बेंजामिन फ्रैंकलिन का नैतिक या प्रूडेंशिअल बीजगणित (अलजेब्रा)


जोसेफ प्रिस्टले को बेंजामिन फ्रैंकलिन द्वारा लिखा गया पत्र। प्रिस्टले जब अर्ल ऑफ़ शेलबर्न के लिए लाइब्रेरियन बने तो उन्होंने बेंजामिन से सलाह ली थी। फ्रैंकलिन ने अपने पत्र में वह तरीका बताया जिसके द्वारा दुविधाओं को सुलझाया जा सकता है।

प्रिय महोदय, जिस महत्वपूर्ण प्रकरण में आप ने मुझसे सलाह मांगी थी, मैं पर्याप्त जानकारी के अभाव में आप को यह सलाह नहीँ दे सकता कि, आपको क्या निर्णय करना है, परंतु आप चाहें तो मैं आप को बता सकता हूँ कि आप निर्णय कैसे करें। जब ऐसे कठिन प्रकरण आतें है तो उनके कठिन होने का मुख्य कारण यह होता है कि हालाँकि हम उन पर विचार करतें है, परंतु पक्ष और विपक्ष के कारण हमारे मस्तिष्क में एक साथ नहीं दिखते, कभी एक पहलू मौजूद रहता है तो कभी दूसरा। इसलिए अलग अलग उद्देश्य या रुचियाँ हावी होने लगती हैं और अनिश्चितता हमें दुविधा में डाल देती हैं।
          इससे निबटने के लिए मेरा तरीका यह है कि मैं एक कागज़ के बीच में एक लाइन खींच कर उसे दो कॉलम में बाँट देता हूँ, एक तरफ मैं लिख देता हूँ पक्ष और दूसरी तरफ विपक्ष। फिर तीन या चार दिनों के विचार के दौरान जो विचार समय समय पर मेरे दिमाग में आतें है, मैं उन पर अलग अलग हैडिंग डाल कर संक्षिप्त संकेत लिख देता हूँ, उस कदम के पक्ष में भी और विपक्ष में भी। जब मैं अपने सामने उन सब को इस तरह इकठ्ठा कर लेता हूँ कि सभी बिंदु एक साथ दिख जाएँ तो मैं उनके वज़न की जाँच करने की कोशिश करता हूँ। अगर मुझे लगता है की पक्ष के विचार का वजन विपक्ष के वजन के बराबर है तो मैं दोनों को काट देता हूँ। अगर मुझे लगता है की पक्ष का एक कारण विपक्ष के दो कारण के बराबर है तो मैं तीनों को काट देता हूँ। अग़र मुझे लगता है कि पक्ष का दो कारण विपक्ष के तीन कारणों के बराबर है तो मैं पाँचों को काट देता हूँ और इस तरह से मैं तब तक आगे बढ़ता रहता हूँ, जब तक मुझे यह पता न चल जाये कि पलड़ा किस तरफ झुक रहा है। और एक या दो दिन के चिंतन के बाद भी मेरे मन में पक्ष या विपक्ष में कोई नया महत्वपूर्ण विचार नहीँ आता है तो मैं उसके अनुसार निर्णय पर पहूँच जाता हूँ। हाँलाकि कारणों का वज़न बीजगणित की मात्रा जितनी सटीकता से नहीं लिया जा सकता, फिर भी जब हर एक को अलग अलग और तुलनात्मक रिति से तौला जाता है और जब पूरे कारण मेरे सामने होतें है तो मुझे लगता है कि मैं बेहतर निर्णय कर पाता हूँ, मेरे जल्दबाजी में क़दम उठाने की कम संभावना होती है, और दरअसल मैंने इस तरह के समीकरण से बहुत लाभ उठाया है, जिसे नैतिक या प्रूडेंशियल अलजेब्रा कहा जा सकता है।

   

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