भावनात्मक कुशाग्रता एवं व्यक्तित्व विकास का स्व आंकलन
भावनात्मक कुशाग्रता वह प्रबन्धकीय कुशलता है, जिसके उपयोग से
अपनी तथा दूसरे की भावना को समादृत तथा प्रभावी तरीके से लोगों एवं समस्याओं का समाधान इस प्रकार किया जाये, जिससे क्रोध और दुश्मनी कम हो तथा सहयोगी प्रयास विकसित हो। जीवन में संतुलन हो और सृजनात्मक ऊर्जा का निस्सारण हो। इस प्रकार भावनात्मक कुशाग्रता वह योग्यता है, जो स्वयं एवं अन्य के संवेगों को नियंत्रित एवम् परिमाजित करते हुए, भावनाओं का उपयोग विचार एवम् कार्य को दिशा देने में किया जाए।
मन के जीते जीत है - गुरु नानक
बुद्धिमत्ता से रचनात्मकता एवम् भावनात्मक्ता से सूत्रपात की प्रेरणा मिलती है। आध्यात्मिकता से बुद्धिमत्ता एवम् भावनात्मकता दोनों स्वतः विकसित हो जातें है।
अनपढ़ और पढ़ा, परंतु पढ़ता नहीं। दोनों में कोई अंतर नहीं। शिक्षित व्यक्ति गूढ़ विषय को साधारण बना लेता है, जबकि अन्य लोग सामान्य धटना को गूढ़ बना देतें है। मानव का सामान्य बने रहना आसान नही है।
सहज होने के लिए जीवन के विविध आयामों में संतुलन और सामंजस्य जरूरी है। भावना सामाजिक जीवन की आवश्यकता है। इसका प्रस्फुटन कई रूपों में होता है जैसे -
जीवन हेतु जैविक संघर्ष - Biological survival के लिए मानव को संघर्ष या पलायन करना पड़ता है।
एकात्मबोध - आत्मा परमात्मा का अंश है इसलिए जीव ईश्वर से अदृश्य बंधन से जुड़ा है। ईश्वर का साथ होने से अकेलापन महसूस नहीं होता।
सामाजिक परिवेश -मानव एक सामाजिक प्राणी है। अतः इसकी जीवन नईया को सामाजिक भाव सागर पार करना होता है, सद्गुण से सदकार्य करते हुए।
आत्मबोध - जाग्रत चेतना को स्वतः कर्म की दिशा देना।
संवाद- वाणी ही संचार साधन नहीं, शारीरिक भाषा भी भावना प्रकट कर देती है।
क्षमतावान व्यक्ति ही सफल हो सकता है, निर्बल नही। इसलिए आत्मज्ञान बढ़ाये। आत्मा की पुकार सुनें। चेतना का अनुसरण करें। कहा भी गया है-
Thinking is every thing what you think you become. - Buddha
Mind you mind and it will mind everything else for you. Win mind , win world.
-Winston Churchill
इसके लिए एकाग्र चित्त होना होता है। संकल्प शक्ति बढ़ानी होती है। जब खाना खाएं तो केवल खाना खाएं, जब काम करें तो केवल काम करें। और जब प्रार्थना करें तो केवल प्रार्थना करें।
एक प्रश्नकर्ता ने ईश्वर से पूछा कि आप को मानव प्राणी किस रूप में आश्चर्य चकित करता है? उत्तर था कि वे धन की प्रप्ति के लिए अपना स्वास्थ्य गवांते है और स्वास्थ्य की सुरक्षा में धन गवां देते हैं। इसलिये धन, पद, प्रतिष्ठा, सफलता और प्रसन्नता के लिये भविष्य की चिंतन करते समय वर्तमान में भी जीना सीखें। कुछ लोग इस प्रकार जीवन व्यतीत करतें हैं, मानो वे अमर हों और कुछ ऐसे मृत्यु को प्राप्त होतें है मानो उन्होंने जीवन जिया ही नहीं। कुछ लोग बाल्यावस्था से युवावस्था को प्राप्त करने हेतु प्रयासरत रहतें है, और पुनः बचपन को प्राप्त करने हेतु इच्छुक होने लगते हैं।
सच्ची सफलता - विकास की दौड़ में सफलता तनाव पैदा कर रही है। स्वास्थ्य, मानसिक शांति और प्रसन्नता के आभाव में मात्र भौतिक उपलब्धता सच्ची सफलता नहीं है। जीवन कैसे अर्थपूर्ण हो ? जीवन में संतुष्टी हो, आनंद का प्रवाह हो। व्यक्तिगत सफलता और व्यावसायिक सफलता दोनों के बारे में हमारा अपना भ्रम संयुक्त रूप से दोषी है। व्यावसायिक जगत के लिए हर हालत में लाभ ध्येय होता है। जबकि जीवन का ध्येय आनंद (मोक्ष) प्राप्त करने में है। अतः सच्ची सफलता प्राप्त करना होगा, मात्र भौतिक उपलब्धियाँ हमें शांति प्रसन्नता नहीं प्रदान कर सकती है।
कर शीश चीज अता ऐ मालिके दो जहान हस्ती।
इमाम अमान, तंदुरुस्ती, इल्म अमल फरखदस्ती।।
चार डी का सिद्धान्त - 1. Discovery (खोज) 2. Dream (कल्पना) 3. Divine (परिकल्पना) 4. Destiny (नियति)
1. खोज- मैं कौन हूँ, चिंतन करना।
2. कल्पना- लोक कल्याणार्थ सद कार्य करने का सपना देखना।
3. परिकल्पना- सदकार्यों का नियोजन करना।
4. नियति- फल की चिंता भाग्य पर।
प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए समान्य बुद्धि के उपयोग का सिद्धान्त हमेशा सहायक होता है। परन्तु आदमी का सहज रह पाना सहज नही। जीवन निर्वाह में निम्न सिद्धान्त सहायक होतें है-
1. आप का अपना जीवन है किसी दूसरे का नहीं, अतः अपने कार्य दायित्व की चिंता करें।
2. सौहार्द से रहें।
3. अपने अंदर झाकेँ और वैसा बर्ताव करें जैसा आप दूसरों से अपेक्षा करतें है।
सफलता के मुख्य संसाधन -
1. स्वास्थ्य की रक्षा करना अनिवार्य है।
2. धन का उपार्जन मूलभूत आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति हेतु आवश्यक है।
3. जियो और जीने दो।
4. आध्यात्मिकता का अनुशरण करें।
इस सम्बंध में पंच योग महत्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं।-
1. हठ योग- स्वास्थ्य का योग।
2. कर्म योग- क्रियाशीलता का योग।
3. ज्ञान योग- ज्ञानार्जन का योग।
4. भक्ति योग- समर्पण का योग।
5. राज योग- चिंतन का योग।
परन्तु हम सब कुछ तुरंत पाना चाहते है, बिना अथक प्रयास किये एवं ऊर्जा के। सफलता के मुख्य तत्व प्रेम, दया, और मानवता का भाव ही हो सकता है। अतः अपनापन दें, पूर्ण ज्ञान प्राप्त करें। अपना पथ प्रदर्शक चुनेँ और ईश्वर से भले की प्रार्थना करें।
असफलता क्यों ? 1. अवसर गँवाना 2. जीवन में लक्ष्य का अभाव 3. सामाजिक आर्थिक परिस्थितियां 4. गलत बात पर अड़ कर स्थान काल एवं समय के साथ समन्वय का अभाव।
सफलता के लिए क्या करें ? 1. सार्थक शिक्षा 2. आर्थिक उन्नयन 3. इच्छा शक्ति 4. अहम् का त्याग 5. आसक्त न होना 6. भयभीत न होना 7. नियंत्रण तंत्र में लोकतांत्रिक क्षमता का विकास करना ( शक्ति, धन, बुद्धि का प्रयोग करते हुए।)।
सही समय पर सही कदम सही तरीके से उठाने पर सफलता हाथ लगती है। केवल कठोर परिश्रम करने से ही अच्छा परिणाम नहीं मिलता। जीवन का प्रबंधन, विशिष्टता बनाये रखना एवं समय का समेकित प्रबंधन सहज चेतना से सहज रूप में करने से ही सफलता ख़ुशी के साथ प्राप्त होती है।
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