गुरू (कविता), शिक्षक दिवस पर विशेष




निस्वार्थ भाव से जल कर जो 
 देता है सबको दिव्य प्रकाश 
उनकी चरणों में वंदनवार 
करते हैं ये धरती आकाश
मन के कोरे कागज़ 
अंकित कर दे जो अमिट छाप
ऊर्जा का भर अद्भुत सागर 
करे दूर अज्ञान का अभिशाप
बचपन के बगिया का माली 
करता जीवन की रखवाली 
रस सींच सींच कर पौधों को 
कर देता सबका प्रिय आलि
ऐसे शिक्षक की वंदना 
करता ये तन मन प्राण है
भू पर गुरू के रूप में 
जो मिला हमे भगवान है ।


              भारत के सभी शिक्षकों को मेरा शत शत नमन ।।।













शिल्पी पाण्डेय
लखनऊ  यू. पी. 

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