भगवान आप

बचपन से ही ,
लाठी का सहारा हो गया।
तभी से तू,
हमारा हो गया।
ऐसे विश्वास,
न आता तेरे पे।
ऐसी काया पा के ,
मेरे मन का सहारा हो गया।
ऐसी अवस्था का सत्कार ,
मैंने ही माना है।
किसी और ने ये कहा जाना है?
जीवन जीने का ईश ही बहाना है।
शक्ति देना ,स्वावलम्बी बन सकूँ,
एक मुकाम बना सकूँ,
तेरे आगे कोई न हो।
पंख न दिए तो क्या हुआ?
हौसला भी कुछ होता है।
हौसलों से उडूँगा,
देखता हूँ,
साथ कैसे नही देता?
गिरूंगा फिर उडूँगा,
पर उडूँगा ज़रूर।
इच्छा,आस्था और उम्मीदों से,
जीतूँगा ज़रूर।
                     -विकास पाण्डेय


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