मन की साधना ही सबसे बड़ी साधना है।

मन एवं मनुष्याणां कारणम् बांध मोक्ष्योः ।
बंधाय विषयासक्त मुक्त निर्विषय स्मृतम् ।।


मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है। विषयासक्त मन बंधन के लिए और निर्विषय मन मुक्त माना जाता है।
     
     मैं इस बात को एक किम्बदन्ती के माध्यम से बताता हूँ। हमारे यहां कल्प वृक्ष की महत्ता से सभी परिचित होंगे। स्वर्ग में होता है और जो मांगो वही देता है। एक बार नारद जी अपने एक शिष्य को लेकर पृथ्वी से स्वर्ग लोक पहुँचे। वहाँ उन्होंने उसे एक कल्प वृक्ष के नीचे बैठा दिया और
कहीं अन्यत्र चले गए। वह आदमी थक गया था। वह सोचने लगा कि कोई मेरा पैर दबा देता! विचार आया, ठीक वैसे ही अप्सराएं वहाँ उपस्थित हो गयीं और उसकी सेवा करने लगी। वह तो गद-गद हो उठा। कहा- स्वर्ग में कितना सुख है। दूसरे क्षण एक विचार आया कि कहीं मेरी पत्नी इस दृश्य को देख ले तो लड़ाई शुरू हो जायेगी। इतना सोचना ही पर्याप्त था कि उसी क्षण उसकी पत्नी हाथ में झाड़ू लिए वहां उपस्थित हो गयी और उसकी पिटाई करना शुरू कर दी। आगे-आगे वह और पीछे पीछे झाडू धारिणी पत्नी। नारद जी तुरंत वहाँ पहुँचे और बोले मूर्ख सोचना ही था तो अच्छी बात सोचते। कल्प वृक्ष से तो जो मांगों वही देता है। 
     कहने का तात्पर्य यह है कि हम जैसा सोचते है वैसा ही बन जातें हैं। मन ही सारी क्रियाओं का नियामक है। जिसने अपने मन को साध लिया, वह पूरी दुनिया को भी जीत सकता है। अगर आप साधन हीन है, या शारीरिक रूप से कमजोर हैं, तो भी अपने मन में श्रेष्ठ भाव आने दीजिये। क्योंकि कंचन बनने के लिए बहुत सारी जटिलताओं से गुजरना पड़ता है। इसके साथ ही विपरीत परिस्थितियों में ही व्यक्ति के साहस और विवेक की परीक्षा होती है। कहा भी गया है-

वह पथ और पथिक कुशलता क्या ?
जिस पथ पर बिखरे शूल न हों।
नविक की धैर्य परीक्षा क्या?
जब धाराएं प्रतिकूल न हों।।


     आत्मविश्वास के द्वारा ही आदमी निर्णय लेने में समर्थ होता है।आत्मविश्वास मनुष्य की सम्पूर्ण शक्तियों को संगठित करता है। चित्त की एकाग्रता प्रबल होने पर मनुष्य की प्रसुप्त शक्तियाँ जाग्रत हो जाती है। आप के पास जो शक्तियाँ है, उन पर विश्वास करना और उसका सही उपयोग करना ही सफलता का मूल मन्त्र है। यदि मन में दृढ इच्छाशक्ति का अभाव होगा तो व्यक्ति को अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त नहीं हो सकेगी। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है- "संस्यात्मा विनश्यति" अर्थात जिसके मन में संशय होता है उसका विनाश हो जाता है। सम्भवतः इसीलिए उन्होंने उपदेश दिया था कि मनुष्य को प्रत्येक कार्य दृढ संकल्प के साथ करना चाहिए, तभी सफलता प्राप्त हो सकती है। 


     सृष्ठि के एक छोटे से जीव चींटी से प्रेरणा ली जा सकती है, जो जिंदगी की जुगत में भोजन लेकर दीवार पर चढ़ती है, गिरती है और यही क्रम बार बार चलता रहता है अंततः उसके अथक प्रयास और उसके मानसिक संबल की जीत होती है। यही जिंदगी का अकाट्य सत्य है। इतिहास में अनेकों घटनाएं दर्ज है जब अनेकों लोगो ने अपने आत्मविश्वास के बल पर जीत दर्ज की विश्वविजेता नेपोलियन, जर्मन प्रधानमंत्री विस्मार्क तथा वर्तमान युग में मिसाइलमैन पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम आदि इनके सशक्त उदाहरण है।
     आत्मविश्वास के विकास में परिवार और समाज की महती भूमिका है। यह पाया गया है जिन बालकों की मां बाप तथा शिक्षकों द्वारा प्रसंशा की जाती है, उनके अंदर आत्मविश्वास कूट कूट कर भर जाता है, किन्तु जो माँ बाप बच्चों को हमेशा उलाहना देतें है, उनका आत्मविश्वास चकनाचूर हो जाता है। 
     यदि अपने ऊपर विश्वास है तो असंभव कुछ भी नहीं है। लेकिन कर्म के प्रति ईमानदारी होना चाहिए। मानव दूसरे से भले ही कुछ छुपा ले किन्तु अपने आप से कुछ छिपा नही सकता। अगर आप अपनी असफलताओं का विश्लेषण करें तो सब कुछ आप के सामने होगा। जिंदगी एक जंग है जिसे संघर्ष से जीत जा सकता है। हर छोटी सी असफलता सफलता का द्वार खोलती है। खिलाडी जैसे मैदान में कभी जीतता है और कभी हरता है। ठीक वैसे ही हमें खेल भावना को अपने जीवन में आत्मसात कर लेना चाहिये। चाहे कैसी भी परिस्थितियाँ क्यों न हो व्यक्ति को डरना नहीं चाहिए।



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