नटखट बालक नरेन्द्रनाथ (स्वामी विवेकानंद)

समय समय पर भारत में अनेक ऐसे मनीषियों ने जन्म लिया जिन्होंने
अपनी आस्था, निष्ठा और विद्वता से, सारे संसार की चमत्कृत किया।  स्वामी विवेकानंद वर्त्तमान युग में इस परम्परा के प्रतिनिधि थे। वे ब्रह्मचर्य, दया, करुणा, मानव प्रेम आदि, उदार मानवीय गुणों के मूर्त रूप थे। उनकी तर्क शक्ति अद्वितीय थी। शिकागों विश्व सम्मेलन में उनके व्यक्तित्व से, विश्व मुग्ध हो उठा था। 
     आईये ऐसे ही महान अमर व्यक्तित्व गुणों वाले महापुरुष के जीवन की बाल्यवस्था के अनछुए पलों को पढ़तें है।

     एक बार की बात थी, बालक नरेन्द्रनाथ अपने सथियों के साथ अपने पूजावाले कमरे में बैठ कर, ध्यान लगा रहे थे, पूजा के समयावधि में ही एक विषधर नाग, नरेन्द्रनाथ के सामने फन फैलाकर बैठ गया। जब अन्य बालकों ने यह देखा तो, सभी शोर मचाते हुए वहाँ से दूर हट गए, परंतु किसी की हिम्मत न हुई, कि उस नाग के सामने से नरेन्द्रनाथ को हटा लें। कई बार आवाज़ देने के बाद भी नरेन्द्रनाथ का ध्यान भंग न हुआ। अन्य सहपाठियों ने, नरेन्द्रनाथ के घर वालों को बुला लिया, परंतु किसी की हिम्मत नही हो रही थी की उस नाग से नरेन्द्रनाथ को बचा लें। कुछ समय तक वह नाग अपना फन निकले वहीँ बैठा रहा, परंतु इन सब बातों से बेख़बर बालक नरेन्द्रनाथ का बहुत देर तक ध्यान विचलित नही हुआ और नाग स्वयं ही कुछ समय बाद वहां से चला गया।
     बालक नरेन्द्रनाथ को सन्यासी बहुत भाते थे। कभी भी जब कोई संन्यासी उनके घर के पास से निकलता,  वह उन्हें बुलाकर अनाज इत्यादि दान दे दिया करते थे भगवा वस्त्र पहन कर शिव-शिव कहते हुए संन्यासियों की तरह ही नाचा करते थे। इसके लिए उन्हें डॉट और मार भी पड़ती लेकिन इन सब का उन पर कोई असर नहीं होता था, अगले दिन भी वही काम करते, जो उन्हें भाता था।
     नरेन्द्रनाथ को अपनी माता से बहुत लगाव था वह अपनी माता से रामायण का पाठ सुना करते थे और यह भी सुना था कि हनुमान जी अमर है यह बात उनके दिमाग में हमेशा रहती थी। एक बार सत्संग में उन्होंने कथावाचक से सुना, कि हनुमान जी को केला बहुत पसंद है सत्संग खत्म होने के बाद वे साधू के पास गए और पूछा - क्या सच में हनुमान जी को केला पसंद है। साधू ने कहा - हाँ। नरेन्द्रनाथ ने फिर पूछा- अच्छा तो वह मुझे केले के बगीचे में मिल जायेंगे न। साधू ने हामी भर दी। वे वहां से सीधे केले के बग़ीचे में जाकर वहाँ हनुमान जी को खोजने लगे। इंतज़ार करते करते शाम हो गयी और वह उदास मन से घर आये। उदास सा चेहरा देखकर उनकी माता जी ने उदासी का कारण पूछा। नरेन्द्रनाथ ने सारी बात बता दी। माता जी ने उनके सिर पर हाथ फेरते हुए बोला- बेटा, उन्हें आज कहीं काम होगा, इसलिए कहीं चले गए होंगे, वे कल मिल जायेंगे इतना कहते ही नरेन्द्रनाथ का मन खिल उठा और वे खुश हो गए।

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