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मार्च, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मन के रोग (कहानी)

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बहुत समय पहले की बात है, किसी नगर के कोतवाल को पता चला कि नगर में कोई महात्मा पधार रहें है, उन्होंने सोचा सत्संग प्राप्त किया जाये। जैसे ही उन्होंने रात की ड्यूटी समाप्त की, अपने सरकारी घोड़े पर सवार हो कर महात्मा के दर्शन के लिए चल पड़े।      अपने पद और रौब का अहंकार उसके चेहरे से स्पष्ठ दिखाई दे रहा था। मार्ग में कोई मिलता, उससे पूछते कौन हो तुम ? कहाँ जा रहे हो ? इत्यादि, जरा जरा सी बात पर चाबुक फटकार कर राह चलते राहगीरों को डांट देते...... घोड़ा निरंतर आगे बड़ा जा रहा था।      रास्ते में एक व्यक्ति आस पास के झाड़ और कंकड़ पत्थर साफ कर रहा था।  कोतवाली उसे भी डाँटते हुए बोला कौन हो तुम ? इस समय यहाँ क्या कर रहे हो ?  चलो हटो यहाँ से।  तनाव से वाणी कांप रही थी, परन्तु वह व्यक्ति उसकी बातें सुने बिना अपना काम करता रहा। कुछ जवाब नही दिया और न ही उसकी ओर देखा। कोतवाल उन्हें फिर क्रोध से फटकारते हुए बोला, जिह्वा में रोग लगा है क्या ? उत्तर क्यों नहीं देते ? ......... वह व्यक्ति हँस पड़ा  कोतवाल का चेहरा क्रोध से तमतमा गया। जोर से डांटते हुए बोला, बताओ महात्मा जी का स्थान किधर है ? जान

अपने लक्ष्य को पहचाने और पीछा करें

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अपने सपने साकार करने की दिशा में काम करने से आपके जीवन का महत्व बढ़ जाता है। इतिहास का एक प्रसंग इस बात का उदाहरण है। सबने यह कहानी सुनी होगी, जब न्यूटन ने सेब के फल को गिरते देख कर गुरुत्वाकर्षण का नियम खोजा था। परन्तु बहुत कम लोग यह जानते है कि हैली धूमकेतु की खोज करने वाले एडमंड हैली ने ही न्यूटन के सिद्धांत को लोकप्रिय बनाया। हैली ने न्यूटन को चुनौती दी कि वे अपनी मौलिक अवधारणाओं पर दुबारा विचार करें। उन्होंने न्यूटन की गणितीय गलतियों को ठीक किया और उनके शोध के समर्थन में ज्योमेट्री के रेखा चित्र खींचें। उन्होंने न सिर्फ न्यूटन का उनका महान ग्रन्थ Mathematical Principle of Natural Philosophy लिखने के लिए प्रेरित किया, बल्कि इसका संपादन भी किया। हैली ने न्यूटन को अपने सपनों पर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया और इस वजह से न्यूटन का जीवन ज्यादा महत्वपूर्ण बन गया। न्यूटन को कई पुरस्कारों से नवाजा जाने लगा। हैली को बहुत कम श्रेय मिला, परन्तु उन्हें यह जान कर बहुत संतोष हुआ होगा कि उन्होंने वैज्ञानिक चिंतन की प्रगति में क्रांतिकारी विचारों को प्रेरित किया।      अपने सपनों को प

मन की साधना ही सबसे बड़ी साधना है।

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मन एवं मनुष्याणां कारणम् बांध मोक्ष्योः । बंधाय विषयासक्त मुक्त निर्विषय स्मृतम् ।। मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है। विषयासक्त मन बंधन के लिए और निर्विषय मन मुक्त माना जाता है।            मैं इस बात को एक किम्बदन्ती के माध्यम से बताता हूँ। हमारे यहां कल्प वृक्ष की महत्ता से सभी परिचित होंगे। स्वर्ग में होता है और जो मांगो वही देता है। एक बार नारद जी अपने एक शिष्य को लेकर पृथ्वी से स्वर्ग लोक पहुँचे। वहाँ उन्होंने उसे एक कल्प वृक्ष के नीचे बैठा दिया और कहीं अन्यत्र चले गए। वह आदमी थक गया था। वह सोचने लगा कि कोई मेरा पैर दबा देता! विचार आया, ठीक वैसे ही अप्सराएं वहाँ उपस्थित हो गयीं और उसकी सेवा करने लगी। वह तो गद-गद हो उठा। कहा- स्वर्ग में कितना सुख है। दूसरे क्षण एक विचार आया कि कहीं मेरी पत्नी इस दृश्य को देख ले तो लड़ाई शुरू हो जायेगी। इतना सोचना ही पर्याप्त था कि उसी क्षण उसकी पत्नी हाथ में झाड़ू लिए वहां उपस्थित हो गयी और उसकी पिटाई करना शुरू कर दी। आगे-आगे वह और पीछे पीछे झाडू धारिणी पत्नी। नारद जी तुरंत वहाँ पहुँचे और बोले मूर्ख सोचना ही था तो अच्छी बात स

गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा बताये गए सफलता के कारक

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व्यक्ति के विकास में उसके व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण योगदान होता है। जहां व्यक्तित्व विकास का सीधा उसके परिवार, समाज, परिवेश, पर्यावरण, रहन-सहन, खान-पान, दिनचर्या, भाषा, व्यवहार और उपलब्ध संसाधनों से होता है। वहीँ इन सबसे ऊपर उसके विकास में उसकी सोच दिशा दृष्टि एवं गति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिसके परिणाम स्वरुप उसके जीवन की दिशा दृष्टि गति एवं सोच के साथ उसका समग्र जीवन ही बदल जाता है। जिसकी परिणिति व्यक्तित्व विकास के रूप में होती है । सामान्य व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास की कसौटी उसकी सफलता होती है। असफ़ल व्यक्तियों के गुणों कार्यों एवम् विचारों को जहां हेय दृष्टि से देखा जाता है, वहीं सफल व्यक्ति का हर कथन, हर व्यवहार, हर कदम और हर कार्य अनुकरणीय बन जाता है।        अंततः सफल व्यक्ति की कसौटी उसके कार्य की वह परिणित है, जिससे उसके हित साधन के साथ ही समाज एवं राष्ट्र का भी विकास होता है जिससे वह राष्ट्र विश्व के लिए और समाज भावी पीढ़ी के व्यक्तित्व विकास को ऊर्जा व प्रेरणा देने में समर्थ हो वास्तव में व्यक्तित्व विकास की यही सार्थकता है।       भगवान श्री कृष्णा ने आज से 5000

किस पर है सारा दारोमदार

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हमारी दुनिया , स्पेस , समय , स्थूल , परिमाण , ऊर्जा और चेतना के आपसी संबंधों का एक ( Complicated Network )   जटिल नेटवर्क है। भौतिकशास्त्री और चेतना का गहराई से अध्ययन करने वाले विद्वान   थॉमस कैम्पबेल   ने अपनी पुस्तक   ( My big theory of every things )   माय बिग थ्योरी ऑफ़ एव्री थिंग्स   में अपने विचार को प्रस्तुत किया कि हम ब्रह्माण्ड को एक विशालकाय मस्तिष्क के रूप में मान सकतें है। उनके अनुसार लम्बे समय में किसी व्यवस्था के बनाने की प्रक्रिया , विकास की एक   प्राकृतिक गति से प्रभावित   होती है , और वह सभी तरह के नेटवर्क के लिए एक ही होती है।       चाहे वह   internet   हो चाहे वह मानव मष्तिष्क हो या सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हो। इसलिए , हम मान लें कि एक व्यक्ति के रूप में हम अंदर ही अंदर एक दूसरे से जुडी अति विस्तृत जीवन सत्ता से निकले चेतना के अंश है , जिसमें मन , शरीर , परिवार , समुदाय , पर्यावरण , संस्कृति , आदि सभी कुछ समाहित है। सच यह है कि ऐसा कोई एक भी नहीं है , जिस पर सारा दारोमदार हो।   यह संसार अनेक बौद्धिक और जटिल प्र

भावनात्मक कुशाग्रता एवं व्यक्तित्व विकास का स्व आंकलन

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भावनात्मक कुशाग्रता वह प्रबन्धकीय कुशलता है, जिसके उपयोग से अपनी तथा दूसरे की भावना को समादृत तथा प्रभावी तरीके से लोगों एवं समस्याओं का समाधान इस प्रकार किया जाये, जिससे क्रोध और दुश्मनी कम हो तथा सहयोगी प्रयास विकसित हो।  जीवन में संतुलन हो और सृजनात्मक ऊर्जा का निस्सारण हो। इस प्रकार भावनात्मक कुशाग्रता वह योग्यता है, जो स्वयं एवं अन्य के संवेगों को नियंत्रित एवम् परिमाजित करते हुए, भावनाओं का उपयोग विचार एवम् कार्य को दिशा देने में किया जाए। मन के जीते जीत है - गुरु नानक बुद्धिमत्ता से रचनात्मकता एवम् भावनात्मक्ता से सूत्रपात की प्रेरणा मिलती है। आध्यात्मिकता से बुद्धिमत्ता एवम् भावनात्मकता दोनों स्वतः विकसित हो जातें है।       अनपढ़ और पढ़ा, परंतु पढ़ता नहीं। दोनों में कोई अंतर नहीं। शिक्षित व्यक्ति गूढ़ विषय को साधारण बना लेता है, जबकि अन्य लोग सामान्य धटना को गूढ़ बना देतें है। मानव का सामान्य बने रहना आसान नही है।      सहज होने के लिए जीवन के विविध आयामों में संतुलन और सामंजस्य जरूरी है। भावना सामाजिक जीवन की आवश्यकता है। इसका प्रस्फुटन कई रूपों में होता है

तीन महान महिलाओं की कहानियाँ

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हर एक प्रगतिशील समाज के मूल में महिला सशक्तिकरण ही है। कई सदियों तक हमारे देश में महिलाओं और उनकी जरूरतों पर ध्यान नही दिया गया, बल्कि सच तो यह है कि उनका तिरस्कार ही होता रहा। भारत के कई हिम्मत वाली महिलाओं ने अपना सारा जीवन भारतीय महिलाओं की उन्नति के लिए समर्पित कर दिया, ताकि आने वाली पीढ़ियों की महिलाएं ख़ुद को अन्याय अत्याचार और क्रूरता के चंगुल से छुड़ा पाएं और शिक्षा, रोजगार और राजनीति की बुलंदियों को छू सकें।      1950 में भारत के संविधान में महिलाओं के लिए बराबरी के अधिकार और संभावनाओं को एक क्रांन्तिकारी परिवर्तन के रूप में गढ़ा गया। परिणाम स्वरुप आज स्वतंत्र भारत में महिलाओं की स्थिति बेहतर है। कुछ समस्याएं जिससे महिलाएं सदियों से घिरी रहीं थी, जैसे बाल विवाह, सती प्रथा, विधवाओं के दुबारा विवाह की मनाही और बालिकाओं के शिक्षा के प्रति नकारात्मक रवैया जैसे चलन से अब छुटकारा मिल चुका है।       विज्ञान और प्रोधोगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति, अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर पहुँच बनाने के साथ सामाजिक राजनैतिक आंदोलनों में खुल कर हिस्सेदारी के फलस्वरूप महिलाओं के प्

माँ ( जन्नत है माँ के क़दमों में )

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"मैंने अब तक जितनी भी महिलाओं को देखा, उनमे मेरी माँ सुन्दर थी। मैं जो कुछ भी हूँ,अपनी माँ की बदौलत हूँ। अपने जीवन में मिली सारी सफलता का श्रेय, मैं उस नैतिक, बौद्धिक और शारीरिक शिक्षा को देता हूँ, जो मुझे उनसे मिली।" -जॉर्ज वाशिंगटन      इस पुरुष प्रधान व्यवस्था में जो समाज के हर स्तर पर सोच और व्यवहार पर हावी है,जीवन दायिनी, जीवन रक्षक, पालक, पोषक, संवेदनशील, करुणामयी, मिल बाँट कर चलने वाली, स्त्री शक्ति की गहरी घनी ऊर्जा की जान बूझकर निरंतर उपेक्षा की गयी, अनादर किया गया, उस पर चोट की गयी, अपमानित और तिरस्कार किया गया, उत्पीड़ित किया गया है, और उसकी हत्या की गयी है।      अब समय आ गया है, जब प्रेम और करुणा जैसे उन भावों की क़ीमत समझी जाये। जो मिलबांट कर दूसरे का ध्यान रखते हुए, शांतिपूर्ण ढंग से जीने के लिए प्रेरित करतें है। जस्ट वंस की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार है- एक गीत जान डाल सकती है पल में एक फूल जगाये स्वप्न उनींदे आँचल में। होवे शुरू एक पेड़ से विशाल वन्य प्रदेश ला सकता है एक पंछी वसंत का संदेश। दोस्ती का बीज बने एक हल्की म

होली की हार्दिक शुभकामनायें।

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प्रिय मित्रों,      आप सभी को होलिका एवं होली की ढ़ेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएँ। यह पावन होलिका पर्व हिंदी वर्ष के फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह दहन हिरण्यकस्यपु की बहन, होलिका द्वारा, ईश्वर भक्त बालक प्रह्लाद को अग्निदाह करवाने का प्रयास करने तथा प्रह्लाद को ईशकृपा से बचने और होलिका के दहन के उपलक्ष्य में किया जाता है। साथ ही यह दिन वर्ष के समस्त बुराइयों को त्याग कर, एक दूसरे के प्रति मिलन का संयोग बनाता है ,जीवन के एक एक दिन मनुष्य में विचार परिवर्तन को प्रमाण प्रदान करने के लिए एक मिलन योग बनता है, जिसे हम एक सम भाव के रूप में एक दूसरे को अपने भाव में रंग देतें है। जीवन बहुरंगी है। सुख, दुख, प्यार, तकरार, आशा और निराशा हर एक क्षण में रंग बिरंगे है। यही जीवन की निरंतर गति है। जीवन की खूबसूरती है। प्यार का रंग - दूसरों की तरह भी आप अपनी खुशियों को जीने के हकदार है। सामान्यतया हमे अपनी भावनाओं को दबाने के लिए प्रेरित किया जाता है। लेकिन इस प्रकिया में हम स्वयं से प्रेम करना भूल जातें है। दुख व निराशा के पलों में जोर जोर से चिल्लाने हँसने डांस करने के बाद हल्का

सच्चे मेहनत की करामात

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प्राचीन समय की बात है। एक किसान के पास दो बैल थे। जिसमे एक बैल ही जीवित रहा, अब किसान केवल अकेल एक बैल की सहायता से पूरे खेत को नहीं जोत सकता था। उसने मन में यह सोचा कि दूसरे बैल के स्थान पर मैं अपनी पत्नी की लगा दूँगा। पूरी तैयारी करने के बाद उसने दूसरे बैल के स्थान पर अपनी पत्नी को लगा दिया। अब बैल और किसान की पत्नी, दोनों मिलकर हल की खींचने लगे। कुछ समय बाद वहाँ के राजा का भ्रमण हुआ और उसने यह सब दशा देखी। उसे रहा न गया और किसान के पास जाकर कहा तुम हमारे घर पर जाकर एक बैल को लेकर आओ, तब तक मैं इनके स्थान पर लग जाता हूँ। अब राजा स्वयं किसान के साथ हल जोतने में सहायता करने लगा, कुछ समय बाद राजा पूरी तरह थक गया और आराम करने लगा। आराम करने के समय ही राजा का बलवान बैल भी आ गया। अब दोनो बैल को एक साथ लगाया गया और किसान हल जोतने लगा। परंतु किसान को हल निंयत्रित करने में कठिनाई हो रही थी। क्यों कि दोनों बैलों का साथ विषम था, क्योकि दोनों के द्वारा लगाये गए बल अलग-अलग थे, परिणाम उचित नहीं था। किसान ने थक कर काम बंद कर दिया और मायूस हो कर बैठ गया। यह सब देख कर राजा को अच्छा न लगा। अब राजा ने

अनिद्रा की चिंता को दूर करें, कैसे ?

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जब आप ठीक से नहीं सो पाते, तो क्यों चिंतित होतें है। अगर ऐसा है तो आप को शायद यह जानकारी रोचक लगे कि प्रसिद्ध अन्तराष्ट्रिय वकील अंटरमायर अपने पूरे जीवन में एक रात भी ठीक से नहीं सो पाये। जब अंटरमायर कॉलेज गए तो वह दो रोगों के बारे में चिंतित थे, अस्थमा और अनिद्रा। चूँकि दोनों ही बीमारियाँ लाइलाज साबित हुई, इसलिए उन्होंने अगला सर्वश्रेष्ठ काम करने का फैसला किया - अपने जागते रहने से लाभ उठाना। बिस्तर पर करवटें बदलते रहना और चिंता कर करके ब्रेकडाउन का शिकार बनने के बजाए, वे उठ जाते थे और पढ़ते थे। परिणाम, वे अपनी कक्षा में सबसे अच्छे नंबर लाने लगे और न्यूयार्क के सिटी कॉलेज के सबसे प्रतिभाशाली विद्यार्थियों ने से एक बन गए।            जब उन्होंने वकालत शुरू की तब भी उनकी अनिद्रा ठीक नहीं हुई। परंतु उन्होंने चिंता नहीं की। उनका कहना था -प्रकृति मेरा ध्यान रखेगी। प्रकृति ने ध्यान रखा। हालाँकि वे बहुत कम सो पाते थे परंतु उनका स्वास्थ्य अच्छा रहा और वे न्यूयार्क बार के युवा वकीलों की तरह कड़ी मेहनत कर सकते थे। वे बाकी वकीलों से ज्यादा कड़ी मेहनत करते थे, क्योकि वे तब भी काम करते थे जबी