श्री मद्भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा कहे गये प्रेरक कथन





देवनागरी : भगवान श्री कृष्ण
सहबद्धता  :  [स्वयं भगवान]
आवास :  वृंदावन, द्वारका, गोकुल, वैकुंठ
शस्त्र सुदर्शन चक्र
पत्नी  :  रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, नग्नजित्ती, लक्षणा, कालिंदी, भद्रा, मित्रवृंदा.
वाहन  :  गरुड़
पाठ्य  :  भागवत पुराण, भगवद्गीता



  • : भ्रामक और संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए ख़ुशी ना इस धरा में  है ना ही कहीं अन्य धरा और।





  • क्रोध  से  भ्रम  पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है तब आपका तर्क नष्ट हो जाता है और जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन शीघ्र हो जाता है।


  • मन की गतिविधियों, चेतन, श्वाश, और भावनाओं के बीच से भगवान की शक्ति सदैव आपके साथ है; और लगातार आपको बस एक माध्यम की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है।





  • : ज्ञानी व्यक्ति सदैव ज्ञान और कर्म को एक रूप में ही देखता है, और वही सही मायने में देखता है।





  • : जो मन को नियंत्रण में नहीं रखते, उनके लिए वह दुश्मन के समान ही कार्य करता है.





  • : अपने अनिवार्य कार्य करें, क्योंकि वास्तव में कार्य करना कम से कम निष्क्रियता से तो बेहतर है।





  • : आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान की दुविधा को अलग कर दें, अनुशासित रहें





  • : मनुष्य अपने विश्वास और चरित्र से निर्मित होता है, जैसा वह विश्वास करता है वैसा ही वह बन जाता है।





  • : मनुष्य इस जीवन में ना कुछ खोता है और ना ही कोई चीज़ व्यर्थ होती है।





  • : मन अशांत है, और इसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे अपने वश में किया जा सकता है।





  • : सम्मानित मनुष्य के लिए ,लोग आपके अपमान के बारे में सदैव बात करेंगे। और अपमान मृत्यु से भी बुरा है।





  • : प्रबुद्ध प्रकार के व्यक्ति के लिए, कूड़े का ढेर, पत्थर, और सोना सभी समान एक समान हैं।





  • : निर्माण केवल पहले से उपस्थित वस्तुओं का ही प्रक्षेपण है।





  • : मनुष्य जो चाहे वह बन सकता है यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर निरंतर चिंतन करे।





  • : उससे कभी मत डरें जो वास्तविक नहीं है और ना कभी था, ना कभी होगा। जो वास्तविक है, वो हमेशा था और वह कभी नश्वर नहीं है।





  • : ज्ञानी व्यक्ति को कर्म के प्रतिफल की अपेक्षा कर रहे अज्ञानी व्यक्ति के मस्तिष्क को अस्थिर नहीं करना चाहिए।





  • : हर मानव का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार ही होता है।





  • : जन्म लेने वाले के लिए मरण उतना ही निश्चित है, जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना। इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक कदापि मत करें।





  • : अप्राकृतिक कर्म सदैव तनाव का कारण पैदा करता है।





  • : सभी अच्छे कार्य छोड़ कर बस ईश्वर में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाइये, मैं आपको सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। शोक मत करें।





  • : किसी अन्य का कार्य पूर्णता से करने से कहीं बेहतर है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करें।





  • : मैं उन्हें ज्ञान प्रदान करता हूँ, जो सदा मुझसे जुड़े रहते हैं, और जो मुझसे सदैव प्रेम करते हैं।





  • : मैं सभी जीवों को सामान रूप से देखता हूँ; ना कोई मुझे कम प्रिय है ना ही कोई अधिक, लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वे मेरे भीतर रहते हैं, और मैं निरंतर उनके जीवन में आता हूँ।





  • : प्रबुद्ध मानव सिवाय केवल ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं करते।





  • : मेरी कृपा से कोई सभी कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी, बस मेरी शरण में आकर अनंत अविनाशी निवास को प्राप्त हो जाता है।





  • : हे अर्जुन, केवल भाग्यशाली योद्धा ही ऐसा युद्ध लड़ने का अवसर पाते हैं जो वास्तव में स्वर्ग के द्वार के सामान ही है।





  • : ईश्वर प्रत्येक वस्तु में है और सबके ऊपर भी।






  • : बुद्धिमान व्यक्ति कामुक सुख में आनंद नहीं लेते।





  • : ईश्वर के सार्वलौकिक रूप का न प्रारंभ न मध्य न अंत दिखाई देता है।





  • : जो कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है वह एक बुद्धिमान मनुष्य की श्रेणीमें आता है।





  • : मैं धरा की मधुर सुगंध हूँ. मैं ज्वाला की ऊष्मा हूँ, सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का अनंत आत्मसंयम हूँ।





  • : आप उसके लिए शोक करते हैं, जो शोक करने के योग्य ही नहीं हैं, और फिर भी ज्ञान की बाते करते रहतें हैं, बुद्धिमान मनुष्य ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं।





  • : कभी ऐसा समय कभी नहीं था - जब मैं, आप, या ये राजा-महाराजा अस्तित्व में ही नहीं थे, और ना ही भविष्य में कभी ऐसा होगा कि हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाये।





  • : कर्म कभी मुझे बांधता नहीं, क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा ही नहीं।





  • : हे अर्जुन! हम दोनों ने इस धरा पर कई जन्म लिए हैं, मुझे याद हैं,  लेकिन तुम्हे नहीं।





  • : वह जो वास्तविकता में मेरे उत्कृष्ट जन्म और गतिविधियों को समझता है, वह काया त्यागने के बाद भी पुनर्जन्म नहीं लेता और सदैव मेरे धाम को प्राप्त होता है।





  • : अपने परम भक्तों, जो सदैव मेरा स्मरण या एक-चित्त मन से मेरा पूजा करते हैं, मैं व्यक्तिगत रूप से उनके कल्याण का उत्तरदायित्व लेता हूँ।





  • : कर्म योग वास्तव में एक परम चिर अनंत रहस्य है।






  • : काम उसे नहीं बांधता, जिसने कर्म का त्याग कर दिया है।





  • :विवेकपूर्ण मनुष्य को समाज कल्याण के लिए बिना आसक्ति के साथ कार्य करना चाहिए।





  • : जो  मनुष्य  आध्यात्मिक  जागरूकता  के  शिखर  तक  पहुँच  चुके  हैं, उनका  मार्ग  है - निःस्वार्थ  कर्म। जो  ईश्वर  के  साथ  संयोजित हो  चुके  हैं,  उनका  मार्ग  है - स्थिरता  और  शांति।





  • : यद्यपि  मैं  इस  ब्रह्मांड  का  रचयिता  हूँ , लेकिन  सभी  को  यह  ज्ञात  होना  चाहिए  कि  मैं  कुछ भी  नहीं  करता  और  मैं  अनंत  हूँ।





  • : जब  वे  अपने  कार्म  में  आनंद  खोज  लेते  हैं, तब वे पूर्णता को  प्राप्त   करते  हैं।





  • : वह  जो  सभी  इच्छाएं का त्याग कर देता  है,  और  मैं ”  और  मेरा की  लालसा  की भावना  से  मुक्त  हो  जाता  है  उसे  शांति प्राप्त  होती  है।





  • : मेरे  लिए  ना  कोई  घृणित   है  ना ही प्रिय, किन्तु  जो  व्यक्ति  भक्ति  के  साथ  मेरी  पूजा  करते  हैं  , वो  मेरे  साथ  हैं  और  मैं  भी  उनके  साथ सदैव रहता हूँ।





  • : जो  इस  लोक  में  अपने  कर्म  की  सफलता  की  कामना  रखते  हैं  वे  देवताओं  का  ही  पूजन   करें।





  • : मैं ही ऊष्मा प्रदान करता हूँ , मैं ही वर्षा करता हूँ, और  रोकता भी हूँ , मैं  अमरत्व   भी  हूँ  और  मृत्यु  भी।





  • : बुरे  कर्म  करने  वाले , सबसे  नीच व्यक्ति जो  राक्षसी  प्रवित्तियों  से  जुड़े  हुए  हैं , और  जिनकी  बुद्धि  माया  ने  हर  ली  है  वे कभी मेरी  पूजा  या  मुझे  पाने  का  प्रयास  नहीं किया करते।





  • : जो  कोई  भी  जिस  किसी  भी  देवता  की  पूजा  विश्वास  के  साथ  करने  की  इच्छा  रखता  है , मैं  उसका  विश्वास  उसी  देवता  में  दृढ  कर  देता  हूँ .





  • : हे  अर्जु­­न !, मैं  भूत , वर्तमान  और  भविष्य  के  सभी  जीवों को  जानता  हूँ, परन्तु  वास्तविकता  में  कोई  मुझे  नहीं  जानता।





  • : स्वर्ग  प्राप्त  करने  और  वहां  कई  वर्षों  तक  निवास  करने  के  बाद  एक  असफल  योगी  का  पुन:  एक  पवित्र  और  समृद्ध  कुटुंब  में  जन्म  होता  है।





  • : मैं सभी  प्राणियों  के  ह्रदय  में पहले से ही उपस्थित हूँ।





  • : ऐसा  इस  ब्रह्मांड  में  कुछ  भी  नहीं  , चेतन  या  अचेतन  , जो  मेरे  बिना  अस्तित्व  में  रहे।




  • : वह  जो  मृत्यु  के  समय  मुझे  स्मरण  करते  हुए  अपना  शरीर  त्यागता  है, वह  मेरे  धाम   को प्राप्त  होता  है, इसमें  किसी  भी  प्रकार  का  कोई  शंशय  ही  नहीं  है



  • : वह  जो  इस  ज्ञान  में  विश्वास  नहीं  रखते, वे  मुझे  प्राप्त  किये  बिना   जन्म  और  मृत्यु  के  चक्र  का सदैव   अनुगमन  करते  हैं।

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