सूरदास, प्रभु तुम्हरे दरस बिन

सूरदास जन्मांध थे, परंतु उन्होंने अपनी आत्मिक नेत्रों से भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को देखा। विश्व के इतिहास में बाल मनोविज्ञान का इतना सुन्दर, श्रेष्ठ, सजीव चित्रण करने वाला दूसरा और कोई नहीं है। भक्ति और अभिव्यक्ति क्षेत्र में उनका कोई भी प्रतियोगी नही है। भक्ति धारा के उद्भव का श्रेय, भक्ति धारा को माधुर्य प्रदान करने का श्रेय महान कवि सूरदास जी को ही जाता है। हम हर साल 23 अप्रैल को सूरदास जयंती मनाते है। ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म सन् 1536, वैशाख माह (पंचमी) में, दिल्ली के ही निकट सीही नामक स्थान पर हुआ था। वे निर्धन ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। लोक मतानुसार वे जन्मान्ध थे। वे सदैव ईश भक्ति में लीन रहा करते थे, और अपनी भक्ति के लिए एकांत स्थान चाहते थे, जो उन्हें नहीं मिल पाता था। उस एकांत स्थान की खोज में वे एक स्थान से दूसरे स्थान भ्रमण किया करते थे। सबसे पहले उन्होंने यह निर्णय किया कि वे सीही गाँव को छोड़ देंगे। उनके गायन शक्ति से प्रभावित हो कर, श्री प्रकाश नामक व्यक्ति उनके भक्त हो गये ...