माँ ( जन्नत है माँ के क़दमों में )

"मैंने अब तक जितनी भी महिलाओं को देखा, उनमे मेरी माँ सुन्दर थी। मैं जो कुछ भी हूँ,अपनी माँ की बदौलत हूँ। अपने जीवन में मिली सारी सफलता का श्रेय, मैं उस नैतिक, बौद्धिक और शारीरिक शिक्षा को देता हूँ, जो मुझे उनसे मिली।" -जॉर्ज वाशिंगटन

     इस पुरुष प्रधान व्यवस्था में जो समाज के हर स्तर पर सोच और व्यवहार पर हावी है,जीवन दायिनी, जीवन रक्षक, पालक, पोषक, संवेदनशील, करुणामयी, मिल बाँट कर चलने वाली, स्त्री शक्ति की गहरी घनी ऊर्जा की जान बूझकर निरंतर उपेक्षा की गयी, अनादर किया गया, उस पर चोट की गयी, अपमानित और तिरस्कार किया गया, उत्पीड़ित किया गया है, और उसकी हत्या की गयी है।
     अब समय आ गया है, जब प्रेम और करुणा जैसे उन भावों की क़ीमत समझी जाये। जो मिलबांट कर दूसरे का ध्यान रखते हुए, शांतिपूर्ण ढंग से जीने के लिए प्रेरित करतें है। जस्ट वंस की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार है-

एक गीत जान डाल सकती है पल में
एक फूल जगाये स्वप्न उनींदे आँचल में।
होवे शुरू एक पेड़ से विशाल वन्य प्रदेश
ला सकता है एक पंछी वसंत का संदेश।

दोस्ती का बीज बने एक हल्की मुस्कान
एक बार मिलें दो हाथ तो आये नई जान।
भटकें नाविक जब भी राह दिखाए सितारा
आ कर सिमटे एक शब्द में परम लक्ष्य हमारा।

सरकार बदल सकती है एक मतदाता का मन
एक किरण पुंज कर डाले पूरा कमरा रौशन।
जले एक शमा मिट जाये अन्धियारे का नाम
करे एक ठहाका उदासी का काम तमाम।

एक कदम से शुरू होता है हर सफर
हो प्रार्थना पूरी एक शब्द  से शुरू हो कर।
एक आशा भर देगी मन में जोश अथाह
एक स्पर्श बताये किसको कितनी परवाह।

एक बोल में हो सकती है बात गूढ़ गंभीर
जान ही लेता है सच को एक ह्रदय अधीर।
एक जिंदगी से पड़ सकती है फर्क भारी
और हो सकता है वह जिंदगी हो तुम्हारी।

     जैसे एक जिंदगी से फर्क पड़ सकता है, इसलिए अपनी माँ की अहमियत का एहसास कर पाना आप के जीवन में वह बिंदु बन सकता है जहाँ से आगे चल कर आप उन सभी माँओं की जिंदगी में बदलाव ला सकते है। जो आप को अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों, सहकर्मियों के घरों में नज़र आतीं हैं। इस एहसास को अपने इर्द गिर्द के तमाम लोगों के साथ साझा करें और इसकी छवि को अपने व्यवहार की शक्ल में सामने आने दें। जब हममे से हरेक बदलाव में भागीदार होता है सिर्फ तभी हम समाज को बदल सकतें है, क्योकि समाज और कुछ नही केवल व्यक्तियों का समूह भर ही तो है। अगर प्रत्येक व्यक्ति बदल जाये तो समाज भी बदल जायेगा।
     दोस्तों, आज तक का मेरा अनुभव यह है कि सबकी माँ , प्यार और करुणा से भरी होती हैं, इन सबसे भी बढ़कर, वे दैवीय गुणों वाली होती है। उन्हें देखकर दिल को सुकून मिलता है, और हौसला बढ़ता है। 

जिस तरह हमें अपनी माँ को चाहना और उनका आदर करना चाहिये, हमें यह भी एहसास होना चाहिए कि पृथ्वी माँ , जिसने सारे जीवों को जन्म दिया है, और जो हम सब को जिन्दा रखती है, उसका इस हद तक दोहन किया गया कि अब हम उसके तेजी से चुकते संसाधनो के भरोसे नहीं रह सकते।

इसे निरंतर संरक्षित रखने के सिद्धांत के बजाए, ऐसा लगता है कि हमने हमेशा शोषण और दोहन के पुरुष वादी सिद्धान्त को अपनाया है। हमें ज़रूरत है व्यवहार की उन मूलभूत खूबियों को मान्यता और बढ़ावा देने की, जिनका उद्देश्य है जिंदगी को बचाये रखना, संसाधनों का मिल बाँट कर उपयोग, समझौते कर के बीच का रास्ता अपनाने, प्रेम और करुणा बढ़ाने या दूसरे शब्दों में कहें तो हमें उत्तरोत्तर विकास के लिए मानव समाज में सृष्टी के स्त्री पक्ष को उजागर करना होगा। 
     डॉ कलाम अपनी माँ से बहुत प्यार करते थे। उन्होंने अपनी माँ के लिए कविता के रूप में कुछ शब्द कहे जिसका हिंदी अनुवाद कुछ इस प्रकार है -

दस साल का था मैं मुझे याद है अब भी वह दिन, तुम्हारी गोद में सोता था, जलते थे बड़े भाई बहन।
थी पूर्णिमा की रात, बस तुम्हे पता था, मेरे जहां का, माँ, मेरी माँ!
जब आधी रात को जागा टपक रहे थे आंसू, टप टप मेरे घुटनों पर,
तुम्हें पता था अपने बच्चों की पीड़ा का, मेरी माँ!
तुम्हारे प्यार भरे हाथ चुनते रहे दर्द धीरे धीरे
तुम्हारे प्यार, तुम्हारे दुलार, तुम्हारे भरोसे ने दी मुझे ताकत,
निडर हो कर दुनिया का सामना करने की, और उसके भरोसे
हम फिर मिलेंगे, क़यामत के उस अहम दिन, मेरी माँ।   

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