महात्मा गाँधी के प्रेरक कथन (2)


> विश्वास को हमेशा तर्क के द्वारा तौलना चाहिए. जब विश्वास अँधा हो जाता है तो मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।




> पहले वह सभी आप पर नहीं ध्यान  देंगे, फिर वह सभी आप पर हँसेंगे, फिर वह सभी आप से लड़ेंगे, और तब विजयी आप की ही होगी।





> जब तक आप को गलती करने की स्वतंत्रता प्राप्त न हो, तब तक स्वतंत्रता का कोई भी अर्थ नहीं है।




> ख़ुशी तब ही मिलेगी, जब आप जो सोेचा करतें हैं, जो कहा करतें हैं और जो किया करतें हैं, सभी सामंजस्य में हों।



> मौन सबसे शक्तिशाली, प्रभावी, शाशाक्त भाषण है. धीरे-धीरे दुनिया आपको ही सुनेगी।



> पूर्ण धारणा के साथ बोला गया शब्द ”नहीं” सिर्फ दूसरों को खुश करने या समस्या से निजात पाने के लिए बोले गए “हाँ” से  कहीं ज्यादा बेहतर है।



> विश्व के सभी धर्म, भले ही अन्य चीजों में अन्तर रखते हों, लेकिन सभी इस बात पर एकमत हैं कि दुनिया में कुछ नहीं बस सत्य सदैव जीवित रहता है।



> कोई भी त्रुटी, तर्क या वितर्क करने से सत्य नहीं बन सकता और ना ही कोई सत्य इसलिए त्रुटी नहीं बन सकता है क्योंकि कोई उसे संसार में देख नहीं रहा। 



> क्रोध और असहिष्णुता सही समझ के शत्रु हैं।



> पूंजी स्वयं में बुरी नहीं है, पूँजी के गलत उपयोग में ही बुराई है. किसी ना किसी रूप में पूंजी की आवश्यकता हमेशा ही रहेगी।



> अपनी गलती को स्वीकार करना, झाड़ू लगाने के सामान ही है, जो आपके सतह को चमकदार और साफ़ कर देती है।



> निरंतर विकास जीवन का नियम है , और जो मनुष्य स्वयं को सही दिखाने  के लिए सदैव अपनी रूढ़िवादिता को बनाए रखने की कोशिश करता है वो स्वयं को गलत स्थितियों में पंहुचा देता है।



> यद्यपि आप अल्पमत में हों , पर सत्य तो सत्य है।



> कोई भी चाहे वह अपनी अंतरात्मा की ध्वनि सुन सकता है. वह सबके भीतर विराजमान है।



> अभिमान लक्ष्य को पाने के लिए किये  गए प्रयत्नों में निहित है, ना कि उसे प्राप्त करने में।



> मैं मरने के लिए सदैव तैयार हूँ, पर ऐसा कोई कारण नहीं है जिसके लिए मैं मारने को तैयार हूँ।



> मैं सभी की समानता में दृढ विश्वास रखता हूँ, सिवाय पत्रकारों और  फोटोग्राफरों की।




> सत्य सदैव बिना जन समर्थन के भी खड़ा रहता है और वह आत्मनिर्भर है।



> सत्य कभी कभी ऐसे कारणों को क्षति नहीं पहुंचाता, जो उचित हो।



> मेरा धर्म सत्य और अहिंसा है. सत्य मेरा ईश्वर है। और अहिंसा उसे पाने का साधन।



> मेरा जीवन, मेरा सन्देश है।



> जहाँ प्रेम है, वहीं जीवन है।



> जियें ऐसे की जैसे आपको कल ही इस दुनिया से चले जाना हो, सीखो ऐसे की आप हमेशा के लिए जीने वाले हैं।



> मैं जब भी निरशा में होता हूँ , मैं यह याद कर लेता हूँ कि समस्त इतिहास के दौरान सत्य और प्रेम के मार्ग की ही हमेशा विजयी हुई है।अब तक कितने ही तानाशाह और हत्यारे हुए हैं, कुछ समय के लिए वो अजेय लग सकते  हैं, लेकिन अंत में उनका पतन निश्चित है। इसके बारे में सोचें- हमेशा।




> सात घन-घोर पाप : कर्म के बिना ही धन ; अंतरात्मा के बिना ही सुख ; मानवता के बिना ही विज्ञान ; चरित्र के बिना ही ज्ञान ; सिद्धांत के बिना ही राजनीति ; नैतिकता के बिना ही व्यापार और त्याग के बिना ही पूजा।


> भगवान का कोई भी धर्म नहीं होता।



> मैं किसी को भी अपने गंदे पाँव के साथ मेरे मन से गुजरने की आज्ञा नहीं ई सकता।



> प्रार्थना करने का उद्देश्य माँगना नहीं है। यह आत्मा की लिलिप्सा है, यह हर रोज हमारी कमजोरियों की स्वीकारोक्ति है, प्रार्थना में बिना वचनों के ही मन लगाना, वचन होते हुए, मन ना लगाने से कहीँ बेहतर है।



>अच्छे कृत्य द्वारा किसी एक दिल को ख़ुशी देना , प्रार्थना में झुके हज़ारों शीष से बेहतर है।



> स्वयं को जानने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है, स्वयं को दूसरों या औरों की सेवा में डुबो देना।



> आपकी मान्यताएं ही आपके विचार बन जाते हैं। आपके विचार ही आपके शब्द बन जाते हैं, आपके  शब्द ही आपके कार्य बन जाते हैं, आपके कार्य  आपकी ही आदत बन जातीं हैं, आपकी आदतें ही आपके मूल्य बन जाते हैं और आपके मूल्य आपकी नियति बन जाती है।



> आप आज जो जी भी करते हैं,उसी पर भविष्य निर्भर करता है।




> मनुष्य अक्सर वही बन जाता है,जो वह होने में विश्वास करता है। यदि मैं स्वयं से यह कहता रहूँ कि मैं फ़लां चीज नहीं कर सकता, तो यह संभव है कि मैं शायद सचमुच वो करने में असमर्थ हो जाऊं. इसके विपरीत, अगर मैं यह विश्वास करूँ कि मैं यह कर सकता हूँ , तो मैं निश्चित रूप से उसे करने की क्षमता पा लूँगा, भले ही शुरू में मेरे पास वो क्षमता ना रही हो।




> चलिए प्रातः काल का पहला काम यह करें कि इस दिन के लिए संकल्प करें कि- मैं विश्व में किसी से नहीं डरूंगा .-मैं केवल ईश्वर से डरूंगा -मैं किसी के प्रति बुरा भाव नहीं रखूँगा -मैं किसी के अन्याय के समक्ष नहीं  झुकूंगा -मैं असत्य को सत्य के द्वारा जीतूंगा और असत्य का विरोध करते हुए, मैं सभी कष्टों को सहूँगा।




> आप मानवता में विश्वास मत खोइए, मानवता समुद्र है; अगर समुद्र की कुछ बूँदें अच्छी नही हैं, तो इससे सागर गन्दा नहीं हो जाता।




> देश की महानतम् और नैतिक प्रगति को इस बात से आँका जा सकता है कि वहां जानवरों से कैसे व्यवहार किया जाता है।




> हर रात्रि, जब मैं निद्रा के लिए जाता हूँ, मैं मर जाता हूँ. और अगली प्रातः , जब मैं उठता हूँ, मेरा पुनर्जन्म होता है।




> आप जो भी करेंगे वह नगण्य होगा, लेकिन यह आवश्यक है कि आप वह करें।



> मृत,अनाथ, और बेघर को इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि यह तबाही सर्वाधिकार या फिर स्वतंत्रता या लोकतंत्र के पवित्र नाम पर लायी जाती है?



> किसी चीज में विश्वास करना और उसे न जीना बेईमानी है।



> दुनिया में ऐसे जीव हैं, जो इतने भूखे हैं कि ईश्वर उन्हें किसी और रूप में नहीं दिखता, सिवाय रोटी के।



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