लिखता हूँ पर , अभिव्यक्ति नही पाता हूँ ।

लिखता हूँ पर ,
अभिव्यक्ति नही पाता हूँ ।
सोचता हूँ पर ,
शक्ति नहीं पाता हूँ।
सत्य शोधित कर्म पर,
वह सृष्ठि नही पाता हूँ।
मंथन करता हूँ पर,
वो भक्ति नही पाता हूँ।
क्रम बद्ध कृतियों के,
संयम तट पर,
लहरें आती है,
कुछ लेकर कुछ,
दे जाती है।
कर्ता तो वह है,
और हम कर्म है।
लिखता हूँ पर,
अभिव्यक्ति नही पाता हूँ।
लहरों की उथल पुथल,
समय का बदलाव है।
धारा की तरंगें ,
मन का उन्माद है।
खोजता हूँ पर,
इच्छित नही हो पाता हूँ ।
लिखता हूँ पर ,
सृजित नही हो पाता हूँ ।

                             - विकास पाण्डेय




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