मन चंचल है

मन चंचल है, निश्चल है,
पारिस्थितिक शाखित है।
निर्द्वंद चिन्ताहीन,
और शोधित कर्मो पर भी,
निश्चचेतित है।
मन स्वच्छ नीर है,
प्रतिविम्बित है समाज मे,
मन वह दर्पण है।
मन भाव है,
साथ लिए अभाव,
ऐसा स्वभाव है।
मन अश्व है,
मन ही सर्वश्व हैं
मन सर्व है,
मन ही गर्व है
मन ईश्वर है,
स्वयं का परमेश्वर है
बाल स्वरुप,
सर्व धन रूप है
मन क्षम्य है,
फिर भी अदम्य है
मन ज्ञात है,
फिर भी अज्ञात है।

                 -विकास पाण्डेय

मनः स्थिति -
       दोस्तों, मन के कई भाव होतें है, जो विभिन्न परिस्थितिओं में परिस्थिति के अनुसार उत्त्पन्न होतें है । एक सुन्दर से बगीचे में बैठ कर, प्रकृति भाव को देखने का प्रयास कर रहा था । निश्चल मन के बालक , खेलते हुए ऐसे प्रतीत हो रहे थे ,मानो चंचलता के सारे गुण ईश्वर ने नन्हे बालको को दियें हो स्वच्छ नीर ह्रदय वाले वे स्वयं ,जगत को भी चमका रहे थे , सभी को आनंदित कर रहे थे । मन अनंत है, उसकी पूर्ति अभाव में  रहती है। पल में यहाँ है तो पल में सूदूर स्थित हो जाता है। परन्तु इसी के द्वारा किसी उम्मीदों से परे , लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है। कई कृतिओ में , मन को ईश्वर बतातें है। वास्तव में ईश्वर स्वयं आप के अन्दर विराजमान है, बस अनुभूति की कमी है , बाल स्वरूप ईश्वर क्षम्य इसलिए है, क्यों की मन स्वच्छ नीर की तरह निर्मल कोमल है ।
       दोस्तों, मन को कई संज्ञा से परिभाषित किया गया है  यह तो आप पर निर्भर है कि, आप इसे कैसे परिभाषित करतें है ,वास्तव में मन में एक अज्ञात रूप से ज्ञात विशेषता है ।

टिप्पणियाँ