नीर ह्रदय

क्षोभित हो जाता हूँ ,
परिस्थितियों से ।
सोचता हूँ ,
ब्रह्म हो जाऊं।
पीड़ा हर के लिए,
दीनता हीनता ,
नष्ट हो जाये।
परिष्कृत ह्रदय,
बन जाये।
दीर्धकालीन,
ह्रदय , करुणा,
और दया का,
सामना न करे।
ईश्वर तम में,
निर्वात में भी,
सहज है ।
सांत्वना है,
तुम हो।
सोचता हूँ,
तुम हो,
देखते हो सब,
करोगे न्याय,
जब होगा अन्याय ।
                 
                           - विकास पाण्डेय

मनः भाव -
     प्रिय मित्रों आपने राह चलते दीन हीन भिक्षुकों को देखा ही होगा । मानवतावादी एवम् मनुष्य होने के नाते ह्रदय सहम जाता है ,ऐसी परिस्थितियाँ किसने उत्पन्न की ? कहाँ से आएं है ? ये लोग यहां क्यों बैठे है ?
दोस्तों, हम सभी ईश्वर के ही रूप है ,ये प्रकृति हमारी जननी है , हम सभी इसी के रूप है । हम सभी ये सब देखते है ,परंतु समय की कमी, आवश्यक कार्य होने के कारण उनकी सहायता करने में असमर्थ रहते है । हम सभी मनुष्य है ,और मानवता हमारा धर्म है। इसलिए अपना कर्तव्य समझ कर निःस्वार्थ भाव से एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए ।
       ईश्वर बनने के लिए नही ईश्वरत्व कार्य के लिए।            

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