लड़की हूँ....




पी रही हूँ सारे अश्कों को


भुला रही हूँ सारे ज़ख्मो को


दम घुटते रीति रिवाजो को
अधरों पर सी रही हूँ......
लड़की हूँ ....बस जी रही हूँ........।
उलझकर रस्म रिवाजो में 
खोखली संस्कारी इरादों में
घुटती संस्कृतियों को पी रही हूँ
लड़की हूँ......बस जी रही हूँ.........।
जब देखा अतीत के पन्नों को
बचपन के प्यारे सपनोँ को 
कुछ ने दी उदासी , तो कुछ से 
खुशियां चुन रही हूँ 
लड़की हूँ......बस जी रही हूँ........।
मिली भर्त्सना प्रताड़ना ही जिससे
ऐसी ब्यथा कहू किससे ??
इस निर्मम समाज की गाथा 
अल्फाज़ों  में सी रही हूँ.....
लड़की हूँ ..... बस जी रही हूँ.........।
देवी रूप दे बना दिया महान 
क्षम्य नही कोई त्रुटि मान लिया जहान
त्रुटियाँ जो हुई मुझसे 
गरल रूप में पी रही हूँ......




लड़की हूँ ....बस जी रही हूँ..........।










शिल्पी पाण्डेय

लखनऊ ( यू. पी.)

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें