विवाह गीत (कविता)


विवाह गीत (कविता)


दो सपन आज मिलकर हुए एक हैं,

एक ही आज दोनों रतन हो गए।

दो जगह जी रहीं एक ही ज़िन्दगी,

एक ही हार दोनों सुमन हो गए।

चाँद से चांदनी का मिलन है यहां,

दो मधुर कल्पनाओं का एकीकरण।

मोद का आज दिन हर्ष की रात है,

क्योंकि दोनों के पूरे परन हो गए।

बालपन की नदी के युगल तीर पै,

जो सजाए उमंग की तस्वीर थे।

दो किरण की तरह दो हिरण की तरह,

 एक ही ठौर चारों नयन हो गए।

आज गौरीश को है भवानी मिली,

या मिली इंद्र को फिर से उनकी शची।

स्वर्ग से देखकर दिव्य पाणिग्रहण,

है मगन हर्ष में देवगन हो गए

कोई देवाटवी का  प्रखर कल्प तरु,

कोई सुर वाटिका की सुधर वल्लरी।

आज अनजान पथ के अनोखे पथी,

एक ही सूत्र में हो स्वजन हो गए।

मुस्कुराती रहे भाग्य की वाटिका,

जब तलक हो जहां बीच मंदाकिनी।

युग्म बंधन तुम्हारे चिरंतन रहे,

जैसे दिनकर उषा के मिलन हो गए।



जितेंद्र नाथ पांडेय
हिंदी एवं भोजपुरी कवि
पूर्व जिलाध्यक्ष शिक्षक संघ,
नेहरू इंटरमीडिएट कॉलेज,
कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

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