हिंदी

हिंदी ही भारत माँ के ,
माथे की बिंदी है।
हुई बहुत सी भाषायें,
पर आगे हिंदी है।

मीरा महादेवी तुलसी सब,
 हुए प्रखर हिंदी से।
सूर केशव कबीर तुलसी सब,
 चमक उठे हिंदी से।
अब तक का इतिहास यही है ,
भारत माँ की शान हिंदी है।

हिंदी ही भारत माँ के ,
माथे की बिंदी है।
हुई बहुत सी भाषायें ,
पर आगे हिंदी है।

शब्द शब्द हर अक्षर में ,
भरा है प्यार।
हर सुख से संपन्न है ,
हिंदी का संसार।
है मर्यादा हिन्द की ,
पहचान हिंदी है।
हिंदी ही भारत माँ के ,
माथे की बिंदी है।

गयी जहाँ अपनी भाषा ,
सब प्रणत हुए है लोग।
नन्द विवेका ने भी इसको,
कर दिया सुयोग।
हम भारत के वीर सपूतो की,
तकदीर हिंदी है।
हिंदी ही भारत माँ के ,
माथे की बिंदी है।

है वैज्ञानिक लिपि हमारी,
और सरल समर्थ ।
हो जाये संज्ञान सभी को,
समझ सके सब अर्थ।
है संस्कृति धरोहर अपनी,
प्राण हिंदी है।
हिंदी ही भारत माँ के ,
माथे की बिंदी है।

                           -शिल्पी पाण्डेय







टिप्पणियाँ