महात्मा गाँधी के प्रेरक कथन (1)

  • अपने दोष हम देखना नहीं चाहते,
   दूसरों के दोषों को देखने में आनंद आता है,
   बहुत सारे दुःख तो इसी आदत से पैदा होते हैं।




  • बुद्धिमान मनुष्य काम करने से पूर्व सोचतें है, और मूर्ख काम करने के पश्चात।




  • भूल करना पाप तो नहीं है लेकिन इसे छिपाना उससे भी बड़ा पाप है।




  • क्रोध एक प्रचंड अग्नि कि ज्वाला है, जो मनुष्य इस ज्वाला को वश में कर सकता है, वह उसे बुझा सकता है,




  • जो मनुष्य अग्नि की ज्वाला को वश मैं नहीं कर सकता वह स्वयं को ही जला लेगा।





  • बुराई से असहयोग करना मानव का मानवता के पवित्र कर्तव्य है।





  • खादी, वस्त्र नही विचार है।





  • जिस दिन प्रेम की शक्ति, शक्ति पर विजयी हो जाएगी, उस दिन विश्व में अमन और शांति का वातावरण होगा।





  • शांति का कोई भी दूसरा रास्ता नही, एक मात्र शांति ही है।





  • किसी कार्य को प्रेम से ही करें अथवा करें ही नहीं।





  • चिंता चिता के समान है, यदि आप को ईश्वर पर विश्वास है तो आपके चिंतित होने पर स्वयं को शर्मिंदा होना चहिये।





  • किसी के महत्वपूर्ण होने की महत्ता, उसे खोने के बाद समझ में आती है।





  • जीवन में, गति को बढ़ाना ही पर्याप्त नहीं है।





  • आप मुझे प्रताड़ित कर सकतें है, यातनाएं दे सकतें है, कैद कर सकतें है, परन्तु मेरे विचारों को कैद नही कर सकते।





  • विरोधी को जीतने का एक मात्र तरीका है- प्रेम।





  • अपने ज्ञान के प्रति, आवश्यकता से अधिक विश्वास करना, मूर्खता होगी, यह हमेशा याद रखें मजबूत कमजोर भी हो सकता है, और बुद्धिमान गलती भी कर सकता है।





  • पृथ्वी पर सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन मौजूद है, परन्तु इसके अनावश्यक दोहन के लिए नहीं।


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