पर्यावरण

फूलों ने मेरी आहत को ,
बचपन से पहचाना है।
सब के जीवन का प्राण हूँ मैं,
बगिया तक ने माना है।
बैठे बैठे मेरे पंखों पर ,
फूल संदेशा कहते है।
भेज भेज खुशबू की पाती ,
भ्रमर बुलाते रहते है।
मेरी मीठी लोरी से ही ,
पुरवैया के गीत बने ।
बादल मेरा हाथ थाम,
फसलों के प्यारे मीत बने।
खुशबु भला कहाँ पाओगे,
जब दम ही सब का घुट जायेगा।
सासों में धुआं समाएगा,
सासों में धुआं समाएगा।
जहर घुलेगी बदली में जब,
पपीहा कितना तरसेगा।
जब धरती पर अमृत के बदले,
विष का पानी बरसेगा।
मैं हूँ पर्यावरण तुम्हारा,
मिलकर मुझे सम्हालो तुम।
दम घुट कर मरने से पहले,
मिलकर मुझे बचालो तुम।




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