा है, क्यों! क्यों की देश में डेवलपमेंट हो रहा है।

आशा की आस

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जाता हूँ मन्दिर बिन उम्मीदों के साथ, कुछ नई उम्मीद पा सकूं। इस जीवन की नईया का, पार पा सकूं। जा सकूं उस रस्ते पे, जो तेरा हो। जहाँ नई उम्मीदों का, बसेरा हो। इस पथ भव सागर में, तेरा ही सहारा हो। जो भी पाऊ, वो सब तेरा हो तेरी अनुकम्पा का , कैसे बखान करूँ। जीऊ तेरे वायु पे, जो मेरा सहारा हो, किससे किसकी, करूं उपमा ? किससे इस दया का, बखान करूं? जो भी करूं उसमे, तेरा ही गुणगान करूं। एक प्रार्थना है आपसे, उस प्रकृति के साथ से, निराशा की आस पे, आशा की आस देना। दूर हो जो सबसे, उसे अपना साथ देना।                       -विकास पाण्डेय