तीन महान महिलाओं की कहानियाँ

हर एक प्रगतिशील समाज के मूल में महिला सशक्तिकरण ही है। कई सदियों तक हमारे देश में महिलाओं और उनकी जरूरतों पर ध्यान नही दिया गया, बल्कि सच तो यह है कि उनका तिरस्कार ही होता रहा। भारत के कई हिम्मत वाली महिलाओं ने अपना सारा जीवन भारतीय महिलाओं की उन्नति के लिए समर्पित कर दिया, ताकि आने वाली पीढ़ियों की महिलाएं ख़ुद को अन्याय अत्याचार और क्रूरता के चंगुल से छुड़ा पाएं और शिक्षा, रोजगार और राजनीति की बुलंदियों को छू सकें।
     1950 में भारत के संविधान में महिलाओं के लिए बराबरी के अधिकार और संभावनाओं को एक क्रांन्तिकारी परिवर्तन के रूप में गढ़ा गया। परिणाम स्वरुप आज स्वतंत्र भारत में महिलाओं की स्थिति बेहतर है। कुछ समस्याएं जिससे महिलाएं सदियों से घिरी रहीं थी, जैसे बाल विवाह, सती प्रथा, विधवाओं के दुबारा विवाह की मनाही और बालिकाओं के शिक्षा के प्रति नकारात्मक रवैया जैसे चलन से अब छुटकारा मिल चुका है।


      विज्ञान और प्रोधोगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति, अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर पहुँच बनाने के साथ सामाजिक राजनैतिक आंदोलनों में खुल कर हिस्सेदारी के फलस्वरूप महिलाओं के प्रति लोगों के रवैये में और भी ज्यादा बदलाव आया है। इन बदलावों की वजह से महिलाओं के मनोबल और आत्मसम्मान में बढ़ोत्तरी हुई है। पहले से ज्यादा बड़ी संख्या में भारतीय महिलाएं अब यह महसूस करती है कि उनका एक विशिष्ठ व्यक्तित्व है, आत्मसम्मान है, खूबियां है, क्षमताएं है और योग्यताएं है। बहुत सारी ऐसी महिलाएं जो उपलब्ध अवसरों का उपयोग कर पा रहीं है, उन्होंने साबित कर दिया कि वह दी गयी जिम्मेदारियों को निभाने में पूरी तरह सक्षम हैं।
     इसके बावजूद बदलती परिस्थितियां अपने साथ नयी तरह की चुनौतियाँ ले कर आती हैं। कुछ मायनो में, बीते समय की तुलना में आज भारतीय महिलाओं को दोनों ही जगह घर का और अपने करियर का बोझ झेलना पड़ रहा है जिससे नई तरह के दबाव और चिंताओं का सामना करना पड़ रहा है।



     मैं यहां तीन महान महिलाओं की कहानियों को आप से साझा करना चाहूँगा, जिन्हें अपना आदर्श बनाया जा सकता है।

मैरी क्यूरी नोबल पुरस्कार जीतने वाली पहली महिला थी। पोलेंड के
वारसा शहर में जन्मी मैरी यानी मारिया स्कोदोव्स्का भौतिकविद और रसायनशास्त्री थीं। जो मुख्य रूप से फ्रांस में काम करती थीं। उन्हें 1903 में सहज विकिरण में उनके शोध के लिए भौतिक शास्त्र का नोबल पुरस्कार दिया गया। वह पेरिस विश्वविद्यालय की पहली महिला प्रोफ़ेसर भी थी। रेडियोधर्मिता के प्रतिपादन के सिद्धान्त  के साथ किसी तत्व के रेडियो आइसोटोप अलग करने की तकनीकी और दो तत्व पोलोनियम और रेडियम की खोज भी उनकी उपलब्धि में शामिल है। रेडियो धर्मिता के गुण के लिए सारी दुनिया में प्रयोग किया जाने वाला शब्द रेडियोओएक्टिविटी भी उन्होंने ही गढ़ा। दुनिया में पहली बार कैंसर के इलाज के लिए रेडियो आइसोटोप प्रयोग करने के लिए सबसे पहले शोध कार्य भी उन्ही की देख रेख में किया गया। 
     पिता के परिवार और ननिहाल, दोनों ही की धन दौलत और जमीन ज़ायदाद इन परिवारों की देशभक्ति की भावना के चलते पोलेंड की राष्ट्रवादी क्रांति के यज्ञ की भेंट चढ़ गयी थी, जिससे उन्हें जिंदगी में आगे बढ़ने की राह में कठिन संघर्ष का सामना करना पड़ा। उच्च शिक्षा के लिए वह फ्रांस चली गयी। और वहां बेहद सीमित संसाशनों में बड़ी मुश्किल से किसी तरह सर्दियों के मौसम में ठंड बर्दाश्त करते हुए काम चलाया, यहां तक की भूखे रहने के कारण आई कमजोरी से वह कई बार बेहोश भी हो गयी।


     भौतिक शास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने पियरे क्यूरी से विवाह किया और फिर दोनों मिलकर शोध कार्य में जुट गए। क्यूरी दंपत्ति की अपनी कोई प्रयोगशाला तक नहीं थी। और संस्थान के बगल में एक काम चलाऊं छत के नीचे वह अपना तमाम शोध कार्य किया करते थे। उस घुटनभरी जगह जहां पहले जहाँ चिकित्सा विज्ञान के छात्र अपनी पढ़ाई के लिए जीव जन्तुओं की चीड़ फाड़ किया करते थे, बरसात होने पर छत से पानी चूने लगता था। ऐसी जगह विकिरण की चपेट में आने के हानिकारक प्रभावों से बेख़बार बचाव के किसी इंतज़ाम के बिना वह रेडियोधर्मी पदार्थों के साथ अपना प्रयोग करते रहे।  मैरी के पति की तो 1906 में एक दुखद सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। लेकिन वह परिवार चलने की जिम्मेदारी निभाने के साथ अपने शोधकार्य जुटी रहीं।
1911 में पति की मौत के पांच साल बाद, रेडियोधर्मिता के क्षेत्र में उनके काम जे महत्व को समझते हुए उन्हें दोबारा रसायनशास्त्र का नोबल पुरस्कार दिया गया।


     उनके जीवन से आज के भारत की महिलाओं को क्या सन्देश मिलता है? कुछ बड़ा घटने का इंतज़ार मत करो। जहां हो वहीं से - जो तुम्हारे पास है उसी से शुरुआत करो - और ऐसा करने से तुम्हारी बेहतरी की रास्ते अपने आप ही खुलते चले जायेंगे। कहीँ से शुरुआत तो करो - जो हम करना चाहतें है उसके आधार पर अपनी कोई छवि नहीं बनाई जा सकती। आप इस इंतज़ार में बैठे तो नहीं रह सकते कि लोग आपके सुनहरे सपने को पूरा करके आप को भेंट कर दें। ख़ुद आगे बढ़कर अपने सपनों को साकार करना होगा। प्रतिभा हर किसी में होती है। लेकिन अपनी उस प्रतिभा को उस मंजिल तक पहुँचाने का जज़्बा वह दुर्लभ चीज़ है जो हर किसी के पास नही होता।

     एक पुस्तक है जिसका शीर्षक है Every day Greatness इस
किताब की एक कहानी बताने जा रहा हूँ, जिससे महिला की अपरिमित शक्ति का पता चलता है। मेक्सिको के तिह्याना के ला मीज़ा कारागार में दंगा भड़क गया था। सिर्फ 600 लोगों के लिए बनाये गए प्रांगण में 25000 लोगों को ठूस दिया गया था। वह गुस्से से टूटी बोतलों से पुलिस पर हमला कर रहे थे। और ज़वाब में पुलिस गोलियां चला रहीं थी। इस भीषण लड़ाई के बीच अचानक 5 फुट 6 इंच कद वाली कमज़ोर महिला शांति बहाल करने की मुद्रा में हाथ फैलाये भीड़ के बीच जा पहुँची। गोलियों की बौछार को नज़र अंदाज़ करते हुए वह शांत खड़ी रही और लोगों से शांत होने की गुहार लगती रही। और विश्वास नही होता सारे लोग शांत हो गए। दुनिया में और कोई ऐसा नही कर सकता था। लेकिन उन्होने कर दिखाया। उनका नाम है सिस्टर एन्टोनिया।


     एक बेहद सफल व्यवसायी के घर जन्मी सिस्टर एन्टोनिया का बचपनब का नाम मैरी क्लार्क था। और उनकी परवरिश अमेरिका में कैलिफोर्निया के बेवरली हिल्स के ख़ास रईसों के इलाके में हुई थी। रईसी ठाट बाट की जिंदगी के बावज़ूद वह लोगों के कष्ट के प्रति संवेदंशील थीं और अपने आस पास के ज़रूरतमंद लोगों का ध्यान रखती थी। कम उम्र में शादी भी हो गयी। दूसरी शादी भी हुई। दोनों शादियों से हुए सात बच्चों की परवरिश की। अपने दिवंगत पिता के कारोबार को संभालते हुए, वह सिर्फ परिवार चलाने से संतुष्ट नहीं हुई, बल्कि बढ़ चढ़ कर परोपकार के कामों में हिस्सा लेती रहीं। 25 साल परिवार चलने के बाद जब उनके ज्यादातर बच्चे घर से दूर चले गए, तब उन्होंने अपनी जिंदगी में में जबरदस्त बदलाव किया। उन्होंने अपना घर और तमाम चीजे बेच दी और तिह्याना के ला मीज़ा बंदी गृह की सेवा में जुट गयी। 
     कैदियों ने उनकी बात क्यों सुनी? इसलिए सुनी क्योकि वह अपनी इच्छा से दसियों साल से बंदियों की सेवा में लगी थी। कैदियों के ख़ातिर अपने सारे सुख को तिलांजलि दे कर वह हत्यारों, चोरों और मादक पदार्थों का धंधा करने वालों के बीच रह रहीं थी। और उन्हें अपना बेटा बताती थीं। वह उनकी ज़रूरतों का ध्यान रखती थी उनके लिए दवाओं का इंतज़ाम करके उन्हें बंटती थी। मरने पर दफनाने के पहले अंतिम स्नान करवाती थीं और आत्महत्या करने की सोचने वालों को समझा बुझा कर शांत करती थी। प्रेम करुणा से भरी इस निष्काम सेवा के कारण ही कैदियों के मन में मैरी क्लार्क के प्रति आदर के भाव पनपे थे और 1994 की उस ख़ास रात भी कैदियों ने उनकी बात मानी जबकि उस रात कैदियों का वह बलवा ज्यादा भयावह रूप ले सकता था। 
     मैरी क्लार्क के जीवन से आज की महिला का क्या सन्देश मिलता है? इस बात को जानो कि तुम कौन हो, अपने परिवार और उस पुरुष या स्त्री से अलग हट कर जिसके साथ तुमने रिश्ता गढा है। पता करो इस दुनिया जे लिए तुम कौन हो?  तुम्हे क्या करना चाहिये? खुश रहने के लिए अपने आप में ख़ुशी को महसूस करने के लिए। मेरा मानना है कि जीवन में यही सबसे जरूरी चीज़ है। अस्तित्व के सार तत्व को खोज निकालो, क्योकि उससे तुम जो चाहो हासिल कर सकते हो। तुम्हे किसी दूसरे द्वितीय श्रेणी की नक़ल बनने के बजाए ख़ुद अपना ही प्रथम श्रेणी का प्रारूप होना चाहिए।

     अगर महिलाएं पुरुषों की नक़ल करके ही सफल हो सकती हैं, तो मुझे लगता है की यह सफलता नहीं बड़े नुक्सान की बात है। एक महिला का उद्देश्य सिर्फ सफल होना नहीं होना चाहिए, बल्कि अपने नारित्व को संजोकर रखते हुए इस तरह सफल होना चाहिए कि नारी की गरिमा बढे और समाज पर उसका असर पड़े। 

     सन् 2012 के 8 जून को ला वालोंन्तारियात के स्वर्ण जयंती समारोह में डॉ कलाम को आमंत्रित किया गया। तो उन्होंने इसकी संस्थापिका, मैडिलिन द ब्लीक मिली, उनके अंदर अदम्य साहस का मूर्त रूप दिखाई दिया। 1962 में सबसे गए बीते गरीबों के लिए अपना एक साल समर्पित करने बेल्जियम से भारत आयीं। शुरुआत में उन्होंने क्लूनी सिस्टर्स हॉस्पिटल के प्रसूति रोग विभाग में कार्य किया, जहां उन्होंने एक मुफ़्त क्लिनिक भी चलाया। और फिर उन्होंने गरीबों की मदद करने के लिए ला वालोंन्तारियात की स्थापना भी किया। उन्होंने अरनू द ब्लीक से विवाह किया। जो फ्रेंच लीसए में काम करने के लिए आये और फिर वापस नहीं गए। उनके दो पुत्र हुए और दो उन्होंने गोद लिया। 
     पिछले पांच दशकों के दौरान इस मिशन ने बहुत सारे बच्चों को शिक्षा से सशक्त बनाया, बेसहारा औरतों और कोढ़ के मरीजों के पुनर्वासन का काम किया और आस पास के इलाकों में जैविक खेती को बढ़ावा दिया। ला वालोंन्तारियात की तरफ से छोटे बच्चों की देख रेख के लिए आंगनवाड़ी और इलाज के लिए स्वास्थ्य केंद्र की व्यवस्था है, अनेक सांध्य विद्यालय है जहां संस्था की ओर सेब1600 से ज्यादा छात्रों को भोजन की व्यवस्था है। संस्था ने 1300 बच्चों को संरक्षण दिया हुआ है और इसके लिए करीब 200 लोग काम करतें है। जब हम इनकी सेवाओं पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि महात्मा गांधी जी की यह सीख अपनी माँ से तब मिली जब गांधी जी केवल 9 साल के थे। उन्होंने कहा था -'बेटा अगर तुम अपने पूरे जीवन में किसी की जान बचा सकते हो, या किसी की जिंदगी बेहतर बना सकते हो, तो समझो इंसान के रूप में तूम्हारा जन्म और जीवन सफल है। तुम्हे सर्वशक्तिमान ईश्वर का वरदान मिल गया।'
     मैडिलिन ने पिछले पाँच दशक में हजारों लोगों की जान बचाई है। और उनकी उस अद्वितीय सेवाओं के लिए हम सब उनके आभारी हैं। लोग प्यार से उन्हें अम्मा मैडिलिन अम्मा कहतें है और सहृदयता के यही बोल वहां गूंजा करतें है। 
     दोस्तों, जब आप उनसे मिलेंगे तो उनमे मदर टेरेसा का सेवा भाव और फ्लोरेंस नाइटिंगिल का दया भाव देखने को मिलेगा। 
     
     इन तीन कहानियों से हमें क्या सन्देश मिलता है ? वास्तव में स्त्री पर आकर ईश्वर की सृष्टि अपनी सम्पूर्णता को प्राप्त करती है। सृजन करने पालन पोषण करने और परिवर्तन की शक्ति उसी में निहित है।
    इक्कीसवीं शताब्दी की उभरती हुई स्त्री को दिल दिमाग, शरीर और आत्मा से सशक्त होना चाहिए। शक्ति और उत्साह, सामर्थ्य और संवेदना का साथ आवश्यक है।


उभर कर सामने आती स्त्री
आगे बढ़ती सिर उठा कर
नज़रे सीधी मंजिल पर 
है मर्यादा उसकी अपनी
उसे किसी का नहीं डर
है गगन चुम्भी जिसका मान
और आधार बने ज्ञान
सुसंकृत न डिगें राह से
भ्रम त्यागें बोध की चाह से
जीवन के आनंद का स्वागत
उनके विशारद मन का कर्म
ऐसी है सम्पूर्ण स्त्री
और है ऐसा उसका धर्म


                                     - महाकवि सुब्रह्नयम भारती
                                   (आधुनिक कविता के प्रवर्तक)

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